बेनीपट्टी(मधुबनी)। स्वच्छता अभियान को मूर्तरुप देने की कवायद में जुटा प्रखंड प्रशासन को शिक्षा विभाग से भरपुर समर्थन नहीं मिल रहा है। प्रखंड के दर्जनों विद्यालय में शौचालय के अभाव के कारण छात्र तो दूर शिक्षकों को भी खुले में शौच जाना पड़ रहा है। बावजूद शिक्षा महकमा शौचालय निर्माण के प्रति सकारात्मक पहल नहीं करती दिखाई दे रही है। स्थिति इस कदर जटिल हो गई है कि गांव के लोग खुले में शौच जाने को परंपरा मान रहे है। प्रखंड के समदा पछिवारी टोल के प्राथमिक विद्यालय में शौचालय का निर्माण नहीं होने के कारण छात्रों के साथ शिक्षकों को भी खुले में शौच त्याग करना पड़ रहा है। जिससे गांव के साथ पूरे समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। फलतः स्वच्छता अभियान पर इसका प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना दिखाई दे रही है। बता दें कि प्राथमिक विद्यालय, समदा सुदूर ग्रामीण इलाकों में संचालित किए जाने के कारण मनमानी ढंग से संचालन किया जा रहा है। जहां विभाग की तमाम कोशिश व निर्देश धरातल पर दम तोड़ता नजर आ रहा है। शुक्रवार के करीब दस बजे के आसपास विद्यालय का जायजा लिया गया तो प्रभारी समेत दो शिक्षिका अवकाश में पाई गई। वहीं उपस्थित तीन शिक्षक विद्यालय का कार्यभार देख रहे थे। वर्ग में पहुंचने पर एक शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे थे। विद्यालय का करीब आधा पहर होने के बावजूद उपस्थिति पंजी पर छात्रों की उपस्थिति नहीं बनाई गई थी। जिससे विद्यालय में फर्जी उपस्थिति दर्ज कराने से इंकार नहीं किया जा सकता है। वहीं वर्ग एक व वर्ग दो में शिक्षा दे रही शिक्षिका से जब आसान से सामान्य ज्ञान के सवाल किए गए तो शिक्षिका जवाब देने से असक्षम साबित हुई। हैरत है कि वर्ग एक व वर्ग दो के छात्रों को शिक्षा देने वाली शिक्षिका को आसान से स्टूडेंट व क्लास की स्पेलिंग बताने में असक्षम साबित हुई। जिससे साफ है कि विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था चौपट हो चुकी है। वहीं पास खड़े एक ग्रामीण ने बताया कि, जब शिक्षक को ही कुछ नहीं आता है तो वे छात्र को क्या शिक्षा दे पाती होंगी। ग्रामीण का सवाल वाजिब था। वहीं एमडीए योजना के तहत पकाए गए छोला में मशाला के बजाए हल्दी अधिक डाल दी गई थी। काफी कुरेदने के बाद सहायक शिक्षक ने बताया कि यहां एमडीएम के बाद फल दी जाती है। एक शिक्षक फल लाने के लिए गए हुए है। उधर विद्यालय का चहारदिवारी का निर्माण नहीं होने से दिन भर आवारा पशुओं के साथ आम लोगों की स्कूल से आवाजाही होती रहती है। जिससे बच्चों के शैक्षणिक माहौल प्रभावित हो रहा है। देखा जाए तो उक्त विद्यालय बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में नाकाम साबित हो रही है।


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