खास रिपोर्ट। बिकास झा : दबंग लुक के साथ गोरे चेहरे पर महंगा चश्मा, काले रंग की फुल टी-शर्ट और ब्रांडेड पैंट पहना यह शख्स न तो कोर्इ फिल्म अभिनेता है और न हीं कोर्इ वीवीआर्इपी। बल्कि कानून की नजर में वह मुजरिम है, जिसके सिर पर हत्या, लूट, रंगदारी, भयादोहन, विस्फोटक अधिनियम तथा आम्र्स एक्ट के कोर्इ 29 से अधिक मामले दर्ज हैं। एक बार फिर यह शख्सियत दरभंगा इंजिनियर मर्डर कांड में संलिप्तता के कारण चर्चा में है। यह शख्स वो है जो पुलिस कस्टडी में होने के वाबजूद सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चमी चंपारण, गोपालगंज तथा शिवहर जिले की पुलिस को नाको दम कर रखा है। यह है उत्तर बिहार का र्इनामी तथा बिहार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का चीफ संतोष झा 15 फरवरी 2015 की दोपहर जब सीतामढ़ी पुलिस की कस्टडी में बख्तरबंद वैन से बाहर निकला तो जिला मुख्यालय, डुमरा स्थित व्यवहार न्यायालय के पास सैकड़ाें की तादाद में मौजूद भीड़ उसकी एक झलक पाने के लिए इस कदर धक्का मुक्की पर उतारू था। जिस व्यक्ति के नाम से कंस्ट्रक्शन कंपनियां कांप उठती थी, वह कस्टडी में पूरे इत्मीनान से दबंग की तरह हाथ हिला कर भीड़ का इस्तकबाल कर रहा था। कोलकाता के साउथ चौबीस परगना जिले के विशनपुर इलाके से पूर्वी चंपारण पुलिस और बिहार एसटीएफ के हत्थे चढ़े संतोष झा को सीतामढ़ी जिले की पुलिस रिमांड पर लेकर कोर्ट में प्रस्तुत करने के बाद मंडल कारा भेज दिया। संतोष झा के विरूद्ध दर्ज सर्वाधिक मामले सीतामढ़ी में हीं है। पुलिस उस पर कानूनी शिकंजा कसने के लिए तेजी से उसके कांडों को खंगालना शुरू कर दिया। संतोष झा को कड़ी निगरानी में मंडल कारा के सेल में रखा गया। हालांकि उक्त कुख्यात अपराधी को सेल भा नहीं रहा है, सो अगले हीं दिन उसने जेल अधीक्षक से सेल से हटा कर उसे अस्पताल में रखने का आग्रह किया था, लेकिन जेल अधीक्षक उसके उक्त आग्रह को ठुकरा कर सामान्य खूंखार बंदी की हीं श्रेणी में रखा। खास बात यही है कि संतोष के कुछ छुटभैये शागिर्द भी उसी जेल के सलाखों में कैद हैं, जिसके एक इशारे पर उक्त लोगों द्वारा कहर बरपाया जाता था। 17 फरवरी 2012 को मोतिहारी पुलिस की चुक के कारण कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर निकला यह व्यकित उसके बाद की जिंदगी में इतना खौफनाक चेहरा बन गया कि पुलिस को उसे पकड़ने के लिए एक लाख रुपये का इनाम घोषित करना करना पड़ा। मोतिहारी जेल से बाहर आने के बाद संतोष का लाइफ स्टाइल भी बदल गया। इसके बाद तो वह कर्इ आपराधिक वारदातों को अंजाम देने के बाद रंगदारी की रकम से दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की की राह गिनने लगा। सीतामढ़ी जिले की पुलिस के टाप टेन की सूची में नंबर वन संतोष झा की संपत्ति को जब्त करने की भी पुलिस ने कार्रवार्इ की है। पुलिस की माने तो संतोष झा ने सिर्फ रंगदारी की रकम से करीब 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति अर्जित की है। पुलिस की तफ्तीस में यह बात सामने आयी है कि उक्त अपराधी के काठमांडू, जमशेदपुर, रांची, कोलकता में फ्लैट है तो उड़ीसा में उसके आलीशान होटल की भी चर्चा है। इतना हीं नहीं असम के गुवाहाटी में उसने करोड़ों की लागत से एक बड़ा स्कूल तक खोल रखा है, जिसको उसके खास सहयोगी मुकेश पाठक का पिता डील करता है। सीतामढ़ी एसपी पंकज सिन्हा ने बताया कि संतोष झा द्वारा रंगदारी के माध्यम से ली गयी तमाम रकम को उसका साला गुडडु झा डील करता है। वही उसके तमाम पैसों का लेखा-जोखा रखता है। वैसे संतोष का आर्थिक नेटवर्क उसके राइट हैंड चिरंजीवी सागर उर्फ चिरंजीवी भगत था, जो पिछले वर्ष सीतामढ़ी पुलिस के हत्थे चढ़ा था। चिरंजीवी के बारे में बताया जाता है कि 31 मार्च 2012 को बेलसंड थाना के मारड़ घाट पर सिंगला कंस्ट्रक्शन कंपनी के प्रोजेक्ट इंजीनियर गया बख्स सिंह, इंजीनियर विकास कुमार मिश्रा की रंगदारी के लिए हत्या को अंजाम देने के बाद दोनों नेपाल के काठमांडू में शरण लिया। वहां भी संतोष बडे़ ठाठ से अपने गूर्गों के माध्यम से कंस्ट्रक्शन कंपनी से रंगदारी की वसुली करता था। काठमांडू में भी उसने अपने व्यवसाय को रंगदारी के माध्यम से चमकाना शुरू किया था। बाद में चिरंजीवी की गिरफ्तारी के बाद से गिरोह को सबसे बड़ा झटका लगा। चिरंजीवी, गिरोह के शार्प शूटर विकास झा उर्फ कालिया के साथ छोटकी भिटठा से पकड़ा गया था। चिरंजीवी के पकड़े जाने के बाद हीं संतोष ने अपना ठिकाना बदल लिया और तभी से वह कोलकाता में अपने संबंधी के यहां छिप कर रहने लगा। बाद में रंगदारी की रकम से हीं उसने वहां दो फ्लैट भी खरीद लिया। संतोष के बारे में पुलिस ने बताया है कि कम उम्र के लड़कों को गिरोह में शामिल कर उसने रंगदारी के लिए हत्या कर दहशत फैला दिया था। हालांकि यह भी सच है कि संतोष झा के नाम पर कुछ छुटभैये अपराधियों ने भी रंगदारी मांगने का प्रचलन बना लिया था। तत्कालीन एसपी श्री सिन्हा कहते हैं कि संतोष झा के नाम का दुरूपयोग भी हुआ है। उसके नाम का इस्तेमाल कर भी अपराध किये गये हैं। 


पिता की पिटार्इ के बाद माओवादियों की जमात में शामिल होने वाले संतोष की जिंदगी की कहानी भी बड़ी अजीब है। शिवहर जिले के पुरनहिया थाना अंतर्गत दोसितयां गांव निवासी संतोष झा के पिता चंद्रशेखर झा कभी गांव के हीं दबंग जमींदार परिवार से तालुक रखने वाले नवल किशोर यादव के जीप का ड्राइवर था। पंचायत भवन बनाने के सवाल पर हीं संतोष झा के पिता चंद्रशेखर झा की गांव के उन दबंगों से ठन गयी, जिसके घर वह नौकरी कर रहे थे। बस इतनी सी बात पर दबंग जमींदार ने चंद्रशेखर झा की जमकर पिटार्इ की। पिता पर जमींदारों के जुल्म ने शांत संतोष के चेहरे पर बदले की चिंगारी जला दी। उसके बाद संतोष झा माओवादियों के खेमें में मिल कर बदला लेने की कसम खायी और