भारत के प्रत्येक बड़े शहरों में मैथिलि बोलने वालों का अपने भाषा और संस्कृति को लेकर वर्चस्व है। मधुबनी पेंटिंग, मखाना उत्पादन और अद्भुत अतिथि सत्कार परम्परा के बाद इन दिनों देश भर में अनिल कुमार झा की खूब चर्चा हो रही है। लगभग 4500-5000 हजार युवाओं को रोजगार से जोड़ने वाले अनिल कुमार कुमार झा करोड़ों मैथिलभाषियों के प्रेरणास्रोत के रूप में जाने जाते हैं।
दरभंगा जिला के एक छोटे से गांव अमीठी से निकल कर देश के सफल बिजनेश मेन के रूप में अपने आप को स्थापित करने वाले अनिल कुमार झा का एक लक्ष्य मिथलांचल के युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार से जोड़ना है। अनिल कुमार झा लगभग ३० वर्ष पहले दरभंगा से निकल के दिल्ली की ओर रुख किया और अपनी कड़ी मेहनत और ईमानदारी के वदौलत आज एक सफल बिज़नेस मैन के रूप में देश भर में विख्यात हैं। करियर में अपने आप को स्थापित करने के बाद अपने मातृ भाषा मैथिलि और मिथिला संस्कृति से विशेष लगाव होने के कारण क्षेत्र व मिथिलाभाषियों के लिए रोजगारोन्मुखी कार्यों में अपना जीवन लगा दिया।
गौरतलब है की मैथिलि भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबैधानिक लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिए , जिस से देश भर में काफी सुर्खियां बटोरी। तब से लेकर आज तक मैथिल उत्थान के अलावा सरकारी व गैर सरकारी संस्थान को भी आर्थिक सहयोग करते आ रहे हैं।
इसके साथ ग्रामीण स्तर पर कई बेसहारा विधवाओं को सम्पूर्ण भरण पोषण करते आ रहे हैं। बिहार में बाढ़ त्रासदी के दौरान इनके द्वारा राहत कार्य आज भी याद करने योग्य है। मैथिल बहुल इलाकों में रोजगार कैंप लगा कर व घर घर जा कर रोजगार का अलख जगाने लगे। अब तक लगभग 4500 से 5000 से अधिक युवाओं को रोजगार से जोड़ चुकें हैं।
अटल बिहारी इंटरनेशनल ब्रॉदरहुड के सदस्य रह चुके झा जी विश्व मैथिल संघ के संयोजक रहते हुए और अखिल भारतीय मैथिल संघ के सचिव के साथ बतौर सदस्य मिथिला मिथिलांचल वासियों को दिन रात आगे बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर हैं। मिथिला के अलग अलग संस्थाओं को उनके अच्छे कार्यों के लिए शारीरिक एवं आर्थिक मदद करते रहते हैं। आज लाखों मैथिलि भाषी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत्र बन चुके अनिल कुमार झा किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
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