BNN विशेष। बिकास झा : मिथिलालोक संस्था की ओर से दिल्ली के आईटीओ स्थित राजेंद्र भवन में 'पाग बचाउ अभियान' की औपचारिक शुरुआत 28 फरवरी से एक विशेष कार्यक्रम के माध्यम से किया जाएगा अभियानी संस्था मिथिलालोक का मानना है कि पाग मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है महाकवि विद्यापति की तस्वीरों में उनके सिर पर विद्ममान पाग को देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि वे मिथिला से हैं और लोग उनपर गर्व करते है। पाग मिथिला की सदियों पुरानी विरासत है, और यह विशेष मायने रखता है जिसे आज बचाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप पाग बिहार के मिथिला क्षेत्र और नेपाल के तराई इलाकों में मैथिली भाषी ब्राह्मण व कर्ण कायस्थ जातियों में अमूमन मांगलिक अवसरों पर पहनने की परंपरा रही है। मिथिलालोक संस्था मानती है कि पाग मिथिला की मान, सम्मान एवं एकता का प्रतीक है, जिसे बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। समाज के सभी वर्गो को सम्मानित किया जाना और मैथिल की पहचान बरकरार रखना इस अभियान का उद्देश्य है जिससे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थति को सुदृढ़किया जाए। संस्था मिथिला के सभी जातियों एवं वर्ग के लोगों को "पाग" पहनाना चाहती है एवं इस सम्मान का पात्र सभी मैथिलों को मानती है। मिथिला में जिसे पाग कहते हैं, उसे पंजाब में 'पग' और हिंदी भाषियों के बीच पगड़ी नाम से जाना जाता है और इसके रूप एवं स्वरुप में थोड़ी बहुत भिन्नता रही है। मिथिलालोक इस सांस्कृतिक धरोहर 'पाग' को कायम रखने के लिए विशेष अभियान की शुरुआत 28 फरवरी को दिल्ली से कर रही है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने कहा कि इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होगा और इसमें शामिल होने वाले सभी लोगों को पाग पहनाकर सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि 'पाग फॉर ऑल ' संस्था का मिशन है, ताकि समाज में सभी तबकों को सम्मानपूर्वक जीने का अवसर मिले।