बेनीपट्टी(मधुबनी)। मिथिला में चौरचन का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। चौरचन को कुछ भागों में चौठचंद्र भी कहा जाता है। ये पर्व ऐसा है कि जिसमें चांद की पूजा बड़े ही धूमधाम से होती है। हालांकि, मिथिला का अधिकतर पर्व प्रकृति से ही जुड़ा हुआ है। ये पर्व पुत्र के दीर्घायु होने के लिए किया जाता है।


क्षेत्र की महिलाओं ने बताया कि चौरचन के दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत करती है। शाम को भगवान गणेश की पूजा कर चांद की विधि विधान से पूजा कर व्रत को तोड़ती है। पूजा स्थल पर पिठार (पिसे हुए चावल) से अरिपन बनाया जाता है। फिर उसी अरिपन पर बांस से बने डाली में फल, पिरिकिया, टिकरी, ठेकुआ ओर मिट्टी के बर्तन में दही जमा कर पूजा की जाती है। पूजा के बाद घर के सभी सदस्य डाली व दही के बर्तन से चंद्रदेव को अर्ध्य देते है। उसके बाद सभी प्रसाद ग्रहण करते है।


इस पर्व के मनाने का क्या है कहानी


ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद के चौठ के दिन भगवान गणेश ने चंद्रमा को शाप दे दिया था। पुराणों में दर्ज है कि चंद्रमा को अपने सुंदरता पर बहुत घमंड हो गया। जिसके मद में आकर उसने भगवान गणेश की उपहास कर दी। इससे आक्रोशित होकर भगवान गणेश ने चंद्रमा को शाप दे दिया कि जो भी इस दिन चांद देखेगा, उसे कलंक लगने का डर रहेगा। इस शाप से मुक्ति हेतु भादो के चतुर्थी के दिन चांद ने भगवान गणेश की पूजा अर्चना की। चांद को अपने गलती का एहसास हो गया था। काफी देर बाद भगवान गणेश खुश होकर उसे वरदान दिया कि, जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा करेगा, उसे कलंक नहीं लगेगा। तब से इस चौरचन को मनाया जाने लगा।


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