स्वर्गीय भोगेन्द्र झा मैथिली संस्कृति, माटि आ मैथिली भाषाक संरक्षकक रूप मे अथाह छथि, शाश्वत छथि, अनंत छथि। भाई विजय चन्द्र झा हमरा कहलनि जे अपन अनुभवक आधार पर भोगेन्द्र जी पर किछु लिखू। भेल कोना लिखू? फेर भेल, हठात मना कोना क’ देबनि! निर्णय लेलौं जे लिखब। लिखब त’ कोना लिखब? हमर शिक्षा मानव विज्ञान मे भेल अछि। मानवशास्त्र मे केस स्टडीक विधान छैक। एहि विधान मे ई ट्रैनिंग देल जाइत छैक जे कुनो व्यक्ति पर अहाँ हुनका संगे रहि क’ अपन व्यक्तिगत अनुभव पर हुनक व्यक्तित्वक व्याख्या करू। व्यष्टि सँ समष्टि। परमाणु सँ अणुक यात्रा। एक सँ अनेककेँ बुझब। हम अही धर्मक पालन करैत स्वर्गीय भोगेन्द्र झा पर किछु चर्च करबाक प्रयास करैत छी। भोगेन्द्र झा आ यात्री/नागार्जुनक जीवनक यथार्थ सँ कम्युनिस्ट छलनि। ओ अवसरवादिता, गुटबाजी, गठबन्धनक नाम पर सिद्धांतकेँ ताक पर राखबक परिपाटी सँ दूर छला। नागार्जुनक कविताक 2 पंक्ति:

“रोजी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा!कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!!”

जेना दुनू पर लागू होइत छलनि। मुदा दुनू महामानवकेँ मिथिलाक लोक ओ सम्मान नहि द सकलनि जकर ओ अधिकारी छला। दुनूक साम्यवादकेँ आजुक नेता आ बहुत बुद्धिजीवी सेहो तिलांजलि द’ देने छथि। बात भोगेन्द्र जीक करैत छी त बता दी जे भोगेन्द्र जी नास्तिक नहि छला। ओ छद्म, प्रपंच, दुराचार, धर्मक नाम पर ऊँच-नीच, जाति-पाति, छुआछुतक विरोधी छला। मुदा धर्मक नीक तत्व आ बातक समर्थक छला।

हमरा ऐना लगैत अछि जे भोगेन्द्र झाकेँ कोनो पार्टी विशेषक लोकक रूप मे जोडि क’ नहि देखक चाही। ओ समाजक छला, मैथिली भाषाक छला, मिथिलाक समस्याक बारे मे सोचय बला सजग प्रहरी छला। ताहि हुनका नामक आगा हम कहियो कॉमरेड शब्दक प्रयोग नहि करैत छी। जीवनक दू अवस्था मे भोगेन्द्र जीक सानिध्य भेटबाक सौभाग्य प्राप्त भेल अछि हमरा। प्रथम ताहि क्षण जखन 11-12 वर्षक बच्चा रही। दोसर जखन दिल्ली यूनिवर्सिटी मे शोध करैत रही। दुनू साहचर्य संयोग सँ बिना कोनो पूर्व योजनाक मुदा दुनू हमर जीवन पर अमिट छाप छोड़लक।

बात प्रथम भेट सँ करैत छी। ई बात 1977-78 क अछि। हमर पिता ओहि समय सिमडेगा, झारखण्ड मे खादी भण्डारक व्यवस्थापक छला। पढ़ाई हमर ठीक सँ नहि भ’ रहल छल। पिताजी हमर माँ सँ कहलथिन जे ककरो संगे सिमडेगा चलि आबथि कैलाश। हमर गामक रोहित मिश्र कम्युनिस्ट नेता छला। ओ रांचीक रसियन हॉस्टल मे रहैत छला। संयोग सँ गाम आयल छला रोहित। माँ निवेदन केलथिन त’ ओ तैयार भेला जे हमरा अपना संगे राँची लेने जेता आ ओतय सिमडेगा बला बस मे बैसा देता। हम रोहित भाई संग राँची लेल बिदा भेलौ। सबसँ पहिने पटना लेल बिदा भेलौं। ताहि समय पटनाक गाँधी सेतु बनिते रहैक। पानी जहाज सँ हम सब पटना पहुचलौं – पहलेजा सँ महेन्द्रू घाट। पटना मे अजय भवन गेलौं। संयोग सँ भोगेन्द्र जी ओतहि छला। पटना मे पांच दिन रहलौं। सब दिन 6-8 घंटा हुनका संगे बिताबी। बुझबे नहि कएल जे अतेक पैघ लोक छथि? सब तरहक बात करथि। कहथि, “अहाँक अरेड गामक लोक त’ पहलमानी मे माहिर अछि। इहो कहलनि जे बंगट मिश्र सँ आ किछु आन पहलमान सब सँ थोड़ेक बहुत कुश्ती हमहु सिखने छी। कुश्तीक नियम ओकर चालि मांजल ओस्ताद (पहलमान) जकाँ बतबथि। हमर क्षीण शरीर छल मुदा गाम मे लोक सबकेँ अखाड़ा सब पर पहलमानी करैत देखैत रहैत छलहुँ ताहि ल’ क’ अहि विधा पर थोड़ेक इच्छा जरुर छल। भोगेन्द्र जी धोबिया पाट, चित, पट करक अनेक गुणक गूढ़ सब कहलनि। अरेड, जरैल, सतलखा, करही, बरहा आदिक नामी पहलमानक गुण कहथि, कथा कहथि। इहो कहथि जे केरा खाई, कारण ई सम्पूर्ण पौष्टिक आहार छैक। मोट छिलका भेलाक कारने सुरक्षित छैक, एहि मे कोनो प्रदुषण अथवा मिलावटक खतरा नहि छैक आदि-आदि। लगैत छल सब दिन हिनका सँ सीखते रही। सब सँ पैघ बात ई लागल जे ओ बाल मनोविज्ञान खूब जनैत छला। एहने बात सब बाजथि जाहि मे हमरा मोन लागय। जतबे ओ बाजथि ततबे हम बाजी। जहिना हम मनोयोगपुर्वक हुनका सुनी तहिना ओ हमरा सुनथि। अपन पांच दिनक अनुभवक आधार पर कहि सकैत छी जे ओ हमरा जीवनक सर्वश्रेष्ठ शिक्षक छला। हुनकर शब्द आइओ ओहिना घुमरैत अछि। जीवन भरि याद रहत।
















