विशेष प्रस्तुति : अपन मैथिल ...बिहारी लोक के लेल छठि सभ सं पैघ पावनि अछि. देश-विदेश मे रहय वाला लोक सभ के कोशिश रहय छनि जे कम सं होली-दुर्गापूजा आओर छठि मे गाम अवश्य जाए. अगर नहि त कम सं कम छठि मे त गाम जाए के कोशिश जरूर करए छथिन्ह. शुरू-शुरू मे एहन होएत रहल. छठि मे गाम मे शादी-विआह जकां माहौल रहैत छल. सभ लोक कम सं कम एको-दूओ दिन के लेल गाम जरूर आबए-जाए छलखिन्ह. मुदा आब लोक अपन काम-काज सं एतेक बंधल छथिन्ह जे छठि पूजा तक मे गाम नहि जा पाबय छथिन्ह. 



अहां एकरा लोक मे काम-काज के प्रति असुरक्षा के भावना... मंदी...महंगाई आओर बेरोजगारी के कारण परिवार चलाबए के टेंशन सेहो कहि सकय छी. लोक पूरा परिवार के संग आबए-जाए मे लागए वाला भारी खर्च के ध्यान मे राखि गाम जाए सं बचए सेहो चाहए छथिन्ह. एकटा पैघ कारण आबय जाए मे बड़का परेशानी होनाए सेहो अछि. कोनो गाड़ी.. ट्रेन मे टिकट नहि मिलत. बिहार के कोनो ट्रेन होए होली...गर्मी छुट्टी...दुर्गापूजा... दिवाली आओर छठि मे टिकट मिलला पर लोक अपना के भाग्यशाली समझय छथिन्ह आब त लोक गाम-घर जाए के बदला दिल्ली...मुम्बई...पुणे... बंगलुरु आओर दोसर ठाम जतए रहय छथिन्ह ओतए सभ पावनि त्योहार मनाबए छथिन्ह. 





आब अहां के दिल्ली...मुम्बई मे छठि के दिन कनिओ नहि लागत जे बिहार सं बाहर छी. मेट्रो आ बड़का शहर मे छठि मनाबए के अंदाज आओर नीक भ जाएत अछि. आधुनिकता के पुट मिल जाएत अछि एहि मे. सभ दिन शहर मे रहय वाला बाल-बच्चा साल मे एक दिन के लेल पावनि-त्योहार मनाबए लेल गाम जाए सं हिचकए छथिन्ह. शहर मे बनल- बनाएल घाट मिल गेल... संस्था सभ के तरफ सं तैयार भ गेल...स्वीमिंग पुल मे या फेर पार्क मे अस्थायी पोखर टाइप के बना देल जाएत अछि. झाल-झंकार लगि गेल. सभ किछ चमचम भ जाएत अछि. साफ-सफाई के कोनो झंझट नहि. जखन कि गाम मे नदी कात... पोखर कात घाट बनाबए...नीपए के झंझट. कई बेर घाट के लेल झगड़ा-झंझट. आओर आई-काल्हि मजदूर सभ के पलायन के कारण जन सभ मिलनाएओ मुश्किल. एहन मे लोक दू-चारि दिन लेल घर जा सेहो निश्चिंत नहि रहि पाबए छथिन्ह. आजुक लोक अपन परिवार के संग बाहरे रहय छथिन्ह त हुनकर बाल-बच्चा... नेना- भुटका सभ ओहि ठाम के रंगत मे रंगि चुकल रहय छथिन्ह. आब जेहि ठाम रहय छथिन्ह... ओ चाहए छथिन्ह ओहि ठाम पावनि त्योहार मनाबए के.



एहन मे फंसि जाए छथिन्ह ओ सिंगल नौकरी करय वाला लोक... छात्र सभ... छोट परिवार वाला लोक जिनका ओहिठाम छठि नहि होए छनि. हुनका लेल छठि बस आओर दोसर पावनि के तरह गुजरि जाए छनि. मन भेल त बस कोनो घाट पर जा क पूजा देखि क चलि आबए छथिन्ह.

दोसर के की हम अपन गप करि त हमरो संग सेहे हाल अछि. काल्हि संझका अरक... अर्घ्य के समय दफ्तर मे छलहुं. भोरका मे नहि रहल गेल त पास के एनटीपीसी कॉलोनी मे जाs क छठि देखि क आबि गेलहुं. मुदा सभ सं पैघ सवाल ई कि प्रसाद किनका सं मांगल जाए. ओहिना चलि अएलहुं. ओ त छठि मईया के कृपा सं एकटा जान-पहचान वाला व्यक्ति प्रसाद सांझ मे द गेलाह त ग्रहण कएलहुं. नहि त गाम-घर दिस त कोई पांच-दस दिन बाद मे प्रसाद लsक अएता त ग्रहण करतौं. बाहर रहला के ई त कष्ट छै. आम लोक के लेल सेहो प्रसादक व्यवस्था होबाक चाही.

साभार : अन्य 


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