देश आज आज़ादी के 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। देश को आजाद कराने में अपना जीवन समर्पण करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जा रहा है। लेकिन मधुबनी जिले के बेनीपट्टी प्रखंड मुख्यालय में बनीं शहीद स्मारक शिलापट्ट एक ऐसे स्वत्रंतता सेनानी को सम्मान देने से वर्षों से चूक कर रही है, जिन्हें पहले स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हुए झंडोतोलन में रातों-रात जेल से रिहा कर तत्कालीन मधुबनी अनुमंडल के अनुमंडल पदाधिकारी ने पहली सलामी दी थी। वह स्वतंत्रता सेनानी थे बेनीपट्टी प्रखंड के त्योंथ गांव के गणेश चंद्र झा।

जब वाट्सन स्कूल से निकाले गये थे गणेश चन्द्र झा

मधुबनी जिले (पुराने दरभंगा जिला) के नरपतिनगर गांव में सम्भ्रांत जमींदार परिवार में जन्में सूरज नारायण सिंह बचपन से ही आंदोलनकारी, समाजवादी और क्रांतिकारी स्वभाव के थे। सूरज नारायण सिंह मधुबनी के वाटसन स्कूल के छात्र थे, जहां उनके साथी बेनीपट्टी प्रखंड के त्योंथ गांव के गणेश चन्द्र झा थे। वाटसन स्कूल के हेडमास्टर काफी सख्त थे, अंग्रेजी हुकुमत की हुजूरी करते थे। ऐसे में एक बार गणेश चन्द्र झा आज़ादी आंदोलन से जुड़ी एक पत्रिका लेकर स्कूल चले गये। मैदान के एक कोने में वह सूरज नारायण सिंह के साथ पत्रिका पढ़ने लगे, जिसे हेडमास्टर ने देख लिया। जिसके कारण दोनों को स्कूल से निकाल दिया गया। (वर्तमान में वाटसन स्कूल के नाम में सूरज नारायण सिंह का नाम भी जुड़ा हुआ है)

वाटसन स्कूल से निकाले जाने के बाद दोनों पढ़ने के लिए कलकत्ता चले गये, पढ़ाई के दौरान ही देश की आज़ादी में लगे उग्र क्रांतिकारियों से दोनों का परिचय हुआ। गणेश चन्द्र झा मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर मधुबनी लौट आये और पूर्णकालिक स्वतंत्रता सेनानी बन गये। गणेश चन्द्र झा गांधीजी के आह्वान पर 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ़्तारी देने वाले मधुबनी के अग्रणी क्रांतिकारी में थे। 6 माह तक उन्हें जेल में रहना पड़ा था। वहीं सूरज नारायण सिंह आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता से बनारस चले गये, जहां वह भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त आदि को ट्रेनिंग देने वाले मुजफ्फरपुर के क्रांतिकारी योगेन्द्र शुक्ल के सम्पर्क में आए। 1931 में भगत सिंह के फांसी की सजा ने उनकी जीवनरेखा बदल दी। वो सबकुछ छोड़कर क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हो गए, सैकड़ों लोगों को अपने साथ जोड़ा और दर्जनों मामलों में उनका नाम आया। 

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बीच ब्रिटिश पुलिस मधुबनी के क्रांतिकारी कांग्रेस गरम दल के सदस्य रहे गणेश चन्द्र झा के रुख से वाकिफ थी, ऐसे में गणेश चन्द्र झा को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इधर गांधीजी की गिरफ्तारी के खिलाफ  9 अगस्त 1942 को दरभंगा के मिथिला महाविद्यालय के छात्रों ने जूलूस निकाला। रामगढ़ में गांधीजी से मुलाकात के बाद उनके विचारों से असहमत भोगेन्द्र झा अपने पार्टी के रुख के विरुद्ध जाकर बढ़–चढ़कर गांधीजी की गिरफ्तारी के खिलाफ आक्रोश जुलूस में शामिल हुए।

