बेनीपट्टी के पूर्व विधायक स्व. प्रो. युगेश्वर झा को पटना हवाई अड्डे पर राजीव गाँधी को देखते ही जोर-जोर से रोने लगे थे। उस समय प्रो. युगेश्वर झा को जिला बदर कर दिया गया था। वह साल 1981-82 का था, इन्हीं हालातों और परिस्थितियों के बीच उस नेतृत्व ने जन्म लिया जो बाद में बेनीपट्टी के विधायक और बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री बनें। दरअसल यह प्रकरण एक तरह से युगेश्वर झा की जीत थी, जिसमें बेनीपट्टी ने बासुकी बिहारी (मधवापुर) के एक कांग्रेसी कार्यकर्ता के नेतृत्व को अप्रत्यक्ष स्वीकार कर लिया था। वह राजनीति में उभर रहे थे, जो आने वाले समय में बेनीपट्टी के विधायक के रूप में बिहार विधान सभा में प्रतिनिधित्व ही नहीं बल्कि बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री पद तक को सुशोभित किये। 

युगेश्वर झा (दाएं), राजीव गांधी (बाएं) [Edited]


वह साल 1981-82 का रहा होगा जब युगेश्वर झा चर्चा में आये थे, जिसका कारण था एक जनांदोलन जो अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया। इस विषय पर विस्तृत रूप से लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून से प्रकाशित पुस्तक ‘बागमती की सद्गति’ के चानपुरा का रिंग बांध नामक अध्याय के ये संपादित अंश एक बीते युग की ऐसी कहानी बताती हैं, जिसे आने वाले हर युग में याद रखा जाना चाहिए।  डॉ दिनेश कुमार मिश्र जो की इंजीनियर तो हैं ही पर वह यह भी जानते हैं कि समाज किन इंजीनियरों के दम पर खड़ा होता है और किनके कारण गिर जाता है। सत्ता के शीर्ष आसन पर बैठे लोगों को शीर्षासन सिखाने वाले, योग जैसी सात्विक शिक्षा देने वाले जब गांव से बिना पूछे उसका विकास करने की ठान लेते हैं तो वहां क्या-क्या बीतती है - इसे ‘बागमती की सद्गति’ से बता रहे डॉ दिनेश कुमार मिश्र।

बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से बेनीपट्टी होते हुए पुपरी जाने वाले रास्ते पर साइली और खिरोई नदी के दोआब में बसैठ नामक एक गांव पड़ता है। बसैठ में दक्षिण से उत्तर की दिशा में मब्बी, दरभंगा को मधवापुर से जोड़ने वाली सड़क पार करती है। बसैठ से मधुबनी 36 किलोमीटर तथा बेनीपट्टी 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। बसैठ से मधवापुर जाने वाली सड़क से 3 किलोमीटर उत्तर दिशा में जाने पर बाईं तरफ पहला गांव चानपुरा पड़ता है।

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चानपुरा एक संपन्न गांव है। शिक्षित गांव होने के कारण ऊंचे ओहदे वाले सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और डॉक्टरों की एक अच्छी खासी तादाद इस गांव में है, जिस पर किसी भी गांव वाले को गर्व हो सकता है। यह गांव मुख्यतः दो भागों में बंटा हुआ है- के उत्तर और उत्तर पूर्व में एक बड़ा-सा तालाब है- अंगरेजवा पोखर। यह पोखर बहुत पुराना है। इसका निर्माण सन् 1896 के दुर्भिक्ष के समय अंग्रेजों ने राहत कार्यों के अधीन करवाया था। इसीलिए इसका नाम अंगरेजवा पोखर पड़ा होगा। इस पोखर के चारों ओर एक ऊंचा बांध या भिंडा है।

चानपुरा के पूरब में सोइली धार, पश्चिम में खिरोई नदी, उत्तर में कोकराहा धार तथा दक्षिण में भुड़का नाला बहता है। इस तरह से यह गांव हर तरफ से किसी न किसी नदी-नाले से घिरा हुआ है। भुड़का नाले के दक्षिण में मकिया और पाली के बीच एक जमींदारी बांध बना हुआ है, जिसे कभी दरभंगा महाराजा ने बाढ़ से अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए बनवाया होगा। पूरब-पश्चिम दिशा में निर्मित यह बांध आजकल राज्य के जल-संसाधन विभाग के अधीन है। बरसात के मौसम में जब सारी नदियां अपने उफान पर होती हैं, तब यही पाली-मकियावाला बांध उत्तर दिशा से आने वाले पानी की निकासी को छेंक दिया करता है और पूरा इलाका लंबे समय तक पानी में डूबा रहता है।

यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। कहते हैं कि आज का बसैठ कभी वशिष्ठ ऋषि का वास स्थल हुआ करता था। पास में शिवनगर के गांडवेश्वर महादेव के मंदिर के पास महाभारत से पहले अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना गांडीव छिपा कर रखा था। कहा तो यह भी जाता है कि चानपुरा के पूर्वोत्तर में बसे उचैठ गांव का संबंध महाकवि कालिदास से रहा है।

स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी


ऐसी पृष्ठभूमि के गांव चानपुरा में श्रीमती इंदिरा गांधी के योगगुरु स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम धीरचन्द्र चौधरी था। कोई 14 साल की उम्र में वे गांव छोड़कर चले गए थे। लंबे समय तक उनका कोई अता-पता नहीं लगा था। गांव और परिवार वाले तो यह मान चले थे कि वे मर गए होंगे। मगर एक बार इसी गांव के परमाकांत चौधरी ने नई दिल्ली स्टेशन पर उन्हें देखा और पहचान लिया। यह सन् 1970 के आसपास की घटना रही होगी। तब तक धीरचन्द्र चौधरी स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बन चुके थे। उनके शिष्यों में प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-बड़े बहुत से सामर्थ्यवान लोग और नेता शामिल थे। अब वे एक स्थापित व्यक्तित्व के स्वामी बन गए थे। 

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धीरे-धीरे ब्रह्मचारीजी का अपने गांव से फिर संपर्क स्थापित हुआ। उस समय उनकी मां जीवित थीं और उनके दो भाई भी चानपुरा में रहते थे। संपर्क पुनर्जीवित होने और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर देने की बलवती इच्छा ने ब्रह्मचारीजी को प्रेरित किया कि वे चानपुरा के दोनों टोलों को घेरते हुए एक तटबंध, रिंग बांध बनवा दें तो चारों ओर नदी-नालों से घिरा उनका यह गांव हर साल आने वाली बाढ़ के थपेड़ों से बच जाएगा। अपने गांव में जब उनकी रुचि बढ़ी तो सुनने में आया कि उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट जैसा एक बाजार, सौ शैया वाला अस्पताल, एक हेलीपैड और हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल का एक बड़ा सा टैंक भी गांव में बनाना चाहा! पेट्रोल टैंक के लिए तो जरूरी साज-सामान गांव में आ भी गया था, जिसके अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं। अपने गांव को उन्नत करने का उनका एक दीर्घकालीन सपना था और इसे पूरा करने की सामर्थ्य भी उनमें थी ।

अपने प्राइवेट विमान के साथ बसैठ निवासी योग गुरु स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी जी

गांव के दोनों टोलों को बाढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति दिलवाने के लिए ब्रह्मचारीजी ने एक योजना बनवाई। इसमें 8.5 किलोमीटर लंबा रिंग बांध बनाने का प्रस्ताव किया गया। बिहार के कैबिनेट में 1981 में सिंचाई विभाग के झंझारपुर डिवीजन को इसके निर्माण कार्य को चालू करने के लिए सूचित किया गया था। मगर झंझारपुर डिवीजन ने इस योजना को हाथ में लेने से इसलिए इनकार कर दिया कि उसे अपने यहां से चानपुरा की दूरी बहुत ज्यादा लगती थी! तब यह काम दरभंगा डिवीजन के जिम्मे सुपुर्द कर दिया गया। यह काम शुरू होते न होते 1982 आ गया रिंग बांध के निर्माण के लिए अलाइनमेंट तय हुआ और उसी के हिसाब से निर्माण के लिए झंडे गाड़ना शुरू किया गया, जिसके भीतर पूवारी और पछुआरी टोला दोनों ही आते थे।

पछुआरी टोले के एक परिवार की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्र से नजदीकी रिश्तेदारी थी। अगर ब्रह्मचारी जी द्वारा प्रस्तावित रिंग बांध से गांव को घेर लिया जाता तो उनकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बांध में चला जाता। इसलिए इस परिवार का इस बांध के निर्माण से स्वाभाविक विरोध था। यह बांध बहुत से दूसरे ऐसे लोगों की जमीन से भी गुजरता था जो अपनी जमीन छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्होंने पटना और दिल्ली में कोशिश-पैरवी करके बांध का रूप बदलवा दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर रिंग बांध बनना ही है तो यह पुवारी टोल को ही घेरता हुआ बने। पछुवारी टोल को घेरने की जरूरत नहीं है। इस तरह से ब्रह्मचारीजी द्वारा प्रस्तावित पहला बांध मात्र प्रस्ताव ही बन कर रह गया। उस पर कोई काम नहीं हो पाया।



इस गांव में पहले से ही एक जमींदारी बांध हुआ करता था। जमींदारी टूटने के बाद यह बांध बिहार सरकार के खजान विभाग के हाथ में चला गया था। यह खस्ता हाल में था। तय हुआ कि इसी जमींदारी बांध को (जो कि चित्र में BA और H होता हुआ MN तक जाता था उसे) बढ़ा कर D C G होते हुए B में वापस मिला दिया जाय। इस रिंग बांध के निर्माण से चानपुरा के पुवारी टोल का अधिकांश भाग बाढ़ से सुरक्षित हो जाता था। यह एक अलग बात है। भविष्य में सुरक्षा मिलने के बावजूद जिन लोगों की जमीन से इस बांध को गुजरना था, वे खुश नहीं रहते हुए भी खामोश थे। ब्रह्मचारीजी की सामर्थ्य और इच्छा के सामने उनकी इच्छाएं बौनी पड़ती थीं।

इस रिंग बांध का निर्माण इस खुशी और कशमकश के बीच लगभग पूरा हो चला था कि गाँव के कुछ लोगों ने ब्रह्मचारी जी के यहाँ गुहार लगायी कि अगर बांध का काम यथावत् पूरा कर लिया गया तो पूवारी टोल के दक्षिण में न सिर्फ भुड़का नाले के किनारे बन रहा संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के बाहर पड़ जाने के कारण असुरक्षित हो जायेगा वरन पूवारी टोल के पश्चिम और उत्तर में स्थित जमीन भी असुरक्षित रह जायेगी। 

अतः रिंग बांध का निर्माण इस तरह से किया जाए कि संस्कृत कॉलेज भी रिंग के अन्दर हो जाए और बकिया जमीन की भी रक्षा हो जाए। ब्रह्मचारी जी इस बात को मान गए और तब रिंग बांध की तीसरी डिजाइन बनी जिसे चित्र में A H M N D F E A से दिखाया गया है। इस बांध की लम्बाई प्रायः 7 किलोमीटर थी। यह बांध पहले वाले बांध से काफी हट कर बनाया जाने वाला था। इसकी वजह से नये रिंग बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला कम हो रहा था और उस गैप से होकर पानी की निकासी में बाधा पड़ने वाली थी तथा पश्चिम में रजवा नाला और नये बांध के बीच की दूरी कम पड़ने के कारण पछुआरी टोल की दुर्गति का अंदेशा वहाँ के बाशिन्दों को होने लगा था। 

अब जो नया और तीसरा अलाइनमेन्ट बना उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जायेंगे। इन लोगों ने इस नये अलाइनमेन्ट का विरोध करना शुरू किया और धीरे-धीरे यह विरोध उग्र होना शुरू हुआ। हालत यह थी कि एक ओर से रिंग बांध के निर्माण के लिए डिवीज़न के इंजीनियरों की तरफ से बाँस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे। जिस जगह से बांध गांव को छूने लगता है वहाँ से अगर पूरब और पश्चिम के दोनों टोलों को घेर दिया जाता तो झगड़ा ही खत्म था। मगर इस बांध को लेकर रिंग बांध के अन्दर और उसके बाहर पड़ने वालों के खेमें अलग हो गए और दोनों पक्ष कई बार शक्ति प्रदर्शन के लिए आमने-सामने आये मगर कभी आपस में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई यद्यपि किसी भी परिस्थिति से निबटने की तैयारी दोनों तरफ से थी।

एक्सक्यूटिव इंजीनियर कामेश्वर झा

चानपुरा रिंग बांध का निर्माण बिहार के सिंचाई विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर कामेश्वर झा के अधीन हुआ था। वे बाद में बिहार के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता होकर रिटायर हुए। उनका कहना है, ‘‘...ब्रह्मचारी जी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गाँव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आता था।

हम लोग इंजीनियरिंग डिपार्टमेन्ट में काम करते हैं और हमारा राजनीति या किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता। अप्रूवल दे दीजिये, बजट दे दीजिये, हम काम करवा देंगे। हम से यही अपेक्षा है। उस समय टी. पी. पाण्डेय सुपरिन्टेडिंग इंजीनियर थे। मैं चाहता था कि यह काम जयनगर डिवीजन ही करे क्योंकि चानपुरा के कई घरों में मेरी रिश्तेदारियाँ थीं और मैं खुद रिंग बांध के अन्दर-बाहर के इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता था।

लेकिन पाण्डेय जी का मुझ पर दबाव था कि मेरा डिवीज़न ही वह काम करे। पहले एक एम्बैकमेन्ट कुछ दूर तक बना तो गाँव वालों ने ऐतराज किया कि उनका कुछ हिस्सा छूट गया है। अब एम्बैन्कमेन्ट का अलाइनमेन्ट बदलेगा तो जो काम हो चुका है उसका खर्च किस खाते में जायेगा? हमने कहा कि नये अलाइनमेन्ट का अप्रूवल और बजट हम को दे दीजिये, हम नया बना देंगे। ब्रह्मचारी जी के प्रभाव से अलाइनमेन्ट भी बदल गया और अप्रूवल भी मिल गया। गाँव में कुछ विरोध हुआ। जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री थे। 

सचिवालय में बैठक हुई जिसमें अभियंता प्रमुख नीलेन्दु सान्याल और दानापुर कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल परमाकान्त चौधरी भी मौजूद थे। पश्चिम वाले टोले की तो कोई सुनता ही नहीं था। हमको हिदायत हुई कि ब्रह्मचारी जी जो कहलवाते हैं वह करते जाइये। विवाद बढ़ता गया। विरोध इतना बढ़ा कि बात राजीव गांधी तक पहुँची और उन्होंने तारिक अनवर और दो अन्य लोगों को जाँच के लिए भेजा। इसी बीच सकरी में विभाग की एक मीटिंग हुई। उस समय उमेश्वर प्रसाद वर्मा सिंचाई मंत्री थे। 

इस बांध को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि उन्होंने उस मीटिंग में मेरी तरफ इशारा कर के कहा कि आप ने ऐसा झंझट पैदा कर दिया है कि हम लोगों की कुर्सी छिन जायेगी। इस पर हमारे चीफ इंजीनियर एच. पी. सिन्हा का कहना था कि अगर मंत्री जी उनके एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के बारे में यही राय रखते हैं तो इस काम को किसी दूसरे चीफ इंजीनियर के अधीन करवा दिया जाय। उन्होंने पश्चिमी कोसी नहर के मुख्य अभियंता अब्दुस समद साहब का नाम भी सुझाया था। मैंने भी मंत्री जी को कहा कि मेरी इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं है और यह काम मैं निर्विकार भाव से कर रहा हूँ।

मैं व्यक्तिगत तौर पर दरभंगा रहना पसन्द करूंगा। तब उन्होंने रुख बदला और कहा कि काम तो आप ही को करना पड़ेगा पर आप मुझे सीधे रिपोर्ट कीजिये। हो सकता है मुख्यमंत्री ने उन्हं  यही हिदायत दी हो। हम लोगों ने जहाँ छोड़ दिया उसका काम वहीं पड़ा हुआ है। जो भी हो पूरे काम में किसी भी पक्ष का इंजीनियरों से कोई उलझाव नहीं हुआ था, हम लोग भी अपने काम से ही मतलब रखते थे।’’ 

योगगुरु स्वामी धीरेंद्र ब्रह्मचारी जी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ (दाएं)


किसी भी निर्माण कार्य के सामाजिक सरोकार से अपनी पेशेगत प्रतिबद्धताओं के कारण इंजीनियर उसी तरह निर्विकार रह सकते हैं जैसे डॉक्टर अपने मरीजों के साथ और वकील अपने मुवक्किलों के साथ किसी भावनात्मक लगाव में नहीं पड़ते। समाजकर्मियों या राजनीतिज्ञों से समाज इस तरह की अपेक्षाएं नहीं रखता और ऐसी विवादास्पद परिस्थितियों में या तो नेतृत्व का जन्म होता है या नेतृत्व के शून्य को भरने के लिए किसी व्यक्ति का उदय होता है। चानपुरा में इस शून्य को भरने के लिए स्थानीय विधायक युगेश्वर झा आगे आये।


मधवापुर प्रखंड के बासुकी बिहारी गाँव के युगेश्वर झा कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता होने के साथ-साथ मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक भी थे। वे परिस्थितियों से कभी भी समझौता न करने वाले कर्मठ समाजकर्मी थे और उनके प्रखर विरोधी भी उनकी लगन, मेहनत और ईमानदारी की दाद देते थे। युगेश्वर झा ने पछुआरी टोले वालों की तरफ से रिंग बांध के विरोध का नेतृत्व संभाला और एक आन्दोलन खड़ा कर दिया।

पछुआरी टोल के देवचन्द्र चौधरी बताते हैं, ‘‘...ब्रह्मचारी जी को इस बात की खबर लगी कि युगेश्वर झा बांध के निर्माण में टांग अड़ा रहे हैं और उनके ऊपर डॉ. जगन्नाथ मिश्र का हाथ है। उनका इन्दिरा गाँधी को सुझाव था कि सारी समस्या की जड़ युगेश्वर झा हैं और उनको यहाँ से हटा दिया जाए तो समस्या का समाधान हो जायेगा और रिंग बांध का निर्माण निर्विघ्न रूप से पूरा हो जायेगा। तब युगेश्वर झा को जिला बदर कर दिया गया और आन्दोलन नेतृत्व विहीन हो गया। जब चानपुरा का रिंग बांध बनने लगा तो हम लोगों ने उसका विरोध किया। मेरी उम्र उस समय सिर्फ 15-16 साल रही होगी।

ठेकेदार के आदमियों से मेरा झगड़ा हो गया और मैंने उनका फीता काट दिया। नौबत पहले झगड़ा-झंझट और बाद में मार-पीट तक पहुँची। उसने रिपोर्ट लिखायी और पुलिस मुझे पकड़ कर ले गयी और जेल में बन्द कर दिया। मुझे जेल से छुड़ाने के क्रम में गाँव के लोग गोलबन्द हो गए और वहीं से रिंग बांध का सामूहिक विरोध शुरू हुआ।’’

प्रो. सतीश चन्द्र झा अपनी पत्नी श्रीमती मोहनी झा के साथ


पछुआरी टोले के निवासी श्री सतीश चन्द्र झा, युगेश्वर झा के बचपन के सहपाठी और अभिन्न मित्र हैं। वे कहते हैं, ”... जब यह निश्चित हो गया कि युगेश्वर झा को वहां से हटना ही पड़ेगा तब उन्होंने श्री जगन्नाथ मिश्र से मंत्रणा की और तब यह तय हुआ कि आंदोलन का नेतृत्व सतीश चन्द्र झा संभालेंगे। उन दिनों यहां शिक्षकों का भी एक आंदोलन चल रहा था और मैं उसी सिलसिले में मुजफ्फरपुर जेल में बंद था।

युगेश्वर झा मुझसे मिलने जेल आए और कहा कि अगर आप आंदोलन की कमान नहीं संभालेंगे तो यह बांध बन जाएगा। बहुत से लोग तबाह-बरबाद हो जाएंगे और धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की जीत होगी। मैं बड़े लोगों की राजनीति में फंसा। आठ रुपया चालीस पैसा जमा करवाकर रात में मेरा डाक्टरी परीक्षण करवाया गया और मैं पैरोल पर जेल से रिहा होकर बाहर निकल आया और गांव पहुंच गया।

यहां से युगेश्वर झा की गैर-मौजूदगी में जन-आंदोलन की शुरुआत हुई बांध बन जाने से पहले से ही बदहाल जल-निकासी और भी बुरी हालत में पहुंचने वाली थी। इस बांध का असर नेपाल सीमा पर रातो नदी तक पड़ने वाला था। पचासों गांव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा। हम लोगों ने एक ग्राम सुरक्षा संघर्ष समिति बनाई। पछुआरी टोले के दुःखहरण चौधरी इसके महामंत्री थे और मुझे अध्यक्ष बनाया गया।

हम लोगों ने इन सभी गांवों में सघन संपर्क कर बताया कि अगर चानपुरा रिंग बांध बन गया तो पश्चिम के गांव तबाही के कगार पर पहुंच जाएंगे। मामला रंग लाया और मीडिया की रुचि इस पूरी योजना में जगी। ब्लिट्ज के बी.के. करंजिया तीन दिन हमारे गांव में आकर रुके थे। विकास कुमार झा ने भी काफी कुछ लिखा। भोगेन्द्र झा, एम.पी. लगभग एक सप्ताह मेरे घर में रहे। हमारा मुकाबला धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसे समर्थ व्यक्ति से था। इसलिए मामले का प्रचार भी खूब हुआ। सारा जमावड़ा मेरे घर पर और मैं खर्चे से तबाह। पत्नी का सारा समय रसोई में और मेहमानों की देख-भाल में गुजरता था।

एडवोकेट पं ताराकांत झा


लगभग उसी समय बिहार के पूर्व एडवोकेट जनरल और वर्तमान सभापति-बिहार विधान परिषद, ताराकांत झा के बेटे के यज्ञोपवीत संस्कार में अटल बिहारी वाजपेयी पड़ोस के उनके गांव शिवनगर आए हुए थे। हमारे गांव के एक बुजुर्ग रघुवंश झा वाजपेयी जी से मिलने गए और उन्होंने सारी व्यथा-कथा सुनाई। वाजपेयी जी ने ताराकांजी से कहा कि पचास गांवों का मामला है, आप इनकी तरफ से हाईकोर्ट में पैरवी कर दीजिए।

ये लोग कहां से पैसा लाएंगे? तारा बाबू राजी हो गए। उधर मुकदमा चलता था और इधर आंदोलन। महिलाएं तक जेल गईं। सरकार ने विरोध को दबाने के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस उतार दी थी। मुख्यमंत्री पर बहुत दबाव था। उन्हें मजबूरन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का पक्ष लेना पड़ा। इसके अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं था।“

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी


यह सुनने में बड़ा ही विचित्र लगता है कि 30 लाख रुपए मात्र के किसी काम के पीछे एक छोटी-सी योजना के पीछे राज्य का मुख्यमंत्री किसी दबाव में आ जाए। पर चानपुरा बांध ने कुछ इसी तरह की परिस्थितियां बना दी थीं। लेखक ने श्री मिश्र से बात करके उनका मंतव्य जानना चाहा।

तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा

”यह सच है कि युगेश्वर झा मेरे बहुत नजदीक थे और चानपुरा संबंधी पूरे मसले पर मैं उनसे सलाह लेता था। यह पूरी घटना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बहुत ही उलझन और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति पैदा करने वाली थी। ब्रह्मचारी का जर्बदस्त दबदबा था और अब अंदरूनी बात क्या थी, वह तो मेरे लिए कह पाना मुश्किल है मगर इंदिराजी के यहां उनका आना-जाना और उठना-बैठना तो निश्चित रूप से था।

इसका एक मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे ऊपर था। लेकिन मेरी प्रतिबद्धताएं जन-हित के साथ थीं और उसका प्रतिनिधित्व युगेश्वर झा कर रहे थे और मानसिक रूप से राज्य सरकार उनका समर्थन कर रही थी। इस वजह से ब्रह्मचारीजी को हो सकता है मुझसे नाराजगी रही हो और इस घटना के विरोध को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया हो। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं युगेश्वर झा का समर्थन कर रहा था और यही समग्रता में जन-हित में था। यह लगभग तीस साल पुरानी घटना है। बहुत कुछ घटनाएं मुझे अब याद नहीं है और अब वहां क्या स्थिति है, यह भी मुझे नहीं मालूम।“

एक बात और कि दिल्ली से लेकर पटना तक आई.ए.एस. अधिकारियों की एक बहुत ही मजबूत लॉबी है और यह लोग इंजीनियरिंग मामलों समेत लगभग सारे मसलों में बहुत हस्तक्षेप करते हैं जो कि नहीं होना चाहिये, मगर होता है। जिनके पास पॉवर होती है उसे सब चीजों की जानकारी हो, यह तो जरूरी नहीं है। जानकारी के लिए पॉवर का इस्तेमाल हो सकता है मगर पॉवर जानकारी नहीं हो सकती। ज्ञान का उपयोग होना चाहिये और यह ज्ञान उसी के पास से आना चाहिये जो ज्ञानी हो।’’


जब इस नये रिंग बांध का काम लगभग 12 आना पूरा हो गया तब उसका विरोध शुरू हुआ। इस बीच रिंग बांध के समर्थक और विरोधी दोनों ही ब्रह्मचारी जी से अपनी-अपनी तकलीफें बताने के लिए संपर्क करते रहे और ब्रह्मचारी जी सभी को तसल्ली देते रहे कि वह किसी का अहित नहीं होने देंगे। पछुआरी टोल से 76 वर्षीय द्वारका नाथ चौधरी बताते हैं, ‘‘...हमारे गाँव के एक बुजुर्ग चले गए ब्रह्मचारी जी के पास दिल्ली यह कहने के लिए अगर यह बांध पूरा हो गया तो उनकी जगह-जमीन पूरी तरह बरबाद हो जायेगी।

ब्रह्मचारी जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब आप आ गए हैं तो आपका काम हो जायेगा। फिर ब्रह्मचारी जी ने बांध का तीसरा हवाई सर्वेक्षण किया। तब फिर तीसरी योजना बनी। इसमें भी हम लोगों की जमीन जाती थी और हमें कोई फायदा नहीं होना था। तब हमने और दुःखहरण चौधरी ने बांध के खिलाफ मुकदमा दायर किया और हमारी तरफ से ताराकान्त झा ने वकालत की।

जब यह मामला दायर हुआ तो दिल्ली से ब्रह्मचारी जी का फोन आया कि किसी तरह की चिन्ता मत कीजिये और जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा। आप लोग दिल्ली आइये। हमने भी सोचा कि जहाँ नाखून से काम चलता हो वहाँ तलवार क्यों चलायें। मैंने दुःखहरण बाबू से कहा कि चलिये, दिल्ली चलते हैं। इस बीच ब्रह्मचारी जी ने हम दोनों के लिए हवाई जहाज का टिकट भिजवा दिया।

हमें वहाँ ब्रह्मचारी जी के आश्रम विश्वायतन में बहुत अच्छे कमरे में रखा गया था मगर न तो वहाँ हम लोगों ने कभी भर पेट खाना खाया, न पूरी नींद सोये और न ही कमरे में रहते हुए आपस में कोई बात-चीत की। दुःखहरण बाबू कुछ बोलने को होते थे तो मैं रोक देता था कि पता नहीं कमरे में हमारी बातें रिकार्ड करने की व्यवस्था कर दी गयी होगी तो हम लोग मुसीबत में पड़ जायेंगे। मैं भी बोलने को होता था तो दुःखहरण बाबू रोक देते थे। हम लोगों को बात करनी होती थी तो कमरे से बाहर चले जाते थे।

कुछ दिन वहाँ रहने के बाद जब हम लोगों ने जाने की बात कही तब ब्रह्मचारी जी का बुलावा आया बात-चीत के लिए। दुःखहरण बाबू जाने के लिए तैयार थे मगर मुझे डर लगता था। फिर भी जाना तो था ही। गए, मगर जहाँ प्रतीक्षा करनी थी वहाँ हमसे भी डेढ़ हाथ ऊँचे जवान 5 मिनट बाद आकर हमारे अगल-बगल में खड़े हो गए। हमको मृत्यु का स्मरण हो गया। दुःखहरण बाबू कुछ ऊँचा सुनते थे। वे शायद इस स्थिति से खुश नहीं थे और कुछ कहना चाहते थे मगर मैंने उनका हाथ दबा दिया। फिर हिम्मत जुटा कर मैंने ब्रह्मचारी जी से कहा कि आप ने तो गांव का हवाई सर्वेक्षण किया, जमीन पर तो उतरे नहीं कि हम लोग सारी परिस्थिति आप को समझा पाते।

यह सच है कि अगर यह बांध जैसा बन रहा है वैसा ही बन गया तो पछुआरी टोल बरबाद हो जायेगा। हम ने उनको याद दिलाया कि उन्हीं के परिवार के सौजन्य से हम लोग चानपुरा बसने के लिए आये थे और अगर उसी परिवार के कारण हम लोग उजड़ जायेंगे तो यह अच्छा तो नहीं ही होगा। वैसे आप जो चाहेंगे वही होगा। अगर आप की कृपा होगी तो हमारा पुनर्वास हो जायेगा और आप रूठ जायेंगे तो हम तो आप को गांव भी नहीं ले जा सकेंगे।

उन्होंने आश्वासन दिया कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। हम लोग लौट कर आये तो यहाँ काम चालू था। कोई 2000 लोग विरोध में खड़े थे। हम लोग ब्रह्मचारी जी का रुतबा देख कर आये थे। इसलिए हमने सबको समझाने की कोशिश की कि ब्रह्मचारी जी से झंझट कर के पार नहीं पाइयेगा। दरभंगा जिले का पूरा प्रशासन एक तरफ और अकेले ब्रह्मचारी जी दूसरी तरफ-फिर भी उनका पलड़ा भारी रहेगा। अब जो हो रहा है, होने दीजिए। फिर भी लोग माने नहीं।

पछुआरी टोले और आसपास के प्रभावित होने वाले गांवों की लगभग 5,000 महिलाओं को आगे कर के प्रदर्शन जारी रहा तो पता नहीं कहां से महिला पुलिस भारी तादाद में उतार दी गई। पुलिस के जवान भी जो लगाए गए। वे किसी भी मायने में बिहार पुलिस के नहीं लगते थे। अब औरतों को बाल पकड़ कर खींचा जाने लगा और आदमियों के सीने पर संगीनें तनीं तो पूरा विरोध बिखर गया। बहुत से लोगों को पकड़कर मधुबनी जेल में बंद कर दिया गया।

कुछ लोगों को यहां से उठाकर दूर-दराज इलाकों में रास्ते में कहीं-कहीं छोड़ दिया गया। ये लोग बाद में किसी तरह तीन-चार दिन में अपने गांव लौटे। आसपास के गांव जैसे धनुखी, पुलबरिया, बर्री, माधोपुर आदि 15-20 गांवों के लोग हम लोगों के साथ शामिल थे। जेल भरने का सिलसिला कई दिन चला। मगर हमारा विरोध बहुत बड़ी ताकत से था।

द्वारिका नाथ चौधरी 


हमलोगों की अपेक्षा बस इतनी ही थी कि बांध अगर बनता तो इसमें पछुआरी टोल को भी शामिल कर लिया जाए, इससे सबकी सुरक्षा हो जायेगी। बांध का विरोध नहीं था।’’ 

ब्रह्मचारी जी ने जिस किसी को जो भी आश्वासन दिया हो पर चानपुरा में रिंग बांध के निर्माण की खबरें और उसको लेकर उभरा विरोध भी चर्चा में कम नहीं था। बिहार से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र इस मसले को समय-समय पर उठाते रहे। ‘‘भारतीय जनता पार्टी के बिहार प्रशाखा के उपाध्यक्ष पं. ताराकान्त झा, ऐडवोकेट ने श्री धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के जन्मस्थान चानपुरा गाँव में बनने वाले रिंग बांध से उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति राज्य सरकार को आगाह किया।

उन्होंने कहा कि चानपुरा पूरबी टोल को छोड़ कर पश्चिम टोला, धनुखी, माधोपुर, बिशनपुर, तरैया, शुजातपुर आदि गाँवों के लोग इस बांध से आतंकित थे। पंडित झा ने आरोप लगाया कि 22 लाख रुपये के खर्च से एक गाँव को बाढ़ से बचाने की योजना बनाते समय राज्य सरकार द्वारा अन्य गाँवों की सुरक्षा पर जरा भी ध्यान नहीं दिया गया है।’’

यह सवाल बिहार विधान परिषद में भी उठा। 7 जुलाई 1982 को विधान परिषद में लाए गए एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में श्री कृपानाथ पाठक ने कहा, ”...बेनीपट्टी अनुमंडल के बसैठ-चानपुरा के पूर्वी टोल की बाढ़ सुरक्षा के लिए सिंचाई विभाग द्वारा 32 लाख रुपए की लागत से विशालकाय तटबंध के कार्य प्रारंभ करने से हजारों-हजार परिवारों के सामने जान-माल का खतरा उत्पन्न हो गया है, क्योंकि अधवारा ग्रुप की अनेक नदियों का बहाव इस बांध के द्वारा बिलकुल ही रोक दिया गया है।

सुरसरिया और मुकरा के बेड को बिलकुल बांधकर इसके बहाव को अवरूद्ध किया जा रहा है। पानी के निकास की योजना बनाए बिना मात्र एक छोटा गांव बचाने के लिए सरकार ने अन्य इलाकों के सैकड़ों गांवों में बसने वाले आम नागरिकों के सामने जिंदगी के अस्तित्व पर भयंकर खतरा उत्पन्न कर दिया है। ... उक्त बांध से दरभंगा, बसैठ-माधवापुर तथा मधुबनी-बसैठ-पुपरी-सीतामढ़ी लोक निर्माण पथ जो वहां से नागरिकों का एकमात्र पथ है, जलमग्न होकर नष्ट हो जाएगा।

खिरोई तटबंध जो एग्रोपट्टी से दरभंगा तक बाढ़ सुरक्षा का तटबंध वह भी पूर्णतया टूट जाएगा। फलस्वरूप सैकड़ों गांवों के लोग पानी में बहकर दुनियां से चले जाएंगे। ...सबसे आश्चर्य की बात है कि सरकार जबरन, बिना मुआवजा दिए हुए असंवैधानिक तरीके से सशस्त्र पुलिस तैनात कर किसानों की हजारों एकड़ जमीन छीन कर इस तटबंध का निर्माण कर रही है। ...उक्त तटबंध योजना की तकनीकी स्वीकृति भी प्राप्त नहीं है और न उक्त योजना को गजट में ही प्रकाशित किया गया है।

...उक्त अलोक-कल्याणकारी हजारों-हजार घर-बार को बेघर कर बीच मंझधार में डुबा देने वाली योजना के विरुद्ध वहां के हजारों-हजार नर-नारियों ने 25 मई 1982 से ही अपने जीवन मरण की लड़ाई छेड़ दी है। भयावह जन-आक्रोश के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए काम रोक दिया गया था। लेकिन पुनः उक्त कार्य को सशस्त्र पुलिस के द्वारा बंदूक की नोक पर करवाया जा रहा है। प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह घेराव, सर्वदलीय विरोध उसके विरुद्ध जारी है। लेकिन सरकार बच्चे, बूढ़े, बूढ़ी औरतों पर लाठी चार्ज, अश्रु गैस का प्रयोग कर उक्त विनाश लीला के उक्त कार्य को करते रहने में गर्व का अनुभव करती है।

इस तरह के अलोकतांत्रिक, अलोक-कल्याणकारी, जन-विरोधी और अमानवीय कार्य करवाने के लिए प्रशासन के निर्णय और कठोर व्यवहार से लोगों के जन-जीवन में आक्रोश, क्षोभ, भय एवं असंतोष व्याप्त हो गया है। किसी भी क्षण विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यदि उक्त कार्य को तत्काल बंद नहीं किया गया तो जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की संभावना है।“


इस ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर सरकार को 20 जुलाई, 1982 के दिन जवाब देना था मगर लगता है कि ब्रह्मचारीजी के प्रभाव के कारण सरकार परिषद् में किसी भी बहस से बचना चाहती थी। सदन में त्रिपुरारी प्रसाद सिंह का मानना था, ‘‘...जितने भी कॉल अटेन्शन आते हैं वे चोरी, डकैती, हत्या, रपट आदि किसी न किसी मामलों से सम्बंधित रहते हैं। हाइकोर्ट में केस किया गया है लेकिन हाइकोर्ट ने अभी तो सुना ही नहीं है, न ही उस केस का अभी ऐडमिशन हुआ है। हाइकोर्ट ने कोई निषेधाज्ञा नहीं जारी की है। यह अब तो सदन की प्रापर्टी है। ये ब्रह्मचारी जी के डर से भाग रहे हैं। मुख्यमंत्री के रिश्तेदार तो जेल में चले गए हैं, फिर भी ब्रह्मचारी जी की बात मानते चले जाइये।’’ 

सदस्यों की मांग थी कि सरकार बांध निर्माण बंद करने के लिए निषेधाज्ञा लगाये। पद्मदेव नारायण शर्मा ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘...मैं आप से निवेदन करना चाहता हूँ कि यदि आप इसे स्थगित करना चाहते हैं तो आप आज ही निषेधाज्ञा जारी कीजिये कि सिंचाई विभाग द्वारा बसैठ चानपुरा गांव के पूर्वी टोला में बाढ़ सुरक्षा के नाम पर बनाये जा रहे तटबंध पर कोई काम नहीं होगा। यदि आप ऐसा नहीं कीजियेगा तो वहाँ के किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन बांध में चली जायेगी और बाढ़ से जान-माल का खतरा उत्पन्न हो जायेगा।’’ जबकि सभापति का मानना था कि ‘‘पहले जांच लूंगा इसके बाद ही निषेधाज्ञा जारी की जा सकती है।’’ 

उधर बिहार विधान सभा में भी इन्दर सिंह नामधारी ने चानपुरा में बनने वाले रिंग बांध के विरोध में एक कार्य स्थगन प्रस्ताव रखा और कहा, ‘‘...धर्मेन्द्र (धीरेन्द्र)-ले. ब्रह्मचारी जो दिल्ली में षड्यंत्र कर रहा था वह धीरेन्द्र ब्रह्मचारी अब बिहार में षड्यंत्र कर रहा है। ...मैं डॉ. जगन्नाथ मिश्रा से कहता हूँ कि इस धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी को तुरंत बिहार से दिल्ली षड्यंत्र करने के लिए भेज दीजिये। मधुबनी जिले के चानपुरा में रिंग बांध पर 45 लाख रुपये खर्च किये जा रहे हैं। इस रिंग बांध की वहाँ क्या जरूरत थी, क्या वह पैसा श्रीमती इन्दिरा गांधी के कोष का है या बिहार की जनता का है? इस तरह बिहार में पैसे पानी की तरह बहाये जा रहे हैं।’’ 

इस स्थगन प्रस्ताव पर अध्यक्ष राधानन्दन झा की टिप्पणी थी कि चानपुरा में रिंग बांध का काम पिछले तीन महीनों से चल रहा है और यह कोई आपात स्थिति नहीं है कि उस पर विचार हो। अध्यक्ष की इस व्यवस्था पर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य सदन छोड़ कर बाहर चले गए। सरकार ने जरूर यह आश्वासन दिया कि वह 30 जुलाई 1982 को इस विषय पर वक्तव्य देगी। दुर्भाग्यवश सरकार का यह बयान बिहार विधान सभा पुस्तकालय के संग्रह में या दूसरी जगह उपलब्ध नहीं है।

युगेश्वर झा  (दाएं) 

एक तरफ इन वैधानिक संस्थाओं में इस मुद्दे पर बहस तेज़ थी वहीं चानपुरा पुलिस छावनी में तबदील हो गया था। रोज़ धर पकड़ और स्थानीय लोगों का जेल आना-जाना लगा रहा। 23 जुलाई 1982 को सतीश चन्द्र झा ने प्रेस विज्ञाप्ति जारी कर के करीब सौ लोगों की गिरफ्तारी की सूचना दी। इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदला जिसके बारे में फिर बताते हैं सतीश चन्द्र झा। उनका कहना है, ‘‘...एक दिन मुझे युगेश्वर झा का फोन आया कि राजीव गांधी गुवाहाटी जाते समय कुछ समय के लिए पटना हवाई अड्डे पर रुकेंगे क्योंकि वहाँ उनके जहाज में ईंधन भरा जायेगा।

उन्होंने मुझे कुछ लोगों के साथ हवाई अड्डे पर मौजूद रहने की ताकीद की। मैं करीब पन्द्रह लोगों के साथ हवाई अड्डे पर आ गया। जैसे ही राजीव गांधी लाउन्ज में आकर लोगों से मिलने लगे वैसे ही युगेश्वर झा जोर-जोर से रोने लगे। हम लोगों ने भी वही काम दुहराया। राजीव गांधी ने हम लोगों से इस तरह के विचित्र व्यवहार का कारण पूछा तो युगेश्वर झा ने उन्हें सारी बात बतायी। 

राजीव गांधी ने तुरन्त तारिक अनवर, श्याम सुन्दर धीरज और रणजीत सिन्हा को लेकर एक कमेटी बनायी और उनसे कहा कि कल वह इसी समय गुवाहाटी से लौटते समय कुछ देर के लिए पटना रुकेंगे। इस बीच में यह तीनों लोग चानपुरा जाकर वहाँ की स्थिति पर उनको रिपोर्ट दें। इन लोगों को चानपुरा लाने ले जाने का यह सारा काम मेरे जिम्मे पड़ा क्योंकि युगेश्वर झा वहाँ जा नहीं सकते थे, उन पर रोक लगी हुई थी। मैंने रातों-रात सब जगह खबर भिजवायी। सुबह काफी संख्या में लोग चानपुरा में इकट्ठा थे।

यह तीनों लोग भी वहाँ पहुँचे। हमने पूरा बांध इन लोगों को दिखाया। संस्कृत कॉलेज में सबकी मीटिंग हुई। गाँव के लोगों ने सारी बातें उन्हें समझायीं और तब यह लोग समय रहते पटना चले गए और हवाई अड्डे पर राजीव गांधी को सारी बातें बताईं। राजीव गांधी जब दिल्ली घर पहुँचे तो वहाँ धीरेन्द्र ब्रह्मचारी मौजूद थे जिनको देखकर उनका गुस्सा फूट पड़ा। 


उन्होंने इन्दिरा जी को बताया कि ब्रह्मचारी जी की वजह से पचास गाँव बरबाद हो जायेंगे और कांग्रेस का गढ़ वहाँ छिन्न-भिन्न हो जायेगा। उन्होंने ब्रह्मचारी जी को चले जाने को कहा। प्रधानमंत्री कार्यालय से दूसरे दिन रिंग बांध का काम बंद करने का आदेश आ गया। इस तरह जब तक राजीव गांधी का प्रभाव रहा यह काम बंद रहा। हाइकोर्ट में जो मामला चल रहा था वह भी खारिज हो गया क्योंकि न्यायालय ने इंजीनयरों की एक कमेटी बना कर उनसे तकनीकी राय मांगी और उसी के अनुसार काम करने या न करने का आदेश दिया। इस तरह विरोध क्षीण हो गया।

उस समय जो काम बंद हुआ उसके इतने दिनों बाद बांध पर इस साल (2010) मिट्टी पड़ी है। एक करोड़ तीस लाख रुपये से मिट्टी का काम वहाँ हुआ है। इस पूरे निर्माण कार्य का न तो कोई विरोध होता और न पूवारी या पछुआरी टोल का कोई विवाद उठता अगर ब्रह्मचारी जी का पूरे गाँव को घेर लेने का पहला प्रस्ताव कारगर हो गया होता। उस समय टोले-मुहल्ले समेत पूरा गाँव रिंग बांध के भीतर होता। 

यह विवाद पछुआरी टोल के ही विरोध के कारण हुआ मगर ब्रह्मचारी जी अपने संपर्कों के कारण बहुत ज्यादा ताकतवर थे, उन्होंने जो चाहा करवा लिया। यह सच है कि स्वामी जी उत्कृष्टतम योगियों में थे। आयुर्वेद के महान ज्ञाता थे। उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद का दमा का इलाज किया था। इन्दिरा गांधी और जय प्रकाश नारायण का उन्होंने इलाज किया था। उनके ज्ञान और साधना में कहीं कोई कमी नहीं थी।

इन सब कारणों से उनके संसाधनों की भी कोई कमी नहीं थी। हमारे तमाम विरोध के बावजूद उनका व्यक्तित्व हम लोगों के लिए बड़ा उदार था भले ही उनके बारे में बाहर के लोगों द्वारा जो कुछ भी विवादास्पद बातें कही जाती रही हों। यह भी गलत नहीं है कि राजीव गांधी अगर नहीं रहते तो हम लोग बर्बाद हो गए होते।’’ 

