मिथिला विशेष : मिथिला में अभी मधुश्रावनी का त्यौहार चल रहा है। क्षेत्र के विभिन्न धार्मिक जगहों पर नवविवाहिताओं की टोली अपने सखियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए गीत गाते हुए दिख रही है। यूँ कहें की मधुश्रावनी के इस त्यौहार में नवविवाहिताओं के सौंदर्य और आराधना का समागम पसरा हुआ है। नवविवाहिताओं का एक अविनव अनुष्ठान मधुश्रावनी यही एक मात्र पर्व है जो सिर्फ मिथिला में प्रमुखता के साथ और मिथिला के अतिरिक्त बिहार या देश के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। 
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है मधुश्रावनी अर्थात मधु भरा सावन। सचमुच यह सावन मधुमय ही होता है। सावन कृष्ण पक्ष के पंचमी से प्रारंभ होकर शुक्ल पक्ष तृतीया को इसका समापन होता है। इस पंचमी को नागपंचमी भी कहते हैं और यह त्यौहार नागपूजा ही है। नागपूजा बड़े ही नियम-निष्ठां और रीति-रिवाज से किये जाते हैं। मधुश्रावनी के दौरान नाग पूजा, और गौरी के अर्चना गीत गया जाता है जिससे पूरा गांव गुंजायमान रहता है। नवविवाहिता और उनकी सखियां अलग-अलग प्रकार के फूल चुनकर डाला सजाती हैं। मंदिरों में घूम कर सुहाग और गौरी के परम्परागत गीत गाती हैं। चुने हुए फूलों से दूसरे दिन घर में बने कोहबर में नाग-नागिन और शिव-शक्ति की पूजा होती है। ये सिलसिला कुछ परिवारों में 13 दिन तो कुछ में 15 दिनों तक चलता है।  

मिथिला में शादी के बाद लड़कियां तुरत ससुराल नहीं जाती। दूल्हा ही शादी के बाद दो चार दिन या एक सप्ताह ससुराल में रहता है। मिथिला में अक्सर जेठ-आषाढ़ महीने में ही शादी होती है और फिर दूल्हा मधुश्रावणी में ही ससुराल आता है तो इसे नवविवाहितों के मधुयामिनी से भी जोड़ दिया गया है अर्थात आधुनिक भाषा में हनीमून।
नागपंचमी से एक दिन पहले नहाय-खाय होता है। शुद्ध सात्विक भोजन, अरवा-अरवाइन। इस दौरान लड़कियों के लिए ससुराल से ही खाने पीने और पहनने ओढने की सामिग्री आती है। इन तेरह दिन नव विवाहिताएं ससुराल का ही अन्न खाती हैं। विधिवत नग पूजा और गौरी पूजा करती हैं, अपने से फूल पत्ते तोड़ कर लाती हैं। गौरी के लिए लाल फूल और नाग के लिए विभिन्न प्रकार के पत्ते मैना के पत्ते पर नाग नागिन काजल, मेहदी और सिन्दूर से बनाये जाते हैं। फिर उसी पत्ते पर मिटटी से बने नाग नागिन को स्थापित किया जाता है। नाग नागिन का जोड़ा इतना सुन्दर, इतना जीवंत लगता है कि अब बोला तब बोला। मेहदी के श्रृंगार से नाग-नागिन की सुंदरता और द्विगुणित हो जाती है। नाग-नागिन को कनेर के पत्ते, अमरुद के पत्ते, जाही-जुही और बांस के पत्ते से ढँक दिया जाता है। नागों को सावन प्रिय है, हरियाली प्रिय है, सुगन्धित फूल प्रिय है। उन्हें विचरण करने के लिए सावन से उत्तम महीना भला और क्या हो सकता है ?
विषहरा के स्वागत गीत से पूजा शुरू होती है..
                        राम सात बहिनी विषहरि सातो कुमारि
                        छोटकी बहिनि विषहरी अम्मा के दुलारि
                        सातो बहिनि मिलि खेले झिल् हेरि
                        छोटकी बहिनि करे बड उत्फाल .
ये तो हुआ आवाहन। पूजा के बाद दीप-दीप हराजागू भरा, मोती-माती भरू घरा, नाग बारहू, नागिन बारहू पांचो बहिन विषहरी बारहू, कुन्ना मुन्ना मामू बारहू, बाल बसंता भैया बारहू, बासुकी राजा बाप बारहू ,बासुकैन माय बारहू।
जिनके प्रसादे हाथ कटोर पहिरन पटोर सोना कटोरा दूध भात भेटल आस्तीक आस्तीक बोल कर नाग नागिन को प्रणाम किया जाता है। दूध लाबा चढ़ाया जाता है प्रति दिन एक कथा होती है। पृथ्वी के जन्म से लेकर नाग पूजा की महिमा, लिली चनैक और गोसाउनि की कथा शिव पार्वती के पारिवारिक जीवन, उनके नोंक झोंक की अनेक मजेदार कथाएं कही और सुनी जाती हैं हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए नवविवाहिता अपने पति के दीर्घ आयु की कामना करती है। और फिर गौरी पूजा सदैव आराध्या, सदैव वंदनीय और सर्व मंगला। बिना गौरी के आशीर्वाद जीवन कैसे सुफल हो ? फिर घर की भगवती को प्रणाम कर पूजा का समापन होता है..
तेरहवें दिन मधुश्रावणी होता है अर्थात पूजा का समापन भी लंबी प्रतीक्षा के बाद पति-पत्नी का मिलन होता है शायद इसीलिए इसका नामकरण मधुश्रावणी किया गया होगा। 
इस पूजा के साथ एक विचित्र परंपरा भी जुडी हुई है। यूँ तो मधुश्रावणी एक तरह से मधुयामिनी का पर्याय है। नव विवाहिताओं के पति इस पर्व में निश्चित  रूप से आते हैं। उनकी उपस्थिति पर्व के अनुष्ठान में चार चंद लगा देते हैं। हास-परिहास, मान-मनौअल का ऐसा समां बंधता है कि पूछिए मत "गिरा अनयन नयन बिनु बाणी" वाली स्थिति हो जाती है। पूजा के दौरान दूल्हा पीछे और दुल्हन आगे बैठती है। समाप्ति के समय सिन्दूर दान होता है। फिर लड़की के ठेहुने और पैर पर पान का पत्ता छेड़ कर के रख दिया जाता है। दूल्हा दुल्हन के आँखों को अपने हाथों से मूंदता है। विधिकरी पतले-पतले रुई कि बत्ती को (जो घी में भिंगोया रहता है )जलाकर पैर और ठेहुने को हल्का सा दाग देती है। फिर पैर और ठेहुने पर पिठार (चावल के आटे का घोल ) डाल दिया जाता है। दुल्हन के पैर और ठेहुने पर फफोले हो जाते हैं। ऐसी भ्रान्ति है कि जितना बड़ा फफोला होगा उसे दूल्हा उतना अधिक प्यार करेगा। कुछ भी हो मधुश्रावणी वास्तव में मधुश्रवा है। पति-पत्नी के मिलन का एक आनंदोत्तेजक त्यौहार और सावन का अनुपम उपहार।

साभार : अन्य 


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