मधुबनी में गिरफ्तार हुए गणेश चन्द्र झा को ब्रिटिश पुलिस अधिक दिन तक जेल में बंद नहीं रख सकी। वे अगले ही दिन 10 अगस्त को 11 बजे दिन में जेल का फाटक तोड़कर 88 बंदियों को मुक्त कराते हुए खुद भी जेल से भाग गये। पुलिस से बचने के लिए भूमिगत होकर मधुबनी थाना व कचहरी पर तिरंगा लहराने की योजना बनाने लगे। पुलिस अब उन्हें भूखे शेर की तरह ढूंढ रही थी। इधर जिले में गणेश चन्द्र झा द्वारा जेल का फाटक तोड़ कर निकलने की खबर फैलने लगी, सभी के जोश उत्साह में वृद्धि होती गई।

गांव–गांव में लोग सूरज नारायण सिंह व गणेश चन्द्र झा की लोकप्रियता के गीत गाने लगे थे

‘चलल गणेश तिरंगा लएक
दहकैत सूरज तेज प्रताप
अंग्रेजक छक्का छुटैत छैक
हेतैक भारत आब आज़ाद’ 

मधुबनी का सूड़ी हाई स्कूल आज़ादी आंदोलन का केंद्र बना हुआ था, जहां गणेश चन्द्र झा अपने अनुभवों को वहां के छात्र राज कुमार पूर्वे, चतुरानन मिश्र, तेज नारायण झा, श्रीमोहन झा, विश्वनाथ मल्लिक, ध्रुव कुमार दत्त सरीखे सैकड़ों छात्र के साथ साझा करते थे। एक तरह से सभी क्रांतिकारी परिस्थिति के अनुसार हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार हो रहे थे। 14 अगस्त को मधुबनी में करीब 5 हजार की संख्या में किसान, मजदूर, छात्र व बच्चे सूड़ी हाई स्कूल से तिरंगा लेकर थाना और कचहरी की और उन्मत होकर

‘हमारे खून से बनें हैं गोरे, हमीं को काला बता रहे हैं
हमीं से पैसा वसूल कर, हमीं को जालिम सता रहे हैं’

जैसे नारा लगाते हुए निकले। सरकारी कार्यालयों पर कांग्रेस का तिरंगा लगाने की तैयारी थी। आगे आगे तिरंगा लेकर गणेश चन्द्र झा, श्रीमोहन झा, चतुरानन मिश्र, तेज नारायण झा, राज कुमार पूर्वे, विश्वनाथ लाल कर्ण, बैद्यनाथ पंजियार, इन्द्रलाल मिश्र, महावीर कारक, अनंत महथा, भगवती चौधरी, राम सुदिष्ट भगत, रामेश्वर दास, लक्ष्मी नारायण साह, मार्कंडेय भगत, महादेव साह, कामेश्वर साह चल रहे थे। नीलम सिनेमा चौक के पास हुजूम पहुंचते ही जुलूस पर लाठीचार्ज हो गया। जैसे–तैसे भीड़ थाने के तरफ रुख किया, जहां मधुबनी के दारोगा राजबली ठाकुर अपनी बंदूक तान निशाना लगा रहे थे, गोली चलने लगी। गणेश ठाकुर व अकलू महतो तत्क्षण शहीद हो गये। गणेश चन्द्र झा पर बर्बरतापूर्वक लाठी व बंदूक के कुन्दा से प्रहार होने लगा। जुलूस तितर–बितर होने का नाम नहीं ले रहा था। गणेश चन्द्र झा लहुलुहान होकर जमीन पर गिर पड़े, पुलिस वाले उन्हें घसीटते हुए थाने ले जा रहे थे। 

दारोगा राजबली ठाकुर बूट से मारते हुए उन पर थूकते हुए लाठी चला रहे थे। उन पर कब राजबली ठाकुर गोली चला दे कोई ठीक नहीं, तब तक दरभंगा के एसपी सेल्सबरी मधुबनी पहुंच गये। उन्होंने राजबली ठाकुर को फटकार लगाते हुए चेतावनी देकर शांत किया। कई गिरफ्तार भी हुए जिन्हें मोतिहारी जेल भेज दिया गया। मधुबनी के जुलूस पर पुलिसिया दमन के बाद गिरफ्तारी से बच निकलने वाले राज कुमार पूर्वे, तेज नारायण झा, श्रीमोहन झा अलग–अलग जत्था बनाकर जिले के अलग–अलग दिशाओं में निकले। राज कुमार पूर्वे ककरौल गांव में अपने साथी द्वारिका ठाकुर के यहां रुके। सुबह बेनीपट्टी की तरफ रुख किये, रास्ते में जहां भी टेलीग्राफ के खंभे तार मिलते गये उसको तोड़ते हुए सभी आज़ादी के गाने गाते हुए आगे बढ़ते रहे।

