कन्हैया मिश्रा:बिहार में विधान परिषद् के 24 सीटों का परिणाम आ चुका है।एनडीए गठबंधन को 13 पर,जदयू-राजद-कांग्रेस व राकांपा के महागठबंधन को 10 सीटो एवम् पटना सीट से बाहुबली रीतलाल यादव ने जीत दर्ज कर ली है।पहले इन सीटों की बात करें तो इन सीटो में 12 जदयू, 5 भाजपा और 4 राजद व तीन निर्दलीय थे।अब ये गणित  उल्ट गयी है।हालांकि ये चुनाव कुछ अलग तरह से होती है।परन्तु चुनाव का गणित जिस प्रकार चला है उससे साफ तौर पर जदयू के लिए झटका साबित होता दिख रहा है।आगामी कुछ महीनों के बाद बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है,ऐसे में ये परिणाम सत्ताधारी जदयू के लिए शुभ संकेत नहीं दिख रहे है।जिन क्षेत्रों में महागठबंधन के दबदबे की बात कहीं जा रही थी,उस क्षेत्र में भी जिस तरह भाजपा ने अपने खुंटे गाडे है स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन में शामिल दलों को एक बार फिर अपनी रणनीति सुधारनी होगी।बिहार के मिथिलाचंल क्षेत्र में भाजपा को कभी भी बेहतर चुनावी परिणाम नहीं आये थे,लेकिन इस परिषद् चुनाव में मिथिलाचंल की अधिकतर सीटों पर भगवा का राज होने से दिख गया है कि भाजपा मिथिला में भी अब पैर पुरी मजबूती के साथ पसार रहा है,बीजेपी ने इन क्षेत्र के मधुबनी,दरभंगा,समस्तीपुर में जीत दर्ज की तो उसके गठबंधन के लोजपा ने सहरसा सीट को जीत कर संकेत दे दिया कि वो अब इन क्षेत्रों का भी प्रतिनिधित्व कर सकता है।वहीं लालू के गढ के तौर पर सारण क्षेत्र में भी भाजपा ने बढत बना ली है।सारण के तीनों सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली है।उत्तर बिहार की बात करें तो बीजेपी के लिए ये क्षेत्र सुखद अनुभुति नहीं देता दिख रहा है,यहां के मुजफ्फरपुर से जदयू,बेतिया से कांग्रेस,वैशाली व सीतामढी सीट से राजद ने जीत ली तो बीजेपी को एकमात्र मोतिहारी के सीट तक संतोष करना पड रहा है।गत विधानसभा उपचुनाव के 10 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा को मात्र चार ही सीटें मिली थी,राजनीतिक विश्लेषकों ने साफ तौर पर कहने लगे कि बिहार में नीतीश कुमार ही बडे चुनावी फैक्टर है।ऐसे में ये चुनावी परिणाम विश्लेषकों के राय को बदलने एवम् बीजेपी की ओर देखने के साफ संकेत दे रहे है।नीतीश कुमार कहते है कि ये चुनाव किसी दलगत या कोई जनता के द्वारा दिये गये परिणाम नहीं है,वैसे ये परिणाम आने के बाद हमलोंग आपस में बैठकर मंथन करेंगे।देखेगें कहां चुक हुई।चुक तो वाकई में हुई है।जिन जनप्रतिनिधियों के वोट से विधान परिषद् उम्मीदवार विजयी हुए है,ध्यान दे वहीं लोग अपने-अपने पंचायत में वोट का समीकरण का गोटी सेट करते है,ये लोग जनता के द्वारा ही चूने जाने वालें जनप्रतिनिधि है जो बीजेपी में अब अपनी आस्था दिखा रहे है।
                     जदयू के झौंकी थी पूरी ताकत
चुनावी नतीजों के बाद नीतीश कुमार भले ही चुनाव में पूरी ताकत न लगाने की बात कह रहे हो,मगर सच है कि जदयू ने हाल ही में हर घर दस्तक ओर परचा पर चर्चा का मुहिम छेडकर चुनावी बैठकें बहुत की थी,जिनका चुनाव परिणाम में कोई खास असर नहीं दिख पाया।
       यादव वोटों पर लालू की पकड हुई कमजोर
बिहार की सत्ता से लालू यादव दूर क्या हुए उनके परंपरागत यादवों की वोट भी अब लालू के पकड से दूर होती दिख रही है या फिर लालू परिषद् चुनाव में सही ढंग से अपने कार्यकर्ताओं को समझा नहीं पाये।पटना एवम् छपरा की सीट यादवों की सीट मानी जाती है।ऐसे में  दोनों  जगहों पर जदयू के उम्मीदवार हार गये।आम लोंगो की माने तो लालू यादव के वोट जदयू के उम्मीदवार  के खाते में ट्रांसफर नहीं हो  पाने के कारण ये हालत हुई है।जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ बाबू ने भी माना कि लालू के वोट ट्रांसफर नहीं होने के कारण अधिक सीटे नहीं आयी।


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