बेनीपट्टी(मधुबनी)। ये दृश्य देखकर भले ही शिक्षाविद् शर्म से पानी-पानी हो जाये, लेकिन बिहार के मधुबनी जिले के सरकारी विद्यालयों में हो रही परीक्षा की व्यवस्था को देखकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों के आंखो में पानी तो दूर शर्म भी नहीं आ रही है।एक तरफ जहां बिहार सरकार शिक्षा विभाग को दुरुस्त करने के रोज नये-नये फार्मूले का इजाद कर रही है, लेकिन संसाधन के अभाव में छात्राऐं जमीन पर बैठकर तो कहीं साईकिल स्टैंड पर खडे़ होकर परीक्षा देने को विवश है।ये नजारा सिर्फ एक विद्यालय का नहीं बल्कि मधुबनी जिले के कई विद्यालयों से ऐसी खबरें रोजाना आ रही है।अब सवाल है कि शिक्षा विभाग ऐसे संसाधन में बच्चों को गुणवतापूर्ण शिक्षा देने का सपना दिखा रही है।या फिर शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए सिर्फ अधिकारियों के स्तर पर बयानबाजी की जा रही है।बसैठ के सीता मुरलीधर उच्च विद्यालय में नामांकित 1365 बच्चों में अभी साढ़े सात सौ बच्चें परीक्षा दे रहे है।बुद्धवार को ऐसी ही शिकायत पर जब बीएनएन की टीम पहुंची तो विद्यालय प्रशासन के द्वारा बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का खूलेआम उल्लंघन हो रहा था।अधिकांश बच्चें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में बरामदें पर परीक्षा दे रहे थे तो कई छात्राऐं विद्यालय परिसर के आम के पेड़ के नीचे बैठकर एक साथ ही परीक्षा के नाम का उपहास उड़ाते नजर आयें।परीक्षा को कदाचारमुक्त कराने के दावों के बीच बच्चें ऐसे बैठे हुए थे ,मानो बच्चें परीक्षा देने के लिए नहीं, बल्कि किसी पिकनिक स्पॉट पर बैठे हुए है। इस संबंध में जब कुछ बच्चों से पूछा गया तो बच्चों ने बताया कि क्या करे सर, मजबूरी है।परीक्षा नहीं देंगे तो आगे नहीं बैठने दिया जायेगा।भारी समस्याओं के बीच संसाधन से कोसों दूर रहकर बच्चों की परीक्षा देने की ललक से विभाग की स्थिति को पुरी तरह समझा जा सकता है।वहीं शिक्षक उमाशंकर चौधरी ने बताया कि क्या करें, 1365 बच्चों के लिए सिर्फ दो कमरे है।ऐसे में किस बच्चें को कमरे में परीक्षा लें।उन्होंने साफ तौर पर इसके लिए विभाग को दोषी बताते हुए कहा कि जब विभाग कमरा निर्माण के लिए आवंटन ही नहीं देगा तो विद्यालय के कमरो का निर्माण कहां से होगा।ऐसी दयनीय स्थिति में बच्चें क्या पढ़ते होंगे ये समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं होगा।


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