खास रिपोर्ट। बिकास झा : दरभंगा में शनिवार को चड्ढ़ा एंड चड्ढ़ा कंपनी के दो इंजीनियरों की हत्या के बाद सड़क निर्माण का कार्य बंद होना तय था। कंपनी ने दरभंगा-समस्तीपुर-रसियारी स्टेट हाई वे का निर्माण आगे करने से इंकार कर दिया है। सरकार के साथ 725 करोड़ रुपये की लागत से 123 किलो मीटर के निर्माण का एकरारनामा है। पर इंजीनियर मारे जाएं और साथ में सड़क बने,संभव नहीं है। चड्ढ़ा एंड चड्ढ़ा की बिहार यूनिट ने अपने बॉस ए पी एस चड्ढ़ा को हालात की जानकारी दे दी है। कहा गया है कि बगैर थ्री-टीयर सुरक्षा मिले कदम बढ़ाना मुश्किल है।
दरभंगा की वारदात के बाद नीतीश कुमार के समक्ष कई चुनौतियां है। फिक्र इसकी नहीं कि विपक्षी हमला बोल रहे हैं,टास्क बिगड़ते विश्वास को संभालना है । आपराधिक खौफ से दरभंगा में सड़क निर्माण का काम बंद होगा,तो दूसरे स्थानों पर कार्यरत दूसरी कंपनियों में भी दहशत पैदा होगा। वैसे चड्ढ़ा एंड चड़ढा के पास ही अभी नार्थ बिहार की छह सड़क परियोजनाएं हैं। दरभंगा-समस्तीपुर-रसियारी स्टेट हाई वे का निर्माण तो अभी मात्र पचीस फीसदी पूरा हुआ है। जानकारी को जरुरी है कि पटना-बख्तियारपुर फोर लेन का निर्माण भी चड्ढ़ा एंड चड्ढ़ा ने ही किया है।
प्रत्येक निर्माण एजेंसी को साइट से रेसिडेंस तक थ्री-टीयर सुरक्षा देना सरकार के बूते में सदैव संभव नहीं होगा। दरभंगा में तो सुरक्षा हटने के चौबीस घंटे के भीतर वारदात हो गई। समझने की जरुरत है कि अपराधियों का इंटेलीजेंस कितना तेज है । फिर पुलिस के भीतर कोई पैठ तो नहीं,यह जानना भी आवश्यक है। दरभंगा पुलिस का नकारापन सामने है । किसी एक थानाध्यक्ष को सस्पेंड कर मामले को खत्म कर देना खतरनाक है । वैसे भी शामिल गिरोह की हिस्ट्रीशीट को देख जान सकते हैं कि ‘वंदे मातरम् नहीं धंधे मातरम्’ वाले पुलिस अफसर सदैव गिरोह की मदद में रहे हैं।
गिरोह की हिस्ट्रीशीट में पिछले साल कोलकाता से सरगना संतोष झा की गिरफ्तारी के पूर्व 17 जनवरी,2012 को रांची में भी अरेस्टिंग का वाकया सामने आता है । साथ में,मुकेश पाठक भी पकड़ा गया था। पर मोतिहारी सेंट्रल जेल से संतोष झा महज माह भर में रिहा हो गया था। वाबजूद इसके कि कई केस लंबित थे। पूर्वी चंपारण के एसपी सीतामढ़ी व शिवहर पुलिस को बचे कांडों में रिमांड लेने को कहते रहे,पर रिहाई तक दोनों जिले की पुलिस शांत मन से सोती रही । जेल की इस आजादी के बाद ही सबसे अधिक कोहराम संतोष झा गिरोह ने बरपाया। 2014 में फिर से संतोष झा को पकड़ने में तो बिहार पुलिस को पसीने छूट गये थे।
अब मुकेश पाठक की हिस्ट्रीशाीट को ही देखें । जेल के भीतर कोर्ट के आदेश से सह-कैदी से शादी रचाई। पत्नी अभी जेल में ही है। पर‘धंधे मातरम्’ की जय बोलने वाले पुलिसकर्मियों की मदद से जुलाई,15 में मुकेश भाग गया। पहले इलाज के लिए उसे शिवहर जेल में दाखिल कराया गया। बाद में सिपाहियों ने मुकेश की मिठाई खाई। सुबह कहा कि मिठाई में नशा था। नींद आ गई थी। उधर मुकेश पाठक भाग चुका था।
तो गिरोह की हिस्ट्रीशीट कहती है कि इनसे निपटना आसान नहीं है । बिहार पुलिस को असली और सच्चे तोपची खोजने होंगे। सरकार दरभंगा की घटना के बाद डरी कंपनियों का भरोसा गिरोह पर शिकंजा कस कर ही जीत सकती है। हालांकि कंस्ट्रक्शन कंपनियों के इस भीतरी सच को भी जान लें। कोई भी राज्य स्थानीय बाधक तत्वों से बचा नहीं हेै। कहीं कम,कहीं अधिक । ऐसे में कंपनियां इनके लिए अलग फंड रखती है,जो लागत खर्च का सेक्रेट शेयर होता है। जरुरत से बाधक तत्वों से निपटने को पैसे दिए जाते हैं। पर,बिहार की वर्तमान चुनौती में परेशानी यह है कि पहले खून,फिर मुंहमांगी कीमत की वसूली को ट्रेंड बनाया जा रहा है। अब इस चैलेंज को सरकार कैसे निपटती है, देखने-समझने में थोड़ा वक्त लगेगा ।