मिथिला विशेष : मिथिलाक वातावरण संगीतमय भऽ उठल अछि। नव विवाहितका महापर्व मधुश्रावणी जे शुरू भऽ गेल अछि। मधुश्रावणी जकरा मिथिलाक गामघरमे मोसरामनी सेहो कहल जाइछ अपन नामक अनुकूल मधु-रससँ सराबोर अछि। अन्तिम दिन पतिक संग मोसरमनी पुजबाक बाद हुनका हाथे तेसर बेर सिन्दूरदानक विधि नव विवाहिता लोकनिकेँ एक बेर फेर पुलकित कऽ देतनि। आ एहन पाबनि संगीत विहीन कोना होयत जखन मिथिलाक कोनो पाबनि-तिहार आ कि संस्कार बिना गीतक नञि होइत अछि। से गितगाइन सभ नव विवाहिताक आङनमे जूटि वातावरणमे अपन मनोहारी सामूहिक स्वर घोरब शुरू कऽ देलनि अछि। पबनैतिनक आङनमे भोर होइते हबगब आरम्भ भऽ गेल अछि आ पूजा आरम्भ होइते सभ विधिक गीत बेराबेरी भऽ रहल अछि। ‘विनती सुनियौ हे महरानी, हम सभ शरणमे ठाढ़, अक्षत चानन अहाँकेँ चढ़ायब, आरती उतारब ना’ सँ गोसाउनिकेँ गोहरायल जाइत अछि, तँ ‘साओन मास नागपञ्चमी भेल, बिसहरि गहवर सोहाओन भेल’ गीतसँ बसहरिक अभ्यर्थना भऽ रहल अछि। ओतहि ‘पहिरि ओढ़िय कनिञा सुहबे पाबनि पूजऽ बैसली हे, हे शुभ पावनि दिनमे’ केर माध्यमे पर्वक उछाह प्रकट होइत अछि। पूजन होइत-होइत दुपहर भऽ जाइत अछि आ तकर बाद सोलहो शृंगार केने नव विवाहिताक टोली केर समवेत स्वर वातावरणमे अनुगुञ्जित भऽ उठैत अछि ‘लालहि बन फूल लोढ़ब फुल तोड़ब, हे सिन्दुर भरल सोहाग, बालमु संग गौरी पूजब।’ गहना-गुड़ियासँ लदल नव विवाहिताक लोकनिक पदचापसँ उठैत रुन-झुन स्वर वातावरणकेँ अलौकिक बना रहल अछि। ई सभ फूल लोढ़बा लेल बहरेली अछि। फूल लोढ़बा लेल, तोड़बा लेल नञि। माने साँझ धरि जे फूल मौलायब आरम्भ भऽ गेल अछि, झरि जेबा योग्य भऽ रहल अछि, तुइबा लेल प्रस्तुत अछि तकर सञ्चय करबा लेल। अधिकांश फूल भोरमे फुलाइत अछि से साँझ धरि लोढ़बे योग्य रहि जाइत अछि। ओकरा सभकेँ चुनि कऽ अपन डाला भरैत नव विवाहिताक सासुरसँ आयल भार-दोरक बात, पतिक चर्चा, परिहास आ हँसीक बोर दैत नव विवाहितामेसँ क्यौ फेर उठा दै छथि बटगमनी आ मिथिलाक संस्कृति ओहिमे बिहुँसऽ लगैत अछि। आनन्द मग्न नव विवाहिताकेँ अन्तिम दिन टेमी दगबाक परम्पराक रोमाञ्चो छनि। पानक पातसँ पति आँखि मुनता आ टेमी दगबाक विधि होयत। चर्चामे ई विधि सेहो अछि आ लुकझुक होइत-होइत सभ अपन डाला फूल-पातसँ भरि घुरै छथि तँ साँझक गीत आरम्भ भऽ जाइत अछि ‘कोन घर साँझ सँझाय गेल कोने घर दीप जरु रे, बाबू कोने सिर कल्याण भेल लक्ष्मी दहिन भेल रे...।’