मधुबनी के जुलूस में गणेश ठाकुर की गोली लगने से मौत हो गई थी, इधर मधुबनी सहित बेनीपट्टी इलाके में यह शोर हो गया कि त्योंथ वाले गणेश चन्द्र झा शहीद हो गये। संचार का कोई समुचित साधन नहीं था, ऐसे में यह अफवाह फैलती चली गई। अंग्रेजों से बचने के लिए बेनीपट्टी के परसौनी गांव में लोअर प्राइमरी मिडिल स्कूल में क्रांतिकारियों ने डेरा डाला। मधुबनी में गणेश बाबू की हत्या, कई की गिरफ्तारी व दरभंगा में भोगेन्द्र झा की गिरफ्तारी की खबरों के आम होने पर बेनीपट्टी में स्वतः स्फूर्त भीड़ जुटने लगी। परसौनी कैंप से भी लोग बेनीपट्टी पहुंचे जहां असंख्य भीड़ ने बेनीपट्टी थाना, पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले कर दिया गया।

लंबे संघर्ष, हजारों बलिदान के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। अगले दिन 16 अगस्त, 1947 को लाल किले के प्राचीर पर जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा झंडा फहराया। इसके साथ ही इसी दिन देश के सभी सरकारी कार्यालयों में झंडा फहराते हुए आज़ादी के नायकों को जेल से रिहा कर सलामी देने के आदेश जारी हुए थे। लिहाजा दरभंगा मधुबनी में भी जश्न का माहौल था। आज़ादी के संग्राम में जेल में बंद सेनानियों को रिहा कर उन्हें सलामी दिए जाने के आदेश हुए। जेल में बंद बेनीपट्टी क्षेत्र के तेज नारायण झा, राजकुमार पूर्वे, श्रीमोहन झा, माझी साह, गोकुलानंद चैधरी सहित सभी क्रांतिकारी को जेल से रिहा किया गया। रातों–रात मोतिहारी जेल में बंद बेनीपट्टी प्रखंड के त्योंथ गांव के गणेश चंद्र झा को रिहा कर मधुबनी लाया गया। 

मधुबनी में हजारों की संख्या में लोग आज़ादी के जश्न में शामिल थे। मधुबनी टाउन क्लब मैदान के पास हजारों लोगों के भीड़ के बीच प्रशासन की मौजूदगी में गणेश चंद्र झा को घोड़े पर बिठाकर आज़ादी के जश्न के नारे के साथ भीड़ लोकल बोर्ड मैदान के तरफ बढ़ रही थी। जहां पहुंचने पर मधुबनी के एसडीओ भागवत प्रसाद ने गणेश चंद्र झा को पहली सलामी दी।

इस तरह से त्योंथ गांव के गणेश चंद्र झा मधुबनी अनुमंडल के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें सलामी दी गई थी। यह बेनीपट्टी प्रखंड के लिए गौरव की बात है, लेकिन प्रखंड मुख्यालय में बना शहीद स्मारक पर उनका नाम भी अंकित नहीं है।


गणेश चंद्र झा 1949 में जिला लोकल बोर्ड के चेयरमैन भी बनें। गांव–गांव स्कूल खोले जाने का श्रेय इन्हीं का है, आज़ादी के बाद इलाके में शिक्षा के प्रसार के लिए इनके प्रयासों की तारीफ लोग आज भी करते हैं। हर गांव में शिक्षित जागरूक लोगों की तलाश कर उनके घर दरवाजे पर गुरुकुल की भांति स्कूल का चलन उन्होंने शुरू करवाया। स्वास्थ्य, पेयजल व सड़क पर भी खूब काम हुआ। 1954 में जिला परिषद के अध्यक्ष भी बनें। 1980 में मधुबनी में उनका देहावसान हुआ।


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