संपादकीय:कन्हैया मिश्रा:कभी कांग्रेस का गढ माने जा रहे मिथिलाचंल में बीजेपी के कमजोर होने से एक बार फिर कांग्रेस धीरे-धीरे मजबूत हो रही है।सवर्ण वोट खासकर ब्राह्यणों की मोहभंग के कारण जो कांग्रेस पार्टी बिहार में हासिये पर चली गयी थी,परंतु विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बेहतरीन प्रदर्शन ने जहां सभी राजनीतिक विश्लेषकों को चैंका दिया,वहीं अब इस क्षेत्र में बीजेपी लगातार कमजोर होने लगी है।मधुबनी जिले की बात करें तो मधुबनी जिले के दस विधानसभा सीटों में से कांग्रेस पार्टी ने बेनीपट्टी और हरलाखी विधानसभा क्षेत्र से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे,जिसमें बेनीपट्टी से भावना झा ने अपने निकटतक प्रतिद्वंदी बीजेपी के विनोद नारायण झा को पराजित कर दिया तो हरलाखी से मो.शब्बीर काफी कम वोटों के अंतराल से पराजित हुए।महागठबंधन के नेताओं की माने तो राजद के कभी वरिष्ठ नेता रहे पूर्व विधायक रामाशीष यादव अगर चुनावी मैदान में निर्दलीय ताल नहीं ठोंकते तो शायद हरलाखी सीट भी कांग्रेस के खाते में बडी आसानी के साथ जा सकती थी।अब सवाल है कि कांग्रेस को मिथिलाचंल के मधुबनी जिले में ऐसा क्या टाॅनिक मिल गया कि वो हर क्षेत्र में अब बेहतर करती जा रही है।विधान परिषद् चुनाव में भी कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था।स्नातक क्षेत्र से विधान पार्षद डा.दिलीप चौधरी  जीत गये तो शिक्षक प्रतिनिधि के तौर पर डा.मदन मोहन झा ने बाजी मार ली थी।एक समय था जब मधुबनी जिले में वाम मोर्चा के नेताओं की तुती मानी जाती थी,सांसद से लेकर एमएलए के सीटों पर उनका कब्जा रहा करता था.इस मिथक को कांग्रेस ने ही तोड कर मिथिला क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम किया था,जो लंबे समय तक कायम रह सका।कांग्रेस की पकड इलाके में ऐसी हो गयी कि चार से पांच विधायक कांग्रेस के हुआ करता था.धीरे-धीरे कांग्रेस के गलत रणनीतियों के कारण उनका पारंपरिक वोट सवर्ण हाथ से निकल कर बिहार में उदय होने को तैयार बीजेपी की ओर रुख करने लग गयी,जिससे कांग्रेस लगातार हर चुनावों में हारता गया.परिणाम हुआ कि पूरे जिले से एक-दो से अधिक उसके विधायक नहीं चुने जाते थे।तब भी पूर्व मंत्री युगेश्वर झा बेनीपट्टी में अपना दबदवा बनाये रहे थे।कालांतर में ये सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गयी।कांग्रेसी नेता लगातार पार्टी में सवर्णो की उपेक्षा की बात कहने लगे।उधर बिहार में हासिये पर चले गये कांग्रेस धीरे-धीरे अपने पुराने मतदाताओं को रिझाने में लग गये,जिसको सही समय पर बीजेपी नहीं भांप सकी।जिसका खामियाजा आज उसे उठाना पड रहा है।स्थिति ये है कि मधुबनी जिले में बीजेपी के दो सांसद होने के बाद भी बीजेपी एक सीट तक सिमट कर रह गयी तो एक अन्य सीट उसके नये साथी रालोसपा के खाते में गयी।वो भी तब जबकि मधुबनी में मोदी की कार्यक्रम सफल मानी गयी थी।अब सवाल है कि क्या कांग्रेस मिथिला के क्षेत्र में पुर्नजन्म ले रही है या बीजेपी अपने सवर्ण वोटरों को अपने साथ नहीं रख पायी।कारण कुछ भी हो मगर इतना तो अवश्य नजर आ रहा है कि बीजेपी को अब इस क्षेत्र में अधिक मेहनत करने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं के भावना को भी समझना होगा।



आप भी अपने गांव की समस्या घटना से जुड़ी खबरें हमें 8677954500 पर भेज सकते हैं... BNN न्यूज़ के व्हाट्स एप्प ग्रुप Join करें - Click Here



Previous Post Next Post