मिथिला विशेष : "मिथिलांचल" सुनैत इ अभाष होईत अछि जे हम कूनो प्रकृति के एहन नगरी मे आबी चुकल छी, जाही ठाम स्वयं राम जानकी बसैत छैथ। फूसक घर, चार पर कदीमा, कुम्हार, तिलकोर के लत्ती, घर के बगल मे पुआर क टाल, दलान पर दू चारी टा बरद एकटा गाय या महिष, कांच सड़क, साँझ मे लालटेन या डिबिया के इजोत, एहा छल मिथिला। ठंडा क मौसम, दलान पर बरकत घूर, अगल बगल मे बैसल बाबा काका, तरह तरह क बात चित, ककरो बिबाह, ककरो उपनयन, ककरो मुंडन के चर्चा, कुन खेत मे की रोपब, कते ठाम चोरी भेलय या, कटे ठाम ठाम डाका, एह छल मिथिला।
आम गाछी मे बांस के मचान, ओही पर फूसक झोपरी, निचा मे राखल आम क झोरा, पईन पीबी लेल घयला, बम्बई आ किशनभोग आम के स्वाद, अपना गाछ छोइर अनकर गाछ के आम क मजा, भरल आम के झोरा, ओही पर परिवारक बैसार। पिबई लेल भोज भात ले नहाई लेल इनार के पईन, इनार पर हरदम दस -बीस पुरष बच्चा के नहैत मनमोहक दृश्य, अपना स जेठ के आगू घूँघट, बैसा लेल पिरही, खाई ले ल फूलहि थारी, पिबई लेल लोटा, गाम क बाहर पोखैर दीस जेनाई। ककरो अनकर कष्ट स दुखी, अनका लेल मन बेचैन, नोट हकार परनाय, भार के सन्देश, डोली के बिदाई, बड़का स बड़का बीमारी के गाँव म इलाज। बाबु -माँ, काका -काकी, दाई-बाबा, दीदी-पिसा, मामा-मामी और अनके अनमोल स्वादिस्ट वचन, इहा छल मिथिला... सब किछु बदैल गेल। फूस क जगह इटा, कदीमा कुम्हार तिलकोर क लत्ती क जगह -गमला, घर क बगल म बिदेशी ग्राउंड, साँझ मे लालटेन, डिबिया क जगह फोक्फोकिया इजोत इहा छी मिथिला। ठंडा के मौषम, लोक अपना घर मे रजाई क निचा दबल, बगल मे बैसल खामोशी, टेंशन के तन्हाई, घूर ठंडा भ गेल अछि, अगल बगल बैसल-बेरूखी, इहा अछि मिथिला।
नै अछि आब आम गाछी मे बांस के मचान, ओही पर फूस के झोपरी, निचा मे रखल आम क झोरा, पैन पिबई लेल घैला, बॉम्बे और किशनभोग आम क स्वाद, आम क गाछी बिका चुकल अछि ओही मौसम क लेल, इहा अछि मिथिला। नहीं रहल आब इनार, सब अपना अंगना मे हैण्ड पाइप जे धंसा नेने छैथ, इनार कूर -करकट स भैर चुकल अछि, नहीं रहल पर्दा, अपना स जेठ क आगू घूँघट, कियक त बहूत कामे आब सारी पहिरे छैथ, हुनका तन पर आब मेक्सी और सूट सोभई छैन, बैस लेल पिरही क जगह ल ललक डाईनिंग टेबल, पोखर दिस बाहर जनै क कुन काज जखन घरे मे सेफ्टी पैखाना भ गेल अच्छी इहा अछि मिथिला। ककरो अनकर कष्ट स सुखी, अनका स नै कूनू मतलब, नौत हाकर बिसैर गैलथ, रुपैया के सन्देश, कार के बिदाई, छोट स छोट बीमारी क आल इंडिया मेडिकल म इलाज, इहा अछि मिथिला। बाबु-माँ क जगह ल ललक मोम और डैड, काका -काकी क जगह ल ललक अंकल और आंटी, दाई -बाबा क जगह ल लेलक ग्रैंड फादर और ग्रैंड मदर और अनेको रिश्ता बुझलो नै अछि हमरा एतेक नाम, बदैल गेल स्वाद इहा अछि मिथिला।
