बेनीपट्टी(मधुबनी)। शिक्षा दान महादान... ये आदर्श बातें एक समय लोगों की जुबां पर बस गया था। उस समय गुरुकुल पद्धति के चलन में होने के कारण सभी बच्चे एक साथ पढ़ते थे, लेकिन, शिक्षा में गुणवत्ता के नाम पर हुई बाजारीकरण का प्रभाव अब धीरे धीरे बीमारी का रूप अख्तियार कर रही है। खासकर, निजी स्कूलों में बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अंग्रेजी माध्यम का ख्वाब अभिभावकों के लिए भारी साबित हो रहा है।
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कई गार्जियन तो अप्रैल माह के नाम से ही डर जाते है, जहां बेलगाम हो चुके कीमती पाठ्य पुस्तक, स्कूल के डेवलपमेंट शुल्क से लेकर कम्प्यूटर और न जाने अन्य सुविधाओं की भारी भरकम फीस की सोच ही अभिभावकों को परेशान कर देती है। सूत्रों की माने तो बेनीपट्टी में फैल चुके निजी स्कूलों में ही बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती है। कई स्कूल में तो बाकायदा, किताब, ड्रेस-जूता से लेकर टाई बैच तक पैसा लेकर छात्रों को उपलब्ध कराया जाता है। बताया जा रहा है कि हर वर्ष निजी स्कूलों में पुस्तकों को बदल दिया जाता है। इस चक्कर में डिस्ट्रीब्यूटर से लेकर स्कूल प्रबंधन तक की चांदी कटती है। सूत्रों की माने तो पुस्तकों पर पचास से साठ प्रतिशत तक का पैसा कमीशनखोरी में बंट जाता है।
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गौरतलब है कि, सीबीएसई के द्वारा ये स्पष्ट किया जा चुका है कि, स्कूल प्रबंधन के द्वारा पुस्तकों की बिक्री नहीं होगी, बावजूद, ये नियम कागज पर सिमट कर रह गई।
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