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76वें गंणतंत्र दिवस के अवसर पर दिनांक 26 जनवरी 2025 को रंग ठिया ने संगीत नाटक अकादेमी, भारत सरकार के सहयोग से देश की राजधानी दिल्ली के मयूर विहार स्थित यूनीकॉर्न एक्टर स्टूडियो में मैथिली के प्रसिद्ध महेन्द्र मलंगिया लिखित नाटक 'बिरजू, बिलटू आ बाबू' का सफल मंचन किया, जिसका निर्देशन माया नन्द झा ने किया। इस बाबत जानकारी देते हुए रंग ठिया के संयोजक श्रध्दा नन्द झा ने बताया कि  साहित्य अकादेमी पुरस्कृत महेन्द्र मलंगिया लिखित नाटक 'बिरजू, बिलटू आ बाबू' एक निम्न मघ्यम वर्गीय परिवार की आर्थिक स्थिति और परिवारिक वैमनस्यता को दर्शाता एक मार्मिक नाटक हैं।

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इस नाटक में आर्थिक विपन्नता के कारण एक पिता को अपने दोनो बेटे बिरजू और बिलटू मे से सिर्फ बिरजू को ही शिक्षा दिला पाता है और बिरजू अपनी पढ़ाई के पश्चात कलकत्ता मे नौकरी करने लगता है। वहीं बिलटू गाँव मे ही रहता है और खेती व माल मवेशी को संभालता है। समय का पहिया अपनी गति से बढ़ता है और दोनों भाईयों की शादी हो जाती है। शादी व बच्चे होने के पश्चात बिरजू की पत्नी अपने कुटिल चरित्र से दोनों भाईयों के बीच बंटबारा करबा देती है। पिता बिरजू के घर में भोजन करने लगते है। बिलटू की आर्थिक स्थिति दिन ब दिन विपन्न होती चली जाती है और वह अन्न-वस्त्र के लिए भी मोहताज रहता है। बिलटू की बेटी, जब भी बाबू भोजन करते है तो उनके नजदीक पहुंच जाती है इस लोभ में की बाबा के साथ भरपेट भोजन मिल जाएगा, यह बडी बहू भौजी को पसंद नही है और वह अपने ससुर को भला बुरा कहती रहती है।

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इधर यह सब बातें सुनकर बिलटू और उसकी पत्नी को काफी कष्ट होता रहता है। बिलटू अपनी पत्नी से कहता है कि पढ़ाई तो मैं भी करना चाहता था, पर बाबू ने कहा कि हम तुम दोनों के पढ़ाई का खर्च नहीं भर सकता। इस नाटक में कुछ ऐसे पड़ाव आता है जहां पिता का सकारात्मक सोच एक टिले की तरह ढ़ह जाता है। परिवारिक वैमन्सयता बढ़ने के कारण घर-परिवार में कलह होने लगता है। पिता को अपने द्वारा लिए गए निर्णय पर पश्चाताप के साथ एहसास होता है कि सभी बच्चों का पढ़ाई आवश्यक है और अंत मे वह दोनों बेटों-बहु के समक्ष यह निर्णय सुना देता है कि बिरजू तुम नौकरी कर रहे हो तो नौकरी करो अब खेती की जमीन बिलटू की होगी।

बिलटू के चरित्र उत्पल नीतीश प्रथम अभिनित नाटक मे  अपने अभिनय से खुद को दर्शको के दिल में जगह बना लिया। बिरजू के भूमिका मे आदित्य कुमार को दर्शकों ने खूब सराहा। भौजी के कुटिल चरित्र को सुरभी मिश्र ने सहजता के साथ न्याय किया। संजना मिश्रा ने अपने अभिनय से कनिया के चरित्र को जीवन्त कर दिया। बच्ची के रूप आरोही झा ने लोगों को अपने अभिनय से मन मोहा। बाबू के चरित्र माया नन्द झा ने बखूबी अंजाम दिया और अपने अभिनय क्षमता से दर्शकों के आंखों में आंसू भर दिया। मुख सज्जा श्री मुकेश झा के द्वारा किया गया। पार्श्वगायन राजीव रंजन झा ने किया। गीत लिखा था माया नन्द झा व सोनी नीलू झा ने। नाटक मे वस्त्र परिकल्पना रिंकू मिहिर झा ने किया तो पार्श्व संगीत संयोजन दीपक जायसवाल का था और प्रकाश परिकल्पना संजीव कुमार का किया। मंच सामग्री व मंच प्रबंधन अनन्या मिश्रा के द्वारा किया गया। पूर्वाभ्यास प्रभारी भाष्कर झा थे। प्रचार-प्रसार मानसी ने किया था। रंग ठिया द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का परिकल्पना एवं निर्देशन माया नन्द झा ने किया है।


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