कन्हैया मिश्रा।इसे बिडंबना कहे या कुछ ओर,मगर बीजेपी को एक बार फिर रथ की याद आ ही गयी तो बीजेपी के विपक्षी दलों को अचानक मंडल की राजनीति में दिलचस्पी बढ गयी है।हो भी क्यूं नहीं,आगामी विधानसभा चुनाव से पूर्व लालू प्रसाद यादव ने अपने धुर विरोधी नीतीश कुमार से हाथ क्या मिला लिये,बिहार की सत्ता को हथियाने के लिए सूबें में अचानक गठबंधन की फैशन चल पडी।जीतन राम मांझी के कार्यकाल में हल्ला करने वाली बीजेपी को वहीं मांझी खेवैया नजर आने लगे है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित साह आज पटना में एनडीए की ओर से एक ओर रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया,मगर ये रथ कोई मंदिर या मस्जिद निर्माण के लिए नहीं बल्कि बिहार के नीतीश सरकार के नाकामी को जन-जन तक पहुंचाने एव् सत्ता परिवर्तन के लिए निकाले गये रथ का नाम भी परिवर्तन रथ रखा गया है।इस रथ को राजनीतिक हलको में नीतीश के बढ चले बिहार के तर्ज पर देखा जा रहा है।पच्चीस वर्ष पूर्व जब भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सिंतबंर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या रथ निकाली थी तो उसके दो ही मतलब थे।एक तो मंडल कमीशन के लागू होने के विरोध  ओर दूसरा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो।तत्कालीन पीएम वीपी सिंह ने उस समय मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू कर दिया था,बीजेपी उस समय केन्द्र की सत्ता में शामिल थी।मंडल कमीशन को एक सिरे से विरोध करने का साहस नहीं दिखाकर देश को राममंदिर निर्माण के लिए एकजुट करने में लग गयी,बीजेपी जानती थी कि रथ यात्रा से देश के अधिकांश हिंदू एकजुट होकर बीजेपी के साथ हो जायेगी।आडवाणी के रथ यात्रा को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने समस्तीपुर में रोक कर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया,जिससे नाराज होकर बीजेपी के 88 सांसद केंद्र से समर्थन ले लिया।वीपी सिंह की सरकार गिर गयी।लेकिन उसके बाद भी आडवाणी ने कई रथ निकाले ओर सबके नाम बदलते गये।वर्ष 2011 में लाल कृष्ण आडवाणी ने सिताब दियारा से जन चेतना रथ निकाली थी।जिसको हरी झंडी नीतीश कुमार ने ही दिखाये थे।उस समय भी आडवाणी की रथ सफल नहीं हो सकी थी।पटना में फिर भाजपा ने रथ निकाली है जो फिलहाल खुद मंडल की राजनीति करती दिखायी दे रही है।पटना के मंच की खासियत थी कि पूर्व सीएम मांझी जो खुद दलित है,बीजेपी के किसी मंच पर पहली बार दिखाई दिये,वहीं रामविलास पासवान जो हमेशा भाजपा को भारत जलाओ पार्टी कहते घुम रहे थे,आज परिस्थति क्या बदली,सियासतदानों के सोच ही बदल गयी।जब नीतीश कुमार जाति की राजनीति को छोडकर विकास के मुद्दे पर चुनाव लडने की बात कहते है तो भाजपा कभी पीएम को एक चाय वाला तो कभी पिछडा कहकर पेश करती है।बिहार में लालू के हनुमान कहे जाने वाले रामकृपाल यादव भी बीजेपी के साथ हो लिए।वहीं राजद प्रमुख लालू यादव ओर नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में हार कर ये समझ गये कि बिहार में विकास से अधिक जाति की राजनीति चमकती है तो वे भी मंडल की राजनीति में कूद पडे।लालू कभी मंडल पर किताब लिखने की बात कहते है तो कभी भैंस को नहलाते हुए फोटो सोशल साईट पर पोस्ट कर जाति की बात अनचाहे मुड में कह जाते है।वहीं अब तो लालू ने जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग पर आन्दोलन करते नजर आ रहे है।अब देखना होगा कि भाजपा की रथ व मंडल की राजनीति को माना जाता है या फिर मंडल की राजनीति पर लालू व नीतीश ही कब्जा करते है।

                                      ये लेखक के अपने विचार है।


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