कहबाक तात्पर्य जे सगरो उछाहे उछाह अछि, मुदा  एहिमहापर्वमे एतबे धरि नञि अछि। ई अपना भीतरमे अनेक महत्वपूर्ण आ महत्वपूर्ण तथ्य समेटने अछि। एकर महत्ताकेँ एहीसँ बूझल जा सकैत अछि जे ई साहित्योमे अपन स्थान बनेलक। डॉ. शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यास ‘मधुश्रावणी’ मैथिली साहित्यमे आइयो अपन विशिष्ट स्थान रखैत अछि। ओना एहि पोथी सन दुखान्त मधुश्रावणी पाबनि नञि अछि। ई अपना अन्तसमे मधुरताक संग बहुत रास चिन्तन सहेजि रखने अछि। आने पाबनि जकाँ एकर सामाजिक सरोकार तँ अछिए ई नव विवाहिताकेँ गाहर्स्थ्य जीवनक योग्य बनेबाक काज सेहो करैत अछि। से व्यावहारिक आ मनोवैज्ञानिक दुहू स्तरपर।

मिथिलाक नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी आस्था आ श्रद्धासँ गहीँर धरि जुड़ल अछि। नव विवेहते नञि अपितु मिथिलाक कतेको विवाहिता आजीवन एहि पाबनिकेँ मनबै छथि। हँ, ओ नव विवाहिता एकरा साओन कृष्ण पक्षक पञ्चमीसँ साओन शुक्ल पक्ष तृतीया धरि मनबै छथि जिनका वैवाहिक जीवनमे पहिल बेर ई पाबनि अबै छनि आ आन-आन विवाहिता अन्तिम दिन उपास रखै छथि कि एकसञ्झा करै छथि आ अनोन खाइ छथि। नव विवाहिताकेँ मोसरामनी पुजेबामे ओ नित्य बढ़ि-चढ़ि कऽ भाग लै छथि। हुनक उछाह देखिते बनैत अछि। ई तँ अछि श्रद्धा-विश्वासक हाल। एकर दोसर पक्ष सेहो अछि। नव विवाहिता गृहस्थ जीवनमे प्रवेश करै छथि तँ हुनका गृहस्थीक गाड़ी गुड़केबा लेल आवश्यक जनतब सेहो चाही। मधुश्रावणी एहिमे मेहक काज करैत अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिनकेँ सभ दिन फराक-फराक निर्धारित कथा सुनाओल जाइ छनि जे गाहर्स्थ्य जीवनसँ कोनो ने कोनो रूपमे जुड़ल रहैत अछि। मिथिलामे सभसँ नीक शिव-पार्वतीकेँ नीक दम्पती गेलनि अछि। हुनकासँ जुड़ल अनेक कथा पबनैतिनकेँ सुनाओल  जाइ छनि। एकर अतिरिक्त ओ मंगला गौरी, पृथ्वीक जन्म, समदु्र मन्थन, सती, पतिव्रता, गंगा, गौरीक जन्म, काम दहन, गौरीक तपस्या, गौरीक बियाह, मैनाक मोह भंग, कार्त्तिकेय,गणेश, लीलीक जन्म, विदाइक भार, गौरिक भागिन पुरिबा-पछबा , पतिव्रता सुकन्या, गौरीक ननदि आदिक कथा सुनै छथि। एहि कथा सभमे जतऽ शास्त्रीयताक पुट रहैत अछि ओतहि दाम्पत्य जीवनमे केहन आचार-विचार हेबाक चाही, एकर की लाभ होइत अछि आ विमरीत गति अपनेने की हानि होइत अछि , विवाहक बाद नव सम्बन्ध ननदि, भागिन आदिसँ सेहो हुनका परिचित कराओल जाइ छनि। ई कथा सभ नव-नव सम्बन्धक बीच समन्वय बनेबाक आ गृहस्थीकेँ सुचारु रूपसँ चलेबाक मानसिकता तैयार करैत अछि।