जहाँ तक न्यायिक प्रक्रिया का प्रश्न है लेखक ने पछुआरी टोल की तरफ से उच्च न्यायालय में पैरवी कर रहे तत्कालीन ऐडवोकेट (बाद में बिहार के ऐडवोकेट जनरल और बिहार विधान परिषद् के वर्तमान सभापति) ताराकान्त झा से इस मामले की जानकारी लेनी चाही। उनका कहना है, ‘‘...चानपुरा गाँव बेनीपट्टी प्रखंड, मधुबनी में पड़ता है। उसके दो टोले हैं-एक पूवारी, दूसरा पछुआरी। मेरा गाँव है शिवनगर और हमारे गाँवों के बीच में बुढ़नद नदी बहती है जो एक बरसाती नदी है। बाढ़ जब आती है तो जोरों की आती है और तब चानपुरा के अन्दर भी पानी घुस जाता था। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का घर पूवारी टोले में था।

इस टोले में सरकारी पदाधिकारी अधिक हैं। कुछ पुराने ज़मींदार भी उस टोले में थे। धीरेन्द्र जी ने अपने गाँव को बचाने के लिए हवाई जहाज से (उनका अपना छोटा जहाज था) गाँव की परिक्रमा की। मन में तय किया कि गाँव को रिंग बांध से घेर दिया जाए। गाँव वालों को धीरे-धीरे पता लगा। इससे चानपुरा का पछुआरी टोला प्रभावित होने वाला था, उनकी योजना अपना टोला बचाने की थी। रिंग बांध बनने से उत्तर वाले गाँवों पर भी असर पड़ता। एक बार मेरे गाँव में अटल जी आये थे किसी आयोजन में मेरे घर। चानपुरा रिंग बांध से प्रभावित होने वाले गाँवों के लोग अटल जी से मिलने आ गए। दरख्वास्त भी दी। उन्होंने ध्यान से सुना। अटल जी ने मेरी ओर इशारा कर के उन लोगों से कहा कि वकील साहब आप लोगों की मदद करेंगे।

पछुआरी टोले वाले आगे बढ़े। पटना उच्च न्यायालय में मामला दर्ज हुआ, बिहार सरकार पार्टी थी। केन्द्र को पार्टी नहीं बनाया क्योंकि धीरेन्द्र जी का वहाँ प्रभाव था। योजना का खर्चा बिहार सरकार का था। धीरेन्द्र जी मुझसे मिलना चाहते थे कि मामला रफा-दफा हो जाए

बिहार सरकार अदालत में पेश हुई और स्टैण्ड लिया कि इस निर्माण का प्रभाव दूसरे गाँवों पर भी होगा। जांच हुई, रिपोर्ट बनी, उच्च न्यायालय में दाखिल हुई। इधर मुकदमा चलता रहा मगर तब तक बांध का बनना रुका नहीं। मा. हरिलाल अग्रवाल प्रेसिडेन्सी जज थे। उन्होंने कहा कि बिहार और भारत सरकार दोनों मिल कर लोगों की सुरक्षा का प्रबंध करें। यह फैसला आने तक बांध बन चुका था। पछुआरी टोले वालों को धीरेन्द्र जी ने बुलाया और समझा लिया और कहा कि बांध में ही पानी की निकासी का रास्ता बनवा देंगे। मामला खतम हो गया। उच्च न्यायालय का कोई निर्णय नहीं हो पाया।’’


जहाँ यहाँ से चानपुरा रिंग बांध का उत्तर काण्ड शुरू होता है। पटना हाई कोर्ट में दुःखहरण चौधरी ने इस नये रिंग बांध के निर्माण के खिलाफ जो मामला दायर किया था उसमें उच्च न्यायालय में वादियों की तरफ से बिहार के भूतपूर्व चीप़फ इंजीनियर भवानन्द झा ने आपत्ति की थी कि (क) रिंग बांध को उत्तर की तरफ बढ़ाया जाता है तो इस रिंग बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला घट जायेगा और पोखर के बांध और रिंग बांध के बीच से पानी की निकासी में बाधा पड़ेगी जिसके फलस्वरूप उत्तर और पश्चिम के इलाके ज्यादा समय तक बाढ़ में डूबे रहेंगे और उन पर बाढ़ का खतरा बढ़ेगा, (ख) रिंग बांध के पश्चिम की ओर होने वाले विस्तार के कारण रजवा नाले और रिंग बांध के बीच का भी फासला कम होगा और वहाँ भी बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। उनका सुझाव था कि रिंग बांध को थोड़ा और पश्चिम की तरफ खींच कर पछुआरी टोल को भी रिंग बांध के अंदर ही ले लिया जाए तथा (ग) भुड़का नाला दो स्थानों पर प्रस्तावित रिंग बांध से टकराता है जिससे रिंग बांध पर खतरा बढ़ेगा। अतः इसके अलाइनमेन्ट को दुरुस्त किया जाए।

यह सारे मसले टेकनिकल थे जिन पर राय जानने के लिए उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ इंजीनियरों की एक समिति का गठन करके उससे भावी कार्यक्रम के लिए राय मांगी और तय किया कि यह समिति 15 जनवरी 1983 तक अपनी रिपोर्ट दे देगी। इस समिति के तीन सदस्य थे जिसमें गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष नीलेन्दु सान्याल, बिहार सिंचाई विभाग के अभियंता प्रमुख ए. के. बसु और बिहार सरकार में समस्तीपुर क्षेत्र के मुख्य अभियंता एच. पी. सिंह शामिल थे।

इस समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पहली फरवरी 1983 को उच्च न्यायालय को दे दी। समिति ने अपनी राय देते हुए कहा कि (क) अंगरेजवा पोखर और प्रस्तावित रिंग बांध के बीच का फासला 100 फुट न होकर 200 फुट है तथा बसैठ-मधवापुर सड़क का लेवेल भी उच्चतम बाढ़ लेवेल से कोई 2 फुट नीचे है तथा इस सड़क में स्थित 3 पुल हैं जिनसे होकर बरसात/ बाढ़ के पानी की निकासी सुचारु रूप से हो जायेगी और अगर इसके बाद भी पानी की निकासी में बाधा पड़ती है तो अंगरेजवा पोखर के दक्षिणी भाग का सरकार अधिग्रहण कर के उसके बांध के कुछ हिस्से को काट कर अतिरिक्त रास्ता बना ले। इस तरह जल-निकासी दुरुस्त हो जायेगी और रिंग बांध के अलाइनमेन्ट को बदलने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। 

कुछ गाँव वालों के सुझाव पर समिति का यह भी कहना था कि गाँव में उत्तर-दक्षिण दिशा में एक जमींदारी बांध पहले से ही था और वह वहाँ तक था जहाँ तक यह रिंग बांध उत्तर दिशा में जाता है। (ख) रिंग बांध को पश्चिम की ओर बढ़ा कर पछुआरी टोल को भी रिंग बांध के अंदर ले लिए जाने के प्रस्ताव पर समिति का कहना था कि पछुआरी टोल का उच्चतम बाढ़ का लेवेल इतना ही होता है कि वहाँ केवल एक घर (बैद्यनाथ चौधरी का घर) ही बाढ़ में डूबेगा और यह रिंग बांध बनने के पहले भी डूबता था।

अतः रिंग बांध बन जाने से बाढ़ की स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इ. भवानन्द झा के इस प्रस्ताव को उन्हीं के तर्क से काटते हुए समिति का कहना था कि रिंग बांध को और अधिक पश्चिम हटाने का मतलब होगा कि उस तरफ धार और पश्चिमी बांध के बीच पानी की निकासी में बाधा पड़ेगी तथा (ग) भुड़का नाले को प्रस्तावित बांध द्वारा दो जगह काटने की बात पर समिति ने इन स्थानों पर सुरक्षात्मक उपाय सुझाये। संस्कृत कॉलेज को रिंग बांध के अंदर लेने के लिए थोड़े बहुत परिवर्तन सुझाये और कुछ जगहों पर स्लुइस गेट लगाने की व्यवस्था देते हुए इस रिंग बांध की डिजाइन को ठीक-ठाक बताते हुए अलाइनमेन्ट को दुरुस्त करार दिया। समिति का कहना था ‘‘...अगर बांध के अलाइनमेन्ट में वह परिवर्तन जिनकी सिफारिश की गयी है, कर दिये जाएं और पोखर के बांधों को थोड़ा तराश दिया जाए तो पछुआरी टोले पर बाढ़ का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’ 

समिति की इस रिपोर्ट के आने के पहले ही रिंग बांध पर काम बंद हो चुका था जो संभवतः राजीव गांधी की इस पूरे मामले में रुचि लेने के कारण हुआ हो। उनके न रहने का सबसे ज्यादा नुकसान चानपुरा को हुआ और 1982 में जो रिंग बांध पर काम बंद हुआ तो वर्षों उसी स्थिति में पड़ा रहा। अब स्थिति यह थी कि बिंदु E पर जहाँ एक खंड़जा बिछाया हुआ रास्ता पश्चिम से रिंग बांध के अंदर जाकर जीरो चेन पर बाहर निकलता हुआ बसैठ-मधवापुर सड़क को जोड़ता था वहाँ आकर रिंग बांध का निर्माण रुक गया।


