राजनीतिक संपादकीयःकन्हैया मिश्रा-बिहार विधानसभा चुनाव अब खत्म हो चुका हैऔर एग्जिट पोल पर बहस हो रही है।एक महीने तक चले बिहार में राजनीतिक द्वंद अब अंतिम दौर में पहुंच चुकी है।रविवार को बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम आने वाला है।ये परिणाम कई राजनीतिक नेताओं के सियासी भविष्य का फैसला भी करने वाला है।एग्जिट पोल की बात करें तो जहां आज तक और एनडीटीवी एनडीए गठबंधन को बढत दिखा रही है तो एबीपी,इंडिया टीवी और न्यूज एक्स ने महागठबंधन को सत्ता का प्रबल दावेदार बता रही है।इन सब के बीच एक अलग न्यूज 24-चाण्क्या की एग्जिट पोल तो एनडीए को भारी बहुमत दिखाया है।देखा जाय तो सभी एग्जिट पोल में दोनांे गठबंधनों के बीच कांटे की टक्कर होनी तय है।अगर कुछ एग्जिट पोल की बात सच हो गयी और महागठबंधन सत्ता से बाहर हो गयी तो क्या होगा।क्या लालू-नीतीश के राजनीतिक भविष्य पर खतरा बन जायेगा? कई सवाल है जो अभी भी बिहार के राजनीतिक गलियारों में तैरती नजर आ रही है।लालू की बात करें तो एक समय नीतीश कुमार के धुरविरोधी चेहरा के तौर पर जाने वालें लालू लोकसभा चुनाव में मोदी से शिकस्त खाने के बाद धर्मनिरपेक्ष पार्टी के गोलबंदी के नाम पर नीतीश के साथ हाथ मिला लिये,जो राजद के साथ-साथ कई जदयू नेताओं को भी नहीं पच पाया।कई चेहरा इधर से उधर भी हो गये.वहीं कई अभी भी पार्टी में बने हुए है।बिहार विधानसभा चुनाव में प्रतिष्ठा का सवाल बना लिये अकेले लालू ने पूरे बिहार में मोदी फैक्टर को रोकने के लिए 240 से अधिक रैली कर लिये,अब सवाल है कि इतने रैली के बाद भी महागठबंधन चुनाव नहीं जीत पाती है तो पार्टी के अंदर सियासी तूफान को कब तक थाम कर रख सकेंगे।चुनाव हार के बाद एक साथ कई सवालों के साथ लालू को जुझना होगा,यह चुनाव लालू के राजनीतिक कैरियर का ही नहीं बल्कि उनके राजनैतिक विरासत का भी फैसला करेगी।चारा घोटाला में फंसने के बाद राजनीतिक पारी खेलने से अयोग्य लालू ने अपने दोनों बेटों को सियासी मैदान में तो उतारने में कामयाब हुए है,लेकिन अगर उनके बेटे भी चुनाव में जीत का परचम नहीं लहरा सके तो क्या होगा।वहीं लालू ने अपनी बेटी मीसा भारती को कहीं मैदान तो नहीं दी लेकिन मोदी के आगे खडा कर दिखाने की भरपुर कोशिश कर दी है कि आने वाले समय में उनका राजनीतिक विरासत उनके पुत्र या पुत्री ही संभालेगी।परिवार को उत्तराधिकार बनाने व चुनाव में हारने की स्थिति में लालू को कई चुनौतियों का सामना करना पड सकता है। हार के स्थिति में नीतीश पर पार्टी ही बनेगी चुनौती नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में मोदी के नाम पर भाजपा से अलग हो गयी।वहीं लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए नीतीश ने हर हधकडे अपनाये।लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने में विफल होने पर नीतीश को सबसे अधिक चुनौती पार्टी के अंदर से ही मिलेगी।एक ओर जहां उनके राजनीतिक रणनीतियों पर उठेगी तो वहीं उनके कैरियर पर भी पुनर्विचार करने की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।सवाल नीतीश कुमार के सत्ता लोलूपता पर भी उठेंगे।जिस जंगलराज के खिलाफ उन्होंने लंबी लडाई बिहार में लडी,उसी के साथ गठबंधन कर चुनाव में कूदने के बाद भी हारने पर कई ओर सवाल उठना स्वाभाभिक है।वहीं महागठबंधन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की तैयारी को भी भारी झटका लगेगा।नीतीश की हार से अगर किसी को फायदा मिलेगा तो वे है दिल्ली के अरविंद केजरीवाल।अरविंद केजरीरवाल हमेशा से मोदी की केंद्र सरकार से लोहा लेकर मुख्य विपक्षी की भूमिका खोज रहे है।कांग्रेस की उदासीनता का फायदा अरविंद को मिल सकता है।महागठबंधन हारा तो ये हार अरविंद के लिए आॅक्सीजन का काम करेगी और आने वालें विधानसभा चुनाव में नीतीश कमजोर होंगे ओर केजरीवाल मजबूत।नीतीश के हार से जेडीयू के शरद यादव का खेमा मजबूती के साथ नीतीश का विरोध करेंगे।जिसको हमेशा से नीतीश खेमा दरकिनार करता रहा है।देखा जाय तो महागठबंधन की हार से लालू-नीतीश के राजनीतिक भविष्य पर गहरा छाप छोडने जा रही है।