दोसर अनुभव 1992 ईस्वीक अछि। हम दिल्ली यूनिवर्सिटी मे रिसर्च करैत रही। एम. फिल. पूरा होब’ बला छल। मानसरोवर हॉस्टल में रहैत रही। बिहार सरकार एकाएक बिहार लोक सेवा सँ मैथिली केँ हटा देलकैक। यूनिवर्सिटीक शोधार्थी, युवा शिक्षक एवं विद्यार्थी एहि पर एक आपातकालीन बैसार यूनिवर्सिटीक जवाहर वाटिका मे रखलनि। हमरो आबए लेल कहै गेला। नेनपन सँ मिथिला सँ बाहर रहला सँ हम मैथिली साहित्य साफे नहि पढ़ने रही। बजैत जरुर रही मुदा लिखबाक लुइर नहि छल। खैर, हम पहुच गेलौं। बहुत लोकक जुटान रहैक। अन्तिम निर्णय ई भेलैक जे एक फोरम “मैथिली बचाओ आन्दोलन”क नाम सँ तुरत बनए। फोरम बनि गेलैक, शिशिर कुमार झा (रामजस कॉलेज) ओकर संयोजक, राधा माधव भरद्वाज (दीनदयाल कॉलेज), अध्यक्ष भेला आ हमरा बलजोरी महासचिव बनाओल गेल। निर्णय ई भेलैक जे राजघाट पर एक धरनाक आयोजन करी। धरनास्थल पर हमरा लोकनि एकत्रित भेलौं। एक घंटाक बाद ओतय भोगेन्द्र जी अखिल भारतीय मिथिला संघक किछु कार्यकर्त्ता संगे आबि गेला। ओहि समय विजय चन्द्र झा एहि संस्था के महासचिव छला। बातचीत भेल आ निर्णय भेलैक जे संगठित भ’ लड़ाई लड़ी तखने किछु संभव अछि। आब भोगेन्द्र जी संगे नव समीकरण बनल। हमरा हुनक व्यक्तित्व मे चुम्बकीय आकर्षण बुझैत छल। हुनक सोच बिलकुल अलग छलनि। जखन ओ मैथिली भाषा, मिथिला संस्कृति, मिथिला क्षेत्रक बात करैत छला त’ हुनकर सोच पोलिटिकल आइडियोलॉजी, सोशलिज्म, पार्टी लाइन सँ भिन्न होइत छलनि। लगैत छल जे आदमी जँ हिनका संगे लागि जाय त’ मैथिली संस्कृतिक सब आयामक प्रकाण्ड ज्ञाता भ’ जायत। भोगेन्द्र जी जखन मैथिली भाषा आ संस्कृतिक बात करैत छला त’ आर कोनो गप्प नहि। राजनीति सँ हजारो कोस दूर भ’ जाईत छला। आब कहाँ भेटैत अछि ओहेन लोक – निश्छल, निष्कलंक आ केवल आ केवल मातृभूमि लेल समर्पित! हुनका हमरा द’ बुझल छलनि जे हमरा कम्युनिस्ट आइडियोलॉजी आ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सँ किछु लेबाक-देबाक नहि अछि, हमर आइडियोलॉजी विपरीत अछि। तथापि ओ हमरा कोनो बहुत अधिक समर्पित कम्युनिस्ट सँ अधिके सिनेह करैत छला।

भोगेन्द्र जी मैथिलीक अष्टम अनुसूची मे स्थान भेटि जाइक ताहि लेल राति-दिन एक केने रहैत छला। सब दिन किछु ने किछु कागजात बनेनाई आ फेर ओहि पर काज केनाई हुनकर दैनिक क्रिया-कलाप भ’ गेल रहनि। ताहि मे अधिक काल विजय चन्द्र झा जी हुनक हनुमान बनल रहैत छला। कतेक बेर तत्कालीन गृहमंत्री श्री यसवंत राव चौहान, त’ कखनो प्रधानमंत्री कार्यालय त’ कखनो लालकृष्ण अडवाणी लग त’ कखनो ककरो लग, सत्ता सँ विपक्ष धरि सब ठाम घुमैत रहैत छला। उद्देश्य अतबे जे सत्ता अथवा विपक्ष कियोक एकर विपरीत मे नहि बाजय। एक मिशन – मैथिलीक भारतक संविधानक अष्टम अनुसूची मे स्थान। कखनो-कखनो हुनका इहो होइत छलनि जे पत्नी के असमय मृत्युक बादो ओ अपन कर्तव्य मे कतौ ने कतौ पिछडि गेला। जेना हुईस गेला!

भोगेन्द्र जीकेँ लगैत छलनि जे मैथिली भाषाक विकास लेल जरुरी छैक जे एकरा मे सब जाति, वर्ग, क्षेत्र द्वारा व्यवहरित शब्द, फकड़ा, खिस्सा, कहानी, पीहानी, लोक परंपरा, बिध बेभहारक समावेश हो। ओ मैथिली भाषाक बहुरंगी चहट्गर चुनरीक रूप मