बेनीपट्टी। कन्हैया मिश्रा : थुम्हानी नदी के किनारे बसे छिन्नमस्तिका वनदुर्गा के दरबार में मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम ने भी अपनी हाजिरी लगाई थी। किवदंती है कि भगवान श्रीराम व लक्ष्मण जनकपुर जाने के क्रम में उच्चैठ के देवी दुर्गा की पूजा की थी। उसके बाद ही श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुर निकले थे। बेनीपट्टी अनुमंडल से पांच किमी पश्चिमी-उत्तरी कोण पर अवस्थित उच्चैठ भगवती मंदिर में यूं तो हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, परंतु शारदीय नवरात्रा में रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर भगवती का दर्शन कर मनोवांछित कामना पूर्ण करने की मन्नतें मांगते है। कहा जाता है कि कलुआ (महान कवि कालिदास) भी देवी से आशिर्वाद पाकर महानतम की श्रेणी में आ पायें थे। किवदंती है कि थुम्हानी नदी के किनारे एक ऋषि की गुरुकुल संचालित था। जिसमें आसपास के बच्चों को शिक्षा देने का काम किया जा रहा था।नदी के दूसरे किनारे पर स्थित देवी की मूर्ति को रोजाना गुरुकुल के बच्चें जाकर सुबह-शाम आरती किया जाया करता था। एक दिन घनघोर बारिश हुई। नदी लबालब की स्थिति में आ गयी। तदुपरांत गुरु के आदेश से कलुआ नदी को तैरकर दूसरे भाग में अवस्थित मंदिर में जाकर आरती करने लगा। मूर्ख कलुआ गुरु को विश्वास दिलाने के लिए छिन्नमस्कि देवी के मूंह पर आरती के लौ से हुई कालिख पोतने लगा, सहसा भगवती साक्षात प्रकट होकर कलुआ के सरल स्वभाव से खुश होकर भगवती ने आशिर्वाद मांगने को कहा, तो कलुआ ने विद्वान होने की वरदान मांगी। भगवती के आशिर्वाद से कलुआ पूरी रात गुरुकुल में रखी तमाम शास्त्रों एवं पुस्तकों को पन्ना पलट दिया।देवी की शक्ति से मूर्ख कलुआ देखते ही देखते शास्त्रार्थो में निपुण हो गया। जो कालातंर में महान कवि की श्रेणी में आ गया। बता दें कि बेनीपट्टी के उच्चैठ भगवती स्थल पर नवरात्रा में तंत्र साधकों के लिए भी बहुत ही मनमाफिक स्थल के तौर पर जाना जाता है। तंत्र साधक उच्चैठ पहुंच कर अनुष्ठान कर तंत्र साधना पूर्ण करते है।इसी मंदिर के समीप कॉलेज के दक्षिण भाग आज भी कालिदास डीह अवस्थित है। जहां के मिट्टी को आज भी क्षेत्र के लोग पुज्य मानते है। हर पवित्र कार्य में इस मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। खासकर बच्चों के ललाट पर लगाने का अजीब रिवाज है। मान्यता है कि मस्तक पर मिट्टी लगाने से बच्चा कालिदास की भांति तेज होगा।