बेनीपट्टी(मधुबनी)।कन्हैया मिश्रा : लोक आस्था का महान पर्व छठ नहाय-खाय के साथ ही प्रारंभ हो गया है।आइयें महापर्व के संबध में जानकारी ले।छठ महापर्व सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है।सूर्य से हमें सिर्फ उर्जा ही नहीं बल्कि सूर्य पूरे विश्व को रौशन करता है।यह पर्व हमें कई संदेश एक साथ दे जाता है।प्रथम ,पवित्रता-शुद्धता का ,दूसरी साफ-सफाई।इस पर्व में साफ-सफाई का खास महत्व माना गया है।इस पर्व में जितनी साफ-सफाई का ख्याल रखा जाता है,उतना किसी भी पर्व में नहीं।अनाज की सफाई करने के बाद नये चूल्हें बनाकर प्रसाद बनाया जाता है।पर्व के उद्ेश्य की बात करें तो सबसे अहम है कि अपने अगल-बगल में साफ-सफाई रखने पर ध्यान दें।इसी प्रकार शुद्धता को भी महत्व दिया जाता है।ऐसी मान्यता हैै कि सूर्य के आगे खडे होकर उनसे जो भी वरदान मांगा जाता है,वो अवश्य ही पुरा होता है।चार दिवसीय यह व्रत काफी कठोर माना जाता है।व्रतधारी लगातार 36 घंटे तक का व्रत करते है।इस दौरान व्रती पानी भी ग्रहण नहीं करते है।पर्व का अघ्र्य डूबते सूर्य को कमर भर तालाब में रहकर दिया जाता है।आयुर्वेद में कटि स्नान को काफी लाभदायक बताया गया है।पर्व पालन से सूर्य की पराबैगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।सूर्य की उपासना प्राचीन काल से ही प्रचलित है।परंपरा के पोषण और महान आस्था ने किसी युग में बिहार में छठ को प्रचलित किया होगा,लेकिन मौलिक ठेठ पहचान आज भारत के कई प्रांतो में फैल गया है।बिहार में प्रचलित पद्धति के अुनसार इसमें पुरोहित का कार्य घर का कोई भी नहाया-धुला हुआ व्यक्ति संपन्न करा सकता है।व्रती स्नान के बाद भीगे कपडों में जल में खडे होकर प्रथम अघ्र्य सांयकालीन और दूसरा अघ्र्य प्रातःकालीन में सूर्य को अर्पित करते है।पुरोहित की भूमिका अघ्र्य के दौरान सूप पर पांच-पांच बार क्रमशः दूध और जल गिराने की होती है।अघ्र्य के बाद व्रती घाट पर ही संक्षिप्त हवन करते है।जानकारी दें कि छठ महापर्व मनाने को लेकर हर ग्रंथ व कई प्रचलित कथा है।कई कथाओं के अनुसार मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था।उनकी रोग से मुक्ति के लिए पंडितो ने सूर्योपासना की,वहीं बाद में छठ के रुप में प्रचलित हो गया।वहीं द्वापर में अंगराज कर्ण की भगवान भाष्कर की पूजा से जोडकर देखा जाता रहा है।तो वहीं ऋग्वेद से लेकर ब्रह्मवैवर्त पुराण,मार्कण्डेय पुराण और उपनिषदो तक सूर्यपूजा के अनेक प्रसंग और कथा है।सामाजिक दृष्टिकोण तो यहीं है कि षष्ठी व्रत के रुप में मनुष्य उन देवता सूर्य के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करता है,जो सृष्टि के संचालन में प्रत्यक्षतः अपनी भूमिका निभाता है।