अनंत पूजा (डोरा )

अनंत पूजा (डोरा )

भादव मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के "अनन्त चतुर्दशी" के व्रत कायल जाइत अछि । अहि में अनन्त के रूप में हरि के पूजा होइत अछि । पुरुष दाहिना तथा स्त्री बाँया हाथ में अनन्त धारण करैत छैथ ! रूई या रेशम के डोरा कुंकमी रंग में रंगल होइत अछि आ ओहि में चौदह गिरह होइत अछि ।अहि डोरा सअ अनन्त के निर्माण होइत अछि । चतुर्दशी के दर्भ सअ बनल हरि के प्रतिमा के , जे कलश के जल में राखल रहैत अछि , पूजा होइत अछि । व्रती के धान के एक प्रस्थ (प्रसर) आटे सअ पूड़ी बनाबे परैत छैन्ह,जाहि में सअ आधा ब्राह्मण के और शेष अर्धांश स्वयं प्रयोग में लबैत छैथ ।
अनन्त व्रत का वर्णन विशद रूप सअ आयल अछि , जाहि में कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर सअ कहल गेल कौण्डिन्य आ हुनक पत्नी शीला की गाथा आयल अछि । कृष्ण के कथन छैन्ह , कि 'अनन्त' हुनकर अनेक रूप के एक रूप छैन्ह और ओ काल छैथ, जिनका अनन्त कहल जाइत छैन्ह । अनन्त व्रत चन्दन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचार के साथ कायल जाइत छैक ।अहि व्रत के बारे कहल जाइत छैक कि यदि इ व्रत 14 वर्षों तक कायल जाय तअ व्रती विष्णुलोक के प्राप्ति कअ सकैत छैथ ।

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