बेनीपट्टी प्रखंड के जगत गांव निवासी डॉ उदित नारायण झा का गुरुवार को निधन हो गया। वह 74 वर्ष के थे, इन दिनों बेहतर स्वास्थ्य लाभ के लिए व दिल्ली में अपने पुत्र केशव झा के साथ थे। डॉ उदित नारायण झा उम्र के साथ स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे थे। हाल में ही उन्हें इलाज के लिए एक निजी अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। जहां से वह स्वास्थ्य सुधार के साथ दिल्ली स्थित अपने पुत्र के घर लौटे थे।
इसी क्रम में 15 अगस्त गुरुवार को उनका निधन हो गया। जिसके बाद उन्हें सड़क मार्ग से पैतृक गांव जगत लाया गया। जहां देर शाम उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। उनके इकलौते पुत्र केशव झा ने उन्हें मुखाग्नि दी। दिवंगत डॉ उदित नारायण झा अपने पीछे पत्नी एक पुत्र, पुत्रवधु, दो पौत्र संग पांच पुत्रियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। उनके पुत्र केशव झा वर्तमान में गांव से लेकर दिल्ली तक विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं।
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डॉ उदित नारायण झा अपने ज़माने के टॉपर छात्रों में थे। मूल रूप से जगत ग्राम के पुवारी टोल में जन्म लेने वाले डॉ उदित नारायण झा के माता का बचपन में ही निधन हो गया। ऐसे में वह उच्चैठ भगवती को ही जीवनपर्यंत अपनी मां मानते थे। उच्चैठ भगवती के परम उपासक डॉ झा अपने ज़माने के जिला टॉपर में शामिल थे। उन्हें तीसरी कक्षा से ही छात्रवृति मिलनी शुरू हो गई थी। जो कि उनका सफर गांव के स्कूल से लेकर मुम्बई युनिवर्सिटी जारी रहा। 60 के दशक में बेनीपट्टी के श्री लीलाधर उच्च विद्यालय के जाने माने शिक्षक प्रधानाध्यापक राजवंशी बाबू के वह मैट्रिक की पढ़ाई के समय परम शिष्यों में एक थे। बेनीपट्टी के श्री लीलाधर उच्च विद्यालय में पढ़ाई के दौरान उनके सहपाठी मित्र वरिष्ठ चिकित्सक डॉ प्रभात रंजन सुल्तानिया, दंत चिकित्सक डॉ विनोदानंद झा, डॉ जगदीश झा सहित आस पास के अनेकों गांव के वरिष्ठ प्रतिष्ठित लोग शामिल थे।
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शिक्षा के साथ जीवन में उनके किये गये कार्यों से उनकी अलग सम्मान व ख्याति थी। पढ़ाई के बाद उन्होंने अहमदाबाद में लुपिन फार्मा से लेकर अनेको मेडिसीन की बडी कंपनियो में काम किये। आगे चलकर वह टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी कई अहम पदों पर काम किये। इस दौरान उन्होंने सैकड़ों लोगों को टेक्सटाइल क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये। निजी सेक्टर से सेवानिवृत होकर वह जीवन के अधिकांश समय गांव में रहे। जहां गांव में रहते हुए उन्बेहोंने कोचिंग की शुरुआत की। साथ ही गांव के महादेव स्थान में अपने निजी जमीन पर उन्होंने पहला हालर चक्की लगवाये थे। नब्बे के दशक में महामारी को देखते हुए उन्होंने गांव में पहले क्लिनिक की भी शुरूआत की थी।
उनके निधन से उन्हें चाहने वालों व ग्रामीणों में शोक की लहर है, सभी उनके स्वभाव व नेक कार्यों की चर्चा कर उन्हें याद कर रहे हैं।
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