लालू प्रसाद यादव जी की विचारधारा और महागठबंधन का सम्मान करते हुए हम महागठबंधन में शामिल हुए थे, और माननीय तेजस्वी यादव जी ने भी हमें बड़ा भाई कहा और अपने साथ बिठाया। जहां हम बुलाते, वहां आकर मीटिंग करते थे। वो स्वयं हमारे साथ गठबंधन को आगे आयें, हालांकि लोकसभा चुनाव में भी हमारे साथ छल-प्रपंच रचा गया। जो सीट मुझे नहीं चाहिये थी, उसे जबरदस्ती थोप दिया गया। तैयारी करवाकर दरभंगा की सीट से वंचित रखा गया।

हमें मधुबनी की सीट नहीं चाहिये थी, फिर भी दिया गया। हम चुप रहे, और उन्होंने अपना उम्मीदवार भी दिया, जबकि हमारा उम्मीदवार कोई और था। उसपर भी हमने सहमति जता दी और उन्हें चुनाव लड़वाया।

हम मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट नहीं लेना चाहते थे, हमें वो भी दे दिया गया, जिसका परिणाम आप सब ने भी देखा।

बावजूद इसके हम महागठबंधन में बने रहे और उन्हीं के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया।

मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को उन्होंने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। महागठबंधन में होते हुए, महागठबंधन की एक पार्टी के उम्मीदवार को तोड़कर अपने साथ मिला लेना कहां तक सही है?

बिहार विधानसभा उपचुनाव में तय हो चुका था कि सभी पार्टियां एक-एक सीट पर लड़ेगी, सब तैयारी कर चुके थे। ऐन वक्त पर इनका आदेश आता है कि चारों सीट से हमें दे दीजिए, हम अकेले चुनाव लड़ेंगे, आप सब हमें समर्थन दिजीये।

हमने वहां इन्हें टोका कि आपने यही बात तीन महीने पहले क्यों नहीं कही?

हम अपने लोगों को तैयारी करवा चुके थे। तब मैंने यह साफ तौर पर कह दिया था यह सन ऑफ मल्लाह किसी के पीछे चलने वाला नहीं है। मैं अकेले अपने मल्लाह समाज और अति पिछड़ा समाज के लिए लड़ सकता हूं और उन्हें उनका हक दिला सकता हूं।

हम इनसे एक सीट पर भी समझौता नहीं किया, और अकेले लड़ने का निर्णय लिया।

और हम अकेले सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा लड़े और मात्र एक साल पुरानी पार्टी 15% वोट लेकर आयी, और उसी के दम पर राजद विजयी हुआ। वहीं से इन्होंने एक षड्यंत्र रचना शुरू किया, क्योंकि इन्हें लगने लगा था कि हमारे पास एक वोट बैंक है, मल्लाह और अति पिछड़ों का समर्थन है। हमारे साथ आये और समय-दर-समय सारी गतिविधियों में साथ रहे ताकि समय आने पर धोखा दे सकें। बिहार की जनता गवाह है जितना इनके परिवार ने उनका साथ नहीं दिया, उतना हमने दिया।

कल भी सारी बातें तय हो चुकी थी। दो दिन पहले पार्टी में शामिल होने वाली पार्टियों को सीट मिल जाती है और हमें वेटिंग लिस्ट में डाल दिया जाता है।

जब-जब उन्होंने मुझे बड़ा भाई कहां मैंने उन्हें छोटा भाई माना। मैंने सोचा मैं की उंगली पकड़ कर इन्हें सीएम रास्ते पर ले कर चलूंगा। पर उनके मन में कुछ और था। आप सब ने भी देखा है कि उन्हें बिहार के युवाओं से कितनी एलर्जी है। उन्हें डर लगता है। सबसे पहले वो कन्हैया जी से डर गये, फिर चिराग जी उनकी आंखों में चुभने लगे और अब उनकी आंखों की किरकिरी ये सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी है।

खैर जिसे स्वयं अपने भाई से समस्या हो, वो अन्य युवाओं के बारे में क्या‌ सोचेगा।


सबसे पहले दलित के बेटे जीतन राम मांझी ने एक मांग रखी थी, को-ऑर्डिनेशन कमिटी की। ताकि जो निर्णय हो, सबके बीच, सबकी सहमति से हो। पर उनके मन में पहले से ही था कि हमें लोगों के साथ छल करना है। वन-टू-वन बात करना है, ताकि किसी बात से कभी भी मुकर जायें।आपने भी देखा कैसे जीतन राम मांझी को अपमानित कर बाहर निकाला गया। जब उपेंद्र कुशवाहा जी केंद्र में मंत्री थे, तो झूठे वादे के उन्हें अपने साथ मिला लिया और फिर अपने घर लाने के बाद पिछड़े के बेटे को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। आप लोगों के सामने सब कुछ प्रत्यक्ष है। और फिर मेरे साथ भी उन्होंने इसी की शुरुआत कर दी थी। हमारी ताकत को वो अपनी शर्तों पर इस्तेमाल करना चाह रहे थे, पर अब ऐसा नहीं होने वाला।

साथियों, मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि ये मल्लाह और अति पिछड़ा का बेटा जब अपने समाज को उनका हक दिलाने निकला था तो अकेला ही निकला था। आगे भी हमारे समाज के हित में जो सही होगा वो निर्णय लिया जायेगा।

आप बस अपना स्नेह और समर्थन बनाये रखें।

जय हिंद, जय बिहार।

उपरोक्त बातें मुकेश सहनी ने अपने फेसबुक वाल से शेयर की है.


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