वर्ष-2003 में जमींदार नवल किशोर यादव के घर पर माओवादियों ने हमला कर इरादे स्पष्ट कर दिये। अदौड़ी में बैंक लूट, तरियानी के नरवारा में बैंक लूटने जैसी वारदात के अलावे देकुली पुलिस पिकेट से हथियार लूट के मामले में भी संतोष का नाम उछला था। पिता की पिटार्इ का बदला संतोष को इस कदर खौला दिया था कि उसने 15 जनवरी 2010 को अपने सहयोगियों के साथ सीतामढ़ी के राजोपटटी में पूर्व जिला पार्षद नवल किशोर यादव को उसके घर के बाहर गोलियों से भून दिया था। उसने उक्त हत्या को पिता की पिटार्इ का बदला बताया था। नक्सलियों से अलग होकर उसने बदला लेने के लिए उक्त हत्या को अंजाम दिया था। बाद के दिनों में नक्सलियों से उसका जुड़ाव भी बढ़ गया और उसने उससे अलग अपना संगठन बिहार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बना लिया। नक्सली गौरी शंकर झा की हत्या के मामले में भी संतोष मुख्य आरोपित है। 24 नवंबर 2011 को गौरी शंकर झा को उसके घर पर हमला करने के बाद गोलियों से भून दिया गया था। वर्ष-2005 में संतोष झा को एसटीएफ ने पटना के एक होटल से गिरफ्तार किया था। बाद में पांच साल तक जेल में रहने के बाद वह जमानत पर छूट कर खूनी खेल को जारी रखा। इसके बाद वर्ष-2012 में रांची के बुटी मोड़ से वह अपने सहयोगी मुकेश पाठक के साथ पूर्वी चंपारण जिले की पुलिस के हत्थे चढ़ा था। कोर्ट में कांड के अनुसंधानकर्ता द्वारा केस डायरी में उसके आपराधिक इतिहास का उल्लेख नहीं करने पर जमानत मिल गयी और वह बाहर आ गया। उसके जेल से बाहर आने तथा पुलिस की कांड में लापरवाही को लेकर तब खूब किरकिरी हुर्इ थी। संतोष के पीछे यूं तो पुलिस काठमांडू से लेकर अन्य जगहों की खाक छान रहा था, लेकिन उसके संचार नेटवर्क और गतिविधियों पर पटना पुलिस मुख्यालय गिद्ध की भांति नजर गड़ाया था। यही कुछ वजह रही कि संतोष को बड़ी हीं चालाकी से पकड़ा जा सका। पुलिस सूत्रों की माने तो संतोष पर आर्थिक शिकंजा कसने के बाद राज्य पुलिस मुख्यालय बड़ी रणनीति बनाने में जुटी थी। राज्य पुलिस के आइजी आपरेशन अमित कुमार के अलावा पूर्वी चंपारण जिले के एसपी विनय कुमार की टीम कोलकाता में संतोष के पुख्ता मिलने के बाद उसे दबोचने के लिए उसकी तमाम गतिविधियों को वाच कर रहे थे। पुलिस का उक्त आपरेशन को गोपनीय भी रखा गया था, जिसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। निर्माण कंपनियों को नाको दम कर रखा उक्त अपराधी को लेकर पुलिस अब फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है। पुलिस की अब कोशिश है कि उस पर कानूनी शिकंजा कस कर अदालत से उसे सजा दिलायी जाए। संतोष के गुर्गो ने जिस प्रकार दरभंगा में इंजिनियर मर्डर को दिनदहाड़े अंजाम देकर बिपक्ष को बैठे बिठाये मुद्दा दिया है इससे संतोष झा का सलाखों से बाहर निकलना अब बहुत हीं मुश्किल नज़र आ रहा है।


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