बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल और गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में बिहार के कुछ ही ऐसे सीट हैं जिन पर महागठबंधन या एनडीए के उम्मीदवार चैन की सांस ले रहे हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम में महागठबंधन को जनादेश मिलने के कुछ समय बाद ही सीएम नीतीश कुमार के महागठबंधन का साथ छोड़ पाला बदल एनडीए में शामिल होने के कारण कई सिटिंग विधायकों ने भी अपना पाला बदल लिया. 

2019 के लोकसभा चुनाव में भी दल-बदल का खेल बखूबी चलता रहा. अब सुरक्षित राजनितिक भविष्य की संभावना की तलाश में दल बदलने वाले नेताओं की उम्मीदें अपने अपने नए दलों के कर्णधारों पर टिकी हुई है, जो की आने वाले कुछ दिनों तक यही हाल रहने वाला है. क्योंकि महागठबंधन हो या एनडीए, कोई भी गठबंधन ना तो सीट शेयरिंग को लेकर अंतिम निर्णय पर पंहुच सकी है, और ना ही इस वजह से कोई दल चयनित उम्मीदवारों का पत्ता खोल पा रही है. 

पेंचीदगी से भरी ऐसी सी कुछ सीटों में पालीगंज विधानसभा, हरलाखी विधानसभा जैसे सीट हैं जिन पर जीते हुए विधायक जो कि दूसरे दल के थे उन्हें 2020 के चुनाव के नजदीक आते आते खासकर जदयू ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया. ऐसे में इन विधायकों का समावेश टिकट बंटवारे में कैसे होगा, यह आने वाले एक से दो दिनों में साफ़ हो जायेगा.

पालीगंज विधानसभा सीट की बात करें तो यहां से जय वर्धन यादव 2015 के चुनाव में राजद के टिकट पर विधायक बनें थे, जो कि हाल में ही जदयू ज्वाइन किये हैं. इस सीट पर 2015 से पहले बीजेपी के उम्मीदवार को जीत मिलती रही है ऐसे में इस सीट पर बीजेपी अड़ गई है, वहीं नीतीश कुमार के लिए  यह सीट जदयू खेमे में लाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.

कुछ इसी तरह का, दल-बदल का समीकरण हरलाखी विधानसभा का भी है लेकिन यहां एनडीए की प्रमुख घटक दल बीजेपी का दावा उतना मजबूत नहीं है, जितनी समस्या पालीगंज सीट पर है. हरलाखी सीट जदयू के खेमे है इसमें अब कोई शंका नहीं रह गई है. 

हरलाखी विधानसभा सीट की बात करें तो 2015 के चुनाव में इस सीट पर एनडीए के घटक दल रालोसपा के उम्मीदवार दिवगंत बंसत कुशवाहा ने जीत हासिल की थी. उनके निधन के बाद  बंसत कुशवाहा के पुत्र सुधांशु शेखर उपचुनाव में काफी अच्छे अंतर से जीतने में कामयाब रहे. बाद में उन्होंने रालोसपा यानी 
उपेन्द्र कुशवाहा का साथ छोड़ जदयू का दामन थाम लिया. इस बार वह जदयू के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में होंगे, यह तय हो चुका है. 

वहीं महागठबंधन के तरफ से हरलाखी सीट सीपीआई को मिलने जा रही है. महागठबंधन के सूत्र बताते हैं कि हरलाखी सीट उसी स्थिति में महागठबंधन खेमे से सीपीआई को नहीं मिलेगी, जब राजद, कांग्रेस और सीपीआई अलग-अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला ले लें.  महागठबंधन में रहते हुए हरलाखी सीट सीपीआई को मिलनी है, जिसकी औपचारिक घोषणा ही शेष है. मधुबनी जिले में हरलाखी विधानससभा के अलावे एक और विधानसभा सीट पर सीपीआई की दावेदारी मजबूत है. महागठबंधन के सीट समझौते को लेकर नई कवायद में राजद के 134 से 136 सीटों पर, कांग्रेस 68 सीटों पर, जबकि सीपीआई माले 19 सीट, सीपीआई (M) के दस सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमती बनी है. साथ ही राजद कोटे से वीआईपी के 10 से 12 उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं.


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