शनिवार को संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से कला द्रोणी स्टूडियो, विपिन गार्डेन एक्सटेंशन, उत्तम नगर, नई दिल्ली में प्रमुख नाट्य दल रंग ठिया के द्वारा मैथिली के प्रख्यात हास्य व्यंग लेखक हरिमोहन झा लिखित एवं माया नन्द झा निर्देशित नाटक रंगशाला के कहानियों कोलाजरूपी सफल रंगमंचीय प्रस्तुति दी गई। इस बाबत जानकारी देते हुए रंग ठिया के संयोजक श्रध्दा नन्द झा ने बताया कि प्रस्तुत नाटक ने उपस्थित दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी। नाटक मे राजीव रंजन झा, माया नन्द झा, संतोष कुमार, निर्भय कर्त्तव्य, तरूण झा, आशुतोष कुमार, केशव ने अपने अभिनय से दर्शकों को खूब मनोरंजित किया।
नाटक में मूल रूप से भारतीय जीवन में आगंतुको की महत्वता को बड़े ही रोचक ढंग से दिखाया गया। मेजबानी और मेहमानबाजी की स्थिति-परिस्थिति से भरा हास्य रस से सरावोर घटना का बहुत ही दिलचस्प और मनोरंजक प्रस्तुति रही। रात्रि के बारह बजे, घटाटोप बारिश मे चार अतिथि एक प्रोफेसर साहब जो कि पटना के किसी कॉलेज में प्रोफेसर के साथ होस्टल के सुपरिटेडेंट के पद पर कार्यरत होते है, उनके होस्टल में अचानक आ पहुंचते है और अपना अतरंगी परिचय देने के साथ उनके यहां रात्रि विश्राम के उद्देश्य से ठहरते है इतने रात मे अतिथि बारिश से भींगें व बिना भोजन किए है, अब प्रोफेसर साहब को इस अर्धरात्रि के वेला उन अतिथियों के लिए वस्त्र व भोजन का व्यवस्था करना और समुच्चय आतिथ्य देना दुष्कर हो जाता है। परंतु अतिथि सब बिना भोजन किए सोने को तैयार नही है। मिथिला के आतिथ्य को रोचकता के साथ दर्शाता है। वहीं दूसरी कथा में एक व्यक्ति रात्रि के समय रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने के लिए आते हैं लेकिन उनका ट्रेन छुट जाता है इतने में अचानक एक सज्जन उनका समान अपने सहकर्मी को कहकर उठवा लेता है और अनोखा परिचय के साथ उन्हे जबरदस्ती अपने घर लेकर जाता है और कहता है कि आज रात्रि मेरे यहां विश्राम कर लिजिए कल सुबह वाली ट्रेन में चले जाईयेगा। घर जाकर उनके भोजन का विन्यासपूर्वक व्यवस्था करता है। भोजन के इस विन्यास को देखकर अतिथि अचंभित हो जाते है और इतना नही खा पाएंगे यह कहते हैं। लेकिन मेजबान अतिथि को आग्रह के समुद्र मे इतना डुबाते है कि अतिथि को कै-वमन दोनो होने लगता है।
मिथिला के इस अतिथि सत्कार मंच पर जीवंत किया गया। दर्शकों की ताली और हंसी ने यह साबित कर दिया निर्देशक माया नन्द झा ने इन दोंनों गल्प-गुच्छ को रचनात्मक ढंग से जीवंत कर दिया। मुख सज्जा मुकेश झा के द्वारा किया गया था। वहीं नाटक में वस्त्र परिकल्पना सुरभि मिश्रा ने किया। पार्श्व संगीत संयोजन विक्रमादित्य का था और प्रकाश परिकल्पना मुकेश झा ने किया। मंच सामग्री व मंच प्रबंधन भाष्कर झा के द्वारा किया गया। प्रचार-प्रसार मानसी ने किया था। अभिनय प्रशिक्षण मुकेश झा का था। रंग ठिया द्वारा प्रस्तुत इस नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन माया नन्द झा ने की। प्रेक्षकों में सुमन कुमार, उप सचिव (नाटक), संगीत नाटक अकादेमी, भारत सरकार, नई दिल्ली, दुर्गा नन्द झा, सुधीर झा, डी एन झा, रौशन झा, मिहिर झा, अशोक चौरसिया, समोल झा, धिरेन्द्र मोहन झा उपस्थित थे। वहीं मंच संचालन मुकेश झा ने किया।
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