बेनीपट्टी(मधुबनी)। कन्हैया मिश्रा : यू तो उच्चैठ स्थित छिन्नमस्तिका भगवती हर किसी की मनोकामना पूर्ण करती रही है। श्रद्धालु यहां आकर भगवती से मनोकामना पुरी कर वापस लौटते रहे है। खासकर शारदीय नवरात्र में तो प्रदेश सहित अन्य प्रदेश के श्रद्धालु भगवती से वरदान लेने के लिए पहुंच जाया करते है। लेकिन शारदीय नवरात्रा में यहां तंत्र साधकों की एक अलग ही मंडली जमा होती है। जो पूरे शारदीय नवरात्र में उच्चैठ में विभिन्न स्थलों पर अपना आसन जमाकर अपनी तंत्र साधना को पूर्ण करते रहे है। तंत्र साधना के लिए उच्चैठ स्थली पहले से ही काफी विख्यात रहा है। अक्सर तंत्र साधक अपनी विद्या को मजबूत करने के लिए यहां आकर अपनी मंत्र से तंत्र की शक्ति को धार देते रहे है। वहीं नवरात्र के अंतिम क्षणों में मंदिर परिसर में हवन व आहूती की क्रिया कर लौट जाते है। पुनः नवरात्र में आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते रहे है। माना जाता  है कि उच्चैठ की भगवती जिन्हें कुछ लोग छिन्नमस्तिका तो कुछ श्रद्धालु वनदुर्गा के नाम से बुलाते रहे है। जानकारी दे कि उक्त मंदिर में काला पत्थर से भगवती की मूर्ति बनी हुई है। मूर्ति कब ओर कितने वर्षो से है, ये अभी तक किसी को ज्ञात नहीं हुआ है। मूर्ति छिन्न-भिन्न होने की स्थिति में संभवतः श्रद्धालु इसे छिन्नमस्तिका देवी के नाम से पुकारते आते हो। जिसे कालांतर में उच्चैठ भगवती के नाम से अधिक जाना गया। धर्मशास्त्र के जानकार बताते है कि उच्चैठ की भगवती मंदिर हजारों वर्ष पुराना है. उक्त भगवती सिद्धपीठ के श्रेणी में सुमार है। भगवती की पौराणिक होने का प्रमाण इसी से मिलता है कि वर्षो पूर्व थुम्हानी नदी के किनारे गुरुकुल का संचालन करते वक्त कालीदास के गुरु ने उन्हें भगवती स्थान में शांय दिखाने का आदेश दिया। मूर्ख कलुआ पर विश्वास न होने के कारण उन्हें अपना प्रमाण वहां छोड़ने का आदेश दिया गया। मूर्ख कलुआ नदी तैरकर मंदिर में प्रवेश कर भगवती को शांय दिखाकर अपना प्रमाणस्वरुप भगवती के मूंह पर दिये से बने कालिख लगाने का मूर्खतापूर्ण कृत्य करने का प्रयास किया,भगवती सहसा उसे दर्शन देकर ऐसा करने से मना कर उसे वरदान मांगने को कहा, तो कलुआ ने अपने मूर्खता का हवाला देकर विद्वान होने का वरदान मांगा। कहा जाता है कि उस समय गुरुकुल में जितने भी धर्मशास्त्र व ज्ञानशास्त्र मौजूद था। कलुआ ने पूरी रात जागकर पुस्तकों को मात्र पलट दिया। पुस्तक की सारी विद्या उसे दिव्यरुपी ज्ञान के रुप में समाहित हो गया। फिर कुछ ही दिनों के बाद मूर्ख कलुआ की पहचान महान कवि कालीदास के रुप में होने लगी। माना जाता है कि उक्त भगवती की शक्ति के कारण यहां रामायण काल में भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ यहां पधारे थें। वहीं कई महान साधु-संतो ने भी अपनी उपस्थिति भगवती के चरणों में दर्ज कराई है। जिसका प्रमाण आज भी विद्यमान है।


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