देवचन्द्र चौधरी

कुल मिला कर बांध की जो स्थिति बनती वह चित्र-8.2 में दिखायी हुई है। विशेषज्ञ समिति की सलाह के अनुसार नक्शे में बिंदु H को E से बांध द्वारा जोड़ना था, जिस पर पछुआरी टोल के ग्रामीणों का ऐतराज था। उनको लगता था कि बांध का यह प्रस्तावित अलाइनमेन्ट दो जगहों पर भुड़का नाले से टकरायेगा और उनके लिए परेशानी पैदा करेगा। समाधान के तौर पर समझौता हुआ कि A बिंदु पर स्लुइस के पास से यह बांध संस्कृत कॉलेज के पश्चिम से जमींदारी बांध के रास्ते से E से जुड़ जायेगा जैसा कि चित्र HAE में दिखाया गया है और पुराना A से B, G तक का बांध एक अतिरिक्त सुरक्षा बांध के तौर पर काम करेगा। जब इस तकनीकी समिति की रिपोर्ट उच्च न्यायालय के पास विचार के लिए आयी तब 7 जनवरी 1983 को माननीय उच्च न्यायालय ने उसके समक्ष प्रस्तुत याचिका का निष्पादन कर दिया और बिहार सरकार को यह हिदायत दी की वह समिति की सिफारिशों के अनुसार काम को पूरा करवा दे। AE वाले बांध का निर्माण अभी तक नहीं हुआ है (जून 2010)।


सन् 2005 में बेनीपट्टी के बी.डी.ओ. ने ग्रामीण रोज़गार गारन्टी स्कीम के अन्तर्गत इस जमींदारी बांध BA की मरम्मत करनी चाही और उसमें 2004 में पड़ी एक दरार को भी पाट देने का उपक्रम किया। कुछ गाँव वालों को लगा कि सरकार 1983 वाली तकनीकी समिति की HAE वाले मार्ग से बांध बनाने वाली सिफारिश का उल्लंघन कर रही है और वह इस काम को रुकवाने के उद्देश्य से उच्च न्यायालय की शरण में चले गए। उस समय 130 चेन से लेकर 165 चेन तक का काम अधूरा छूट गया था और अस्थाई तौर पर AB वाला जमींदारी बांध ही रिंग का हिस्सा बना हुआ था और चानपुरा को सुरक्षा प्रदान करता था। वादियों का मानना था कि अगर AB वाला जमींदारी बांध बन कर तैयार हो गया तो फिर EAH वाले रास्ते का बांध कभी बनेगा ही नहीं और सरकार इस AB वाले रेखांकन को ही अंतिम रूप दे देगी और संस्कृत कॉलेज भी रिंग बांध के बाहर ही छूट जायेगा। उनकी यह भी मांग थी कि इस जमींदारी बांध (AB) की मरम्मत के लिए उनकी जमीन से मिट्टी न ली जाए।

चानपुरा रिंग बांध के इस AB हिस्से की मरम्मत काम के बदले अनाज स्कीम के तहत बेनीपट्टी प्रखंड कार्यालय द्वारा 6 लाख रुपये की लागत पर चलायी जाने वाली थी। इस काम का, जो कि 1983 की तकनीकी समिति की सिफारिशों के विपरीत था, कम से कम दो परिवारों पर बुरा असर पड़ने वाला था। कई लोगों की उपजाऊ भूमि नष्ट होने वाली थी और किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला था। वादियों का यह भी कहना था कि अगर रिंग बांध की AE वाली दूरी पर काम लग जाता है, जिसकी निकट भविष्य में आशा थी, तो प्रखंड कार्यालय द्वारा शुरू किये गए इस काम का कोई औचित्य ही नहीं बचता है।

यह मामला अभी भी तकनीकी ही था और उच्च न्यायालय ने इसकी तहकीकात करके अपनी सिफारशें देने के लिए एक विशेष वर्किंग ग्रुप का गठन करवाया (जल संसाधन विभाग-बिहार, प्रस्ताव संख्या 1383 दिनांक 12.5.05, उच्च न्यायालय केस संख्या 5427/2005)। इस समिति के भी तीन सदस्य थे - श्री बृज नन्दन प्रसाद, भूतपूर्व अभियंता प्रमुख (अध्यक्ष), जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार, समस्तीपुर के मुख्य अभियंता-श्री गौरांग लाल बसाक और बाढ़ नियंत्रण अंचल दरभंगा के अधीक्षण अभियंता श्री एच. एन. झा।


चानपुरा में निर्मित बांध की वर्तमान स्थिति (जून 2010)


इस समिति की रिपोर्ट (दिनांक 25.6.2006) में कहा गया है कि (क) जमींदारी बांध जिला प्रशासन के अधीन आता है और यह उसका अधिकार बनता है कि वह लोकहित को ध्यान में रखते हुए इस पर कोई भी काम कर सकता है। निरीक्षण के समय समिति ने पाया कि इस बांध पर मिट्टी डाली गयी है लेकिन इसमें पड़ी दरार को अभी तक पाटा नहीं गया है। इस काम को आने वाली अगली बाढ़ के पहले पूरा कर लेना चाहिये वरना सुरक्षित किये गए क्षेत्र में पानी भर जायेगा। (ख) दरार को तुरन्त पाट देना चाहिये और इस पूरे जमींदारी बांध की मरम्मत बाकी के बाढ़ सुरक्षा बांध के समकक्ष कर देनी चाहिये। यह जमींदारी बांध दूसरी रक्षा पंक्ति के तौर पर काम करेगा। (ग) 130 चेन से 165 चेन के बीच के काम को छोड़ कर चानपुरा रिंग बांध का काम पूरा हो गया है। इस दूरी में बांध का काम पूरा न होने के कारण यह जमींदारी बांध ही सुरक्षा कवच का काम करता है। बांध के इस हिस्से की लम्बाई प्रायः 700 फीट है और यह गाँव की सड़क से जुड़ा हुआ है लेकिन गाँव की सड़क इस बांध के लेवेल से काफी नीची है। समिति ने भविष्य के लिए निम्न काम सुझाये-

(i) A से E को जोड़ते हुए जब यह बांध संस्कृत कॉलेज के पास पहुँचता है तो उसे पश्चिम की ओर इस तरह से घुमाया जाए कि संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के अंदर सुरक्षित क्षेत्र में आ जाए।
(ii) इस नये बांध को अब जमींदारी बांध से स्लुइस गेट के पहले जोड़ दिया जाय। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो एक नया स्लुइस गेट बनाना पड़ जायेगा। 
(iii) संस्कृत कॉलेज के पास में भुड़का नाले के बायें किनारे पर कुछ अतिक्रमण होगा। यहाँ नाले का विस्तार अपने प्रति प्रवाह और अनुप्रवाह दोनों से ज्यादा है अतः इस अतिक्रमण का नाले के प्रवाह पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। 
(iv) संस्कृत कॉलेज से लेकर जमींदारी बांध को जोड़ने वाली दूरी में बांध की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की जाए। 
(v) जमींदारी बांध में पड़ी मौजूदा दरार को पाट दिया जाए और पूरे जमींदारी बांध के सेक्शन को इस तरह सुधारा जाए कि वह द्वितीय रक्षा पंक्ति का काम कर सके।
(vi) बांध के भुड़का नाले की तरफ पड़ने वाले ढलान की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की जाए।

यह रिपोर्ट 2006 में आयी। निषेधाज्ञा लग जाने से 2009 तक जमींदारी तटबंध पर कोई काम नहीं हुआ। इस बीच 2006 में ही बिहार सरकार ने सारे जमींदारी/महाराजी तटबन्धों को कानून बनाकर जल-संसाधन विभाग के हवाले कर दिया। जल-संसाधन विभाग ने टेण्डर निकाल कर 2010 के पूर्वार्द्ध में AB के बीच जमींदारी बांध की मरम्मत करवा दी और 2004 में पड़ी दरार को भी पाट दिया। पूरे रिंग बांध का उच्चीकरण तथा सुदृढ़ीकरण भी कर दिया गया है।

गाँव की सड़क BE पर भी मिट्टी डाली जा रही थी (जून 2010) मगर AEH के जिस बांध के निर्माण की सिफारिश दोनों विशेषज्ञ समितियों (1983 तथा 2006) ने की थी उस पर अभी तक हाथ नहीं लगा है। ABE वाला जमींदारी बांध/सड़क के निर्माण हो जाने की वजह से यह आशंका जरूर होती है कि अब सरकार शायद EAH वाले रूपांकित बांध का निर्माण ही न करवाये। उधर BE वाली जो सड़क है वह, बताते हैं कि, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की है जिस पर जल-संसाधन विभाग मिट्टी डाल कर उसे बाकी बांध की ऊँचाई के बराबर ले आना चाहता था।

इसके लिए ग्रामीण अभियंत्रण विभाग की अनुमति नहीं मिली मगर मिट्टी फिर भी डाली गयी जिसके लिए गतिरोध बना हुआ है। A-B वाला बांध भी जमीन्दारी बांध था जो कि कम ऊँचा और कम चौड़ा था मगर जब इसकी मरम्मत हुई तो वह ऊँचा और आधार पर चौड़ा हो गया जिसमें रैयत की कुछ जमीन भी चली गयी जिसका विक्षोभ उन लोगों में है। अब अगर EAH वाला बांध बनता भी है तो EBA वाली जमीन हर तरफ से बांध से घिर जायेगी। इसके पानी की निकासी का क्या होगा, इस पर अभी तक कोई दृष्टि नहीं बन पायी है। इन सारी समस्याओं का हल अभी खोजा जाना बाकी है। फिलहाल जो निर्मित बांध की रूप रेखा है उसे चित्र में दिखाया गया है। यह पूरा मसला अभी उच्च न्यायालय के विचाराधीन है और जो भी निर्णय होगा वह अब न्यायालय ही करेगा।