मधुश्रावणी ओना तँ आने पाबनि जकाँ नजरि अबैत अछि, मुदा एकर महत्व एहि दृष्टिञे बढ़ि जाइछ जे ई ओहि नव विवाहिता लेल अछि जे अपन ओहि घर-परिवारकेँ छोड़ि अपन सासुर जेती जाहि ठाम ओ बालपनसँ लऽ युवावस्था धरि बितेलनि।

जाहि गामक माटि-पानिमे ओ खेलेली। माता-पिता, भाय-बहिन, काका-काकी, सखी-बहिनपा, अपना गामक चिन्हार खेत- खरिहान, गाछी-बिरछी, पोखरि-झाँखरि सभकेँ त्यागि ओ ओहि गाम जेती जाहि ठाम हुनक परिचित पति मात्र हेथिन। बड़सँ बड़ ओ देओरकेँ चिन्हैत हेती। अपरिचित सासु-ससुर, ननदि- नन्दोसि, देयादनी, भैंसुर, देयोर आदिक बीच हुनका अपन गृहस्थी बसेबाक छनि। मधुश्रावणी नव विवाहिताकेँ सासुरवास लेल मनोवैज्ञानिक रूपसँ तैयार सेहो करैत अछि। एहिमे नव विवाहिता लेल विधान कयल गेल अछि जे अछि जे ओ भरि पाबनि सासुरेसँ आयल अन्न, फल, दूध, पूजन सामग्री, वस्त्र आदिक उपयोग करती। परिणाम ई होइत अछि जे नव विवाहिता अपन नैहरमे रहितो ओहि ठामक किछु उपयोग नञि करै छथि।

काल्हि धरि जाहि नैहरक सभ किछु उपयोग करैत रहली ताहिसँ लगातार 14 दिन कटल रहब सेहो नैहरमे रहिते हुनकापर मनोवैज्ञानिक असरि जरूर बनबैत हेतनि। एहिसँ मानसिकता अवश्य बनैत होयत जे आब ओ हुनक अपन घर नैहर नञि छनि। नैहरक बदला सासुरकेँ अपन घर मानबा दिस प्रेरित करबाक ई पाबनि पहिल सीढ़ी बनैत अछि। तहिना सासुरक आर्थिक स्थितिसँ अवगत भऽ तदनुकूल अपनाकेँ तैयार करबाक अवसर सेहो ई नव विवाहिताकेँ दैत अछि। पाबनि लेल कनिञाकेँ पठाओल जायवला मधुश्रावणीक भारक ओरियान प्राय: वास्तविक आर्थिक स्थितिसँ थोड़े बढ़िएक कऽ कयल जाइत अछि। एहि पाबनिमे कनिञाक संग हुनक माय आ नैहरक आन स्त्रीगण परिजन लेल वस्त्र सेहो पठाओल जाइत अछि।

एहिसँ अनुमान कयल जा सकैछ जे कनिञाक सासुरक केहन भोजन आ पहिरन-ओढ़न छनि। नव विवाहिताकेँ ई अवसर दैत अछि जे आयल भारसँ कम कऽ अपना सासुरक आर्थिक स्थितिकेँ आँकथि आ ओहिमे अपन सामञ्जस्य लेल तैयार होथि। ओना तँ सभ पाबनि प्रकृतिएपर आधारित होइत अछि। जखन- जखन प्राकृतिक परिवर्त्तन होइत अछि कोनो ने कोनो पाबनि अवश्य मनाओल जाइत अछि, मुदा नव विवाहिताक महापर्व मधुश्रावणी एहन पाबनि अछि जे पबनैतिनकेँ सोझे प्रकृतिसँ जोड़ैत अछि। ओकरा प्रकृतिक लग अनैत अछि आ ई सन्देश दैत अछि जे पर्यावरणक लेल सभ गाछ-बिरिछ अनिवार्य आ उपयोगी अछि। एहि पाबनिमे पबनैतिन रोज साँझमे फूल लोढ़ै छथि। फूलक संग ओ विभिन्न गाछक पात सेहो जमा करै छथि।

