घोघरडीहा। मिथिलांचल का लोकपर्व सामा-चकेवा की मधुर गीत क्षेत्र के हर गांव की गलियो में सुनाई देने लगी है। शाम होते ही नव विवाहिता के साथ बच्चियां टोली बनाकर, सामा खेले गेलिये हो भईया चकेवा ल गेलइ चोर .... जैसे मधुर गीत एक दूसरे के सुर में सुर मिलाकर गाती है। भैया दूज के बाद सामा-चकेवा की मूर्ति बनना प्रारम्भ हो जाता है। 

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जिसके बाद पूर्णिमा दिन तक प्रतिदिन शाम से लेकर देर रात तक बच्चियां अपने-अपने सामा चकेवा को रात का भोजन कराने के बाद ओस (शीत) का पानी पिलाती है। पूर्णिमा तक लगातार यही क्रम चलेगी। जिसके बाद पूर्णिमा के दिन भाई-बहन के पवित्र प्रेम पर आधारित इस पर्व का अंतिम दिन होता है। उस दिन गांव मुहल्ला की बेटियां (लड़कियां) एक निश्चित स्थान पर इकठ्ठा होकर इस पारंपरिक लोकपर्व का आनंद लेते है। 

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ननद व भाभी में लोकगीत के भाषा में ही हसीं ठिठोली होता है, और अंत में सभी एक-दूसरे के साथ मिलकर चुगला को आग के हवाले कर देते है। इसके साथ ही मिथिलांचल के लोकपर्व का समापन होता है।


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