नरेन्द्र चौधरी
पूरे मसले को लेकर गाँव में विचारधाराएं आज भी बटी हैं। जहाँ एक ओर पूवारी टोल के नरेन्द्र चौधरी का कहना है, ‘‘...स्वामी जी जैसा महान् आदमी इस चानपुरा में न तो हुआ और न होगा। उनका कार्यक्रम था गाँव को चारों तरफ से घेरने का, चारों तरफ सड़क बनाने का और हेलिपैड बनवाने का। 100 बेड का अस्पताल बनवाना चाहते थे। यह सब यहाँ के लोगों ने होने ही नहीं दिया कि यह मेरी जमीन है, यह उनकी ज़मीन है। अब सड़क अगर बन रही है तो सबका दरवाजा खोद कर ही सरकार बना रही है न? उतने महान आदमी को प्रपंच में घसीटा गया, उनकी बात किसी ने सुनी ही नहीं।

स्वामी जी ने अपना आदमी भेजा था दिल्ली से कि वह यहाँ 100 बेड का अस्पताल बनाना चाहते हैं यह बात गाँव वालों को समझायें। यहाँ के कुछ लोगों ने उनकी जमीन पर कब्जा करवा दिया। स्वामी जी के अपर्णा आश्रम की जमीन पर लोगों की नजरें गड़ी हैं। उनकी जमीन के परचे कटवा कर बटवा दिये गए। स्वामी जी क्या सोचते थे और यहाँ के लोग क्या सोचते हैं? पछुआरी टोल के कुछ लोगों ने मिल कर टंटा खड़ा किया एक आदमी के कहने पर। स्वामी जी को पाली से मकिया वाले महाराजी तटबंध के बारे में किसी ने बताया ही नहीं कि सारी परेशानी उस बांध की वजह से है। यह बांध पाली से लेकर मकिया तक बना है, थोड़ा उसके आगे भी गया है। यह बांध खिरोई और सोइली के पानी को सीधा रोक रहा है।

यही अगर स्वामी जी को कहा गया होता कि इस महाराजी बांध को हटा दीजिये तो सारी समस्या का समाधान हो जाता। यह बांध अगर टूटता है तो दरभंगा में एक मंजिल के मकान 24 घंटे में पानी में चले जाते हैं। हमारे पूर्वज बताते हैं कि पहले इतना पानी नहीं आता था। यह बांध हट गया होता तो चानपुरा रिंग बांध की जरूरत ही नहीं पड़ती। अगर पछुआरी टोल को विरोध करना ही था तो इस बांध का विरोध करते। स्वामी जी तो पूरा क्षेत्र घेरना चाहते थे। विरोध हुआ तो कहा कि चलो पूवारी टोल को घिरवा देते हैं। 7 किलोमीटर घेरे के अंदर कुछ तो उपजता है, कुछ तो समृद्धि है। विरोध करना है तो पाली-मकिया वाले बांध को तुड़वा दीजिये। अब सोइली वाला पुल 50 फुट का है और इतना ही ऐग्रोपट्टी में खिरोई का पुल है-इससे क्या पाली-मकिया वाला पानी निकल पायेगा? यह सब ब्रह्मचारी जी को बदनाम करने के लिए किया गया।’’ 

उधर पछुआरी टोल के बृजेश चौधरी की व्यथा दूसरे किस्म की है। वह कहते हैं, ‘‘...अभी बाढ़ का जो पानी आता है वह अगर थोड़ी मात्रा में आता है तो धीरे-धीरे बह कर निकल जाता है मगर हर दूसरे तीसरे साल बड़ी भयंकर और विनाशकारी बाढ़ आती है। यह पानी ऊपर उठता है और जब उठते-उठते हम लोगों के घर में घुसने लगता है तब सारे लोग किसी ऊँचे स्थान की तलाश कर के वहाँ चले जाते हैं। उस समय हमारी एक ही प्रार्थना ईश्वर से होती है कि पाली-मकिया वाला महाराजी बांध टूट जाए।

ईश्वर अगर सुन लेता है तो यह बांध टूट जाता है और हम लोगों को राहत हो जाती है। वैसे भी अगर बड़ी बाढ़ आ गई तो यह महाराजी बांध एक नहीं कई जगह टूटता है और जहाँ टूटता है वहाँ पानी बड़े-बड़े गड्ढ़े बना कर आगे बढ़ता है। बाढ़ के समय माल-जाल का नुकसान तो होता ही है, हर साल सर्पदंश से दो-चार आदमी मर ही जाते हैं। डॉक्टरी सहायता 20 किलोमीटर दूर बेनीपट्टी से पहले मिलती नहीं है। खाने-पीने का सामान भी बह जाता है। इस गाँव में एक भी सरकारी नाव नहीं है। जो भी बसैठ जायेगा वह जान जोखिम में डाल कर ही जायेगा। हमारे गाँव में दो पंचायतें हैं-करहारा और शाहपुर।

दोनों के मुखिया दस किलोमीटर से ज्यादा दूर रहते हैं। न वो लोग कभी यहाँ आते हैं और न हम उनके यहाँ, कम से कम बरसात के मौसम में, जा पाते हैं। विधायक भी केवल वोट मांगने आते हैं। पछुआरी टोल की 5000 आबादी होगी। आस-पास के धनुखी, नवगाछी, रजवाटोल, हथियरवा, त्रिमुहान, करहारा, सिमरटोल, रानीपुर, विमोचनपुर आदि सभी गाँवों की यही हालत रहती है। यहाँ गेहूँ के अलावा कुछ पैदा नहीं होता। महाराजी बांध न रहे तो रिंग बांध बन जाने और बरसात के मौसम की सारी दिक्कतें उठा लेने के बावजूद तीन फसल हम लोग भी उगा लेंगे।’’ 

उपसंहार- चानपुरा रिंग बांध के निर्माण को लेकर अनेक विवाद हुए और अभी भी उच्च न्यायालय में पूरा मामला लम्बित है। संस्कृत कॉलेज आज भी असुरक्षित है और वही हाल पछुआरी टोल का भी है। रिंग बांध दो बार टूट कर अंदर के टोले को डुबा चुका है और अब बांध ऊँचा और तथाकथित रूप से मजबूत कर दिये जाने के बाद इस तरह की घटनाओं की तीव्रता और बारम्बारता बढ़ेगी।

बसैठ-मधवापुर सड़क, जिसके बारे में कहा गया था कि यह बाढ़ के लेवेल से 2 फुट नीचे है और उसमें बने हुए पुल पूरे प्रवाह को ठीक से बहाने में सक्षम है, उसका पुनर्निमाण हो रहा है और अब वह अपने पुराने लेवेल से 3 से 4 फुट ऊपर बन रही है। इलाके के सारे बांधों को ऊँचा और मजबूत किया जा रहा है और अब इस क्षेत्र की जल-निकासी का क्या होगा यह तो भविष्य ही बतायेगा। इतना जरूर लगता है कि राज्य के जल-संसाधन विभाग की बाढ़ के पानी की शीघ्र निकासी में कोई दिलचस्पी नहीं है।

वह पानी के प्रवाह को यथा-संभव रोक देने में ही रुचि रखता है। उसे सारी संरचनाएं ऊँची और मजबूत चाहिये। वह यह भूल जाता है कि ऐसी संरचनाओं की मजबूती से डटे रहने पर एक तरफ के लोगों को निश्चित रूप से नुकसान पहुँचता है तो उनके टूट जाने पर दूसरी तरफ के लोग दुःख भोगते हैं। इन संरचनाओं की न तो तीसरी कोई गति है और न ही बाढ़ पीडि़त जनता के पास कोई तीसरा विकल्प है।

इतना सब होने के बावजूद रिंग बांध के अंदर और बाहर वालों के बीच वैसा कोई मनमुटाव नहीं है। भोज-भात, काज-करोज में एक दूसरे के यहाँ आना जाना सब चलता है। जो कुछ मतभेद है वह वर्षा के चार महीनें रहता है और अक्टूबर के अंत तक सब सामान्य हो जाता है।

इतना सब होने के बावजूद रिंग बांध के भीतर और बाहर वालों के बीच वैसा कोई मनमुटाव नहीं है। भोज-भात, काज-करोज में एक दूसरे के यहां आना जाना सब चलता है। जो कुछ मतभेद है वह वर्षा के चार महीने रहता है। अक्टूबर के अंत तक सब सामान्य हो जाता है।

श्री दिनेश कुमार मिश्र ने इंजीनियरिंग के अपने श्रेष्ठ ज्ञान को समाज के साथ जोड़ा है। उन्होंने बिहार के उत्तरी भाग में आने वाली बाढ़ों के स्वभाव को जानने और फिर उसे दूसरों तक पहुंचाने का काम किया है ताकि बाढ़ की विभीषिका कम हो सके।

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