ताहिमे बेली, चमेली, ओड़हुल, गुलाब, कनैल, अपराजिता आदिक फूल आ जाही, जूही, बाँस, मेहदी, लताम, औरा, अनार, अकौन आदिक पात होइत अछि। एहि सभसँ डाला भरि पबनैतिन नित्य साँझमे घर घुरै छथि आ एही फूल-पातसँ अगिला दिन भोरमे पूजन होइत अछि। एहि पाबनिमे बासिए फूल-पातसँ पूजाक विधान अछि। फूल लोढ़बा काल तँ नव विवाहिताक बीच गाछ- पातक नाम आ ओकर उपयोगिताक चर्च होइते अछि, कोन फूल-पात पूजाक उपयोगमे आयत आ नञि ताहिपर एक- दोसरसँ तँ विमर्श होइते अछि, बूढ़-पुरान सेहो एहि सम्बन्धमे नवका पीढ़ीकेँ जानकारी दैत रहला अछि।ई क्रम पहिल दिन मौना पञ्चमीसँ लऽ अन्तिम दिन धरि चलैत अछि। पातो तोड़बाक विधान ताहि समयमे राखल गेल अछि जखन बरखा होइत रहैत अछि। पाबनि साओन मासमे होइत अछि आ एहि समयमे गाछसँ पात हटेने ओकर क्षति नञि होइत अछि।

पर्यावरणमे साँप सन विषधर केर सेहो महत्वपूर्ण स्थान अछि। आधुनिक विज्ञानो एकरा स्वीकार करैत अछि। से कतेको अनुसन्धानक बाद, मुदा मिथिला अदौसँ एकरा जनने अछि। मात्र जनबे ने केलक, अपितु साँप सन जीव पर्यन्तक रक्षा लेल एकर विधान मधुश्रावणीक संग केलक। नव विवाहिता तिथिक हिसाबे लगातार 14 दिन धरि बिसहरि केर पूजन करै छथि। नाग-नागिनसँ सम्बन्धित अनेक कथा सुनै छथि जे आगामी जीवनक पाथेय बनैत अछि। अक्षय अहिबातक कामना संग होबऽ वला एहि पाबनिकेँ महिलेसँ ताहूमे नव विवाहितासँ जोड़बाक पाछाँ कारण सेहो अछि। ई विधान प्राय: एहि दुआरे कयल गेल जे ओहि नव विवाहिताक जीवनमे पहिल बेर ई पाबनि अबैत अछि भावी माता होइ छथि। जँ माय पर्यावरणक संरक्षा-सुरक्षा केर संग सर्प सन जीवक प्रति संवेदनशील हेती तँ ओ अपना सन्तानमे सेहो एकर संवेदना भरि सकती। यैह कारणो अछि जे मिथिला क्षेत्रक महिला तँ धार्मिक-आध्यात्मिक होइते छथि, हुनकासँ कनेको कम पुरुष नञि होइ छथि। तेँ अन्धानुकरणक अन्हर-बौखीक बादो एखनो मिथिलाक अधिकांश लोक अपन सांस्कृतिक परम्पराक प्रति ममत्व रखै छथि। ओना धीरे-धीरे एहूमे घून लागब शुरू अछि।