साभार : अन्य
मिथिला विशेष : "मिथिलांचल" सुनैत इ अभाष होईत अछि जे हम कूनो प्रकृति के एहन नगरी मे आबी चुकल छी, जाही ठाम स्वयं राम जानकी बसैत छैथ। फूसक घर, चार पर कदीमा, कुम्हार, तिलकोर के लत्ती, घर के बगल मे पुआर क टाल, दलान पर दू चारी टा बरद एकटा गाय या महिष, कांच सड़क, साँझ मे लालटेन या डिबिया के इजोत, एहा छल मिथिला। ठंडा क मौसम, दलान पर बरकत घूर, अगल बगल मे बैसल बाबा काका, तरह तरह क बात चित, ककरो बिबाह, ककरो उपनयन, ककरो मुंडन के चर्चा, कुन खेत मे की रोपब, कते ठाम चोरी भेलय या, कटे ठाम ठाम डाका, एह छल मिथिला।
आम गाछी मे बांस के मचान, ओही पर फूसक झोपरी, निचा मे राखल आम क झोरा, पईन पीबी लेल घयला, बम्बई आ किशनभोग आम के स्वाद, अपना गाछ छोइर अनकर गाछ के आम क मजा, भरल आम के झोरा, ओही पर परिवारक बैसार। पिबई लेल भोज भात ले नहाई लेल इनार के पईन, इनार पर हरदम दस -बीस पुरष बच्चा के नहैत मनमोहक दृश्य, अपना स जेठ के आगू घूँघट, बैसा लेल पिरही, खाई ले ल फूलहि थारी, पिबई लेल लोटा, गाम क बाहर पोखैर दीस जेनाई। ककरो अनकर कष्ट स दुखी, अनका लेल मन बेचैन, नोट हकार परनाय, भार के सन्देश, डोली के बिदाई, बड़का स बड़का बीमारी के गाँव म इलाज। बाबु -माँ, काका -काकी, दाई-बाबा, दीदी-पिसा, मामा-मामी और अनके अनमोल स्वादिस्ट वचन, इहा छल मिथिला... सब किछु बदैल गेल। फूस क जगह इटा, कदीमा कुम्हार तिलकोर क लत्ती क जगह -गमला, घर क बगल म बिदेशी ग्राउंड, साँझ मे लालटेन, डिबिया क जगह फोक्फोकिया इजोत इहा छी मिथिला। ठंडा के मौषम, लोक अपना घर मे रजाई क निचा दबल, बगल मे बैसल खामोशी, टेंशन के तन्हाई, घूर ठंडा भ गेल अछि, अगल बगल बैसल-बेरूखी, इहा अछि मिथिला।
नै अछि आब आम गाछी मे बांस के मचान, ओही पर फूस के झोपरी, निचा मे रखल आम क झोरा, पैन पिबई लेल घैला, बॉम्बे और किशनभोग आम क स्वाद, आम क गाछी बिका चुकल अछि ओही मौसम क लेल, इहा अछि मिथिला। नहीं रहल आब इनार, सब अपना अंगना मे हैण्ड पाइप जे धंसा नेने छैथ, इनार कूर -करकट स भैर चुकल अछि, नहीं रहल पर्दा, अपना स जेठ क आगू घूँघट, कियक त बहूत कामे आब सारी पहिरे छैथ, हुनका तन पर आब मेक्सी और सूट सोभई छैन, बैस लेल पिरही क जगह ल ललक डाईनिंग टेबल, पोखर दिस बाहर जनै क कुन काज जखन घरे मे सेफ्टी पैखाना भ गेल अच्छी इहा अछि मिथिला। ककरो अनकर कष्ट स सुखी, अनका स नै कूनू मतलब, नौत हाकर बिसैर गैलथ, रुपैया के सन्देश, कार के बिदाई, छोट स छोट बीमारी क आल इंडिया मेडिकल म इलाज, इहा अछि मिथिला। बाबु-माँ क जगह ल ललक मोम और डैड, काका -काकी क जगह ल ललक अंकल और आंटी, दाई -बाबा क जगह ल लेलक ग्रैंड फादर और ग्रैंड मदर और अनेको रिश्ता बुझलो नै अछि हमरा एतेक नाम, बदैल गेल स्वाद इहा अछि मिथिला।