जौवाद हसन।


देश भर में मनाए जा रहे चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के दौरान अनोखा कार्यक्रम बिहार के चंपारण में ही आयोजित हुआ। 15 अप्रैल को पूर्वी चंपारण के एक छोटे से गांव फुलवरिया में लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया। किसी गांव में लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन अपने.आप में बेहद खास बात थी। फुलवरिया गांव जिले के सुगौली प्रखंड में है और आज़ादी की लड़ाई में इस गांव के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शायद यही वजह है कि गांव में आयोजित इस कार्यक्रम में कई नामचीन हस्तियों ने शिरकत की। कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे यूपी के पूर्व डीजीपी और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी विभूति नारायण राय ने इस कार्यक्रम को बापू के सपनों का कार्यक्रम बताया। राय ने कहा कि बापू ने गांवों को समृद्ध बनाने के जो रास्ते सुझाए ये कार्यक्रम उसी रास्ते पर एक यात्रा है। श्री राय देश के जाने.माने स्तंभकार और लेखक भी हैं। गांव के लोगों के बीच पहुंचे देश के बड़े लेखक.पत्रकारों में अरविंद मोहन भी शामिल थे। इस मौक़े पर अरविंद मोहन की लिखी तीन किताबों का विमोचन भी हुआ। तीनों किताबें चंपारण सत्याग्रह पर लिखी गईं हैं।चम्पारण सत्याग्रह के सहयोगी और चम्पारण सत्याग्रह की कहानी को सस्ता साहित्य मंडल ने प्रकाशित किया है जबकि प्रयोग चम्पारण ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। मौके पर अरविंद मोहन ने कहा कि चंपारण के किसानों को एक बार फिर नील की खेती शुरू करनी चाहिएए इस बार ये खेती खुद के मुनाफे के लिए होगी न कि अंग्रेजों के मुनाफे के लिए। वरिष्ठ पत्रकार और प्रभात खबर अखबार के संस्थापक संपादक एस एन विनोद ने चंपारण सत्याग्रह के इतिहास को याद किया। इस मौके पर ऑल इंडिया रेडियो के पूर्व डायरेक्टर जनरल और देश के जाने.माने कवि लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने कहा कि अगर ये कार्यक्रम नहीं होता तो उन्हें सत्याग्रह भूमि पर आने का मौक़ा नहीं मिलता। गांव में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में स्थानीय सांसद डॉ संजय जायसवाल भी शामिल हुए और उन्होंने कहा कि इस किस्म के आयोजन का गांवो में होना निश्चित तौर पर बहुत ही सराहनीय प्रयास है।

     कार्यक्रम का आयोजन भोर ट्रस्ट नाम की एक संस्था ने किया था। इस मौके पर गांधी की चंपारण यात्रा से जुड़ी एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया। भोर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजक और वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन झा ने कहा कि चंपारण में गांधी का आंदोलन ये साबित करता है कि जुर्म के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन करके भी गुलामी से मुक्ति पाई जा सकती है। समारोह में पंचायत प्रतिनिधियों और गांधी से जुड़े सवालों का जवाब देने वाले गांव के करीब 50 स्कूली बच्चों को भी सम्मानित किया गया।


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