सगरो दुनिञामे महिला सशक्तिकरणक अनघोल अछि। सभ तरि एके रंग बात जे महिलाकेँ कतिया कऽ राखि देल गेल। हुनका विकास नञि करऽ देल गेल। अपनो ओहि ठाम यैह हाल, मुदा मिथिलाक स्थिति अतीतमे देश-दुनिञाक आन क्षेत्रसँ सर्वथा भिन्न रहल अछि। ई सत्य जे पुरुष समाज जकाँ अपनो ओहि ठाम महिला लोकनिक समाजक सभ क्षेत्रमे सक्रिय नञि रहली, मुदा विद्याक क्षेत्रमे एहन नञि रहल। ज्ञानार्जनक अधिकार प्राचीन कालेसँ मैथिलानीकेँ रहलनि। तेँ ने मिथिला पुत्री गार्गी एतहि भेल छली जे राजा जनक ओहि ठाम ब्रह्मज्ञानी लोकनिक सभामे सम्मिलित होइत छली। शास्त्रार्थ करै छली। से की बिना पढ़ने-लिखने? तहिना सुलभा, सुनयना, मैत्रेयी, भारती, लखिमा आदि रहली। तहिना महिलाकेँ पौरोहित्यक अधिकार सेहो छलनि। आइयो छनि। मधुश्रावणी पाबनिमे आइयो महिलाकेँ पौरोहित्य करबैत देखल जा सकैत अछि। महिला पुरहित होइ छथि टोल-समाजक कोनो बूढ़-पुरान दादी, काकी, पीसी आदि जे प्रतिदिन नव विवाहिता

पबनैतिनकेँ मोसरामनी पुजबै छथि आ सभ दिन लेल निर्धारित फराक-फराक कथा कहै छथि। अन्तिम दिन हुनका दक्षिणामे नव नूआ आदि सेहो भेटै छनि। आर तँ आर गाम-घरमे हुनका ‘पण्डीजी’ कहि सम्बोधित सेहो कयल जाइ छनि। कतेको गाममे आइयो मोसरामनी पुजनिहारि नव विवाहिता सभक बीच फूल लोढ़बा काल ई संवाद सुनल जा सकैत अछि ‘गे बहिना तोहर पण्डीजी के छथुन, हमर तँ अपने बड़की मैञा छथि?’ उत्तरमे कोनो काकी, कोनो दीदी, कोनो गामवालीक नाम कहल जाइत अछि। ई व्यवस्था लौकिक अछि। माने शास्त्रीय आ लौकिक दुहू दृष्टिञे मिथिला अपन मातृ शक्तिकेँ यथोचित सम्मान दैत रहल अछि। ई परम्परा नव विवाहिताक महापर्व मोसरामनीमे एखनो विद्यमान अछि। नव विवाहिताक पाबनि मधुश्रावणी मिथिलाक मातृभाषा मैथिलीक प्रति सेहो संवेदनशील बनबैत अछि। एहि पाबनिमे सभटा कथा मैथिलीमे होइत अछि। फूल लोढ़बा काल, पूजा काल बिसहरि, गोसाउनि, मधुश्रावणी आदिक गीत तँ मैथिली मे होइते अछि एहिमे जे पाँच गोट विशेष लौकिक मंत्रक विधान कयल गेल अछि जकरा बीनी कहल गेल अछि। व्रती पूरा आस्थासँ प्रतिदिन ई सुनै छथि- ‘जहियासँ भेल नाग मनारे।

बिसहरि खसली शम्भु-भड़ारे...’, ‘गोसाउनि दान बड़ि, सोहागबड़ि, आधा साओन....’, ‘गोसाउनि दाइकेँ एक ढक छियनि, पुरिबा-पछबा बसात छियनि..’, ‘बीनी बूनल झारि कोन, बीनी उठल पहिल कोन...’ आ ‘दीप दिपहरा जाथु धरा, मोती मानिक भरथु घरा...।’ कतेक ठाम गौरी, बिसहरि, बैरसी, चनाइ नाग, कुसुमावती, पिंगला, लीली नाग, शतभागिनि, गोसाउनि, नाग, साठि आदिक पूजा पूर्णत: मैथिलीमे होइत अछि तँ कतेको ठाम पूजन संस्कृतमे आ लौकिक विधान बीनी आदि मैथिली आदिमे होइछ। माने शास्त्रीयता आ लौकिकताक समन्वय रहैछ।

साभार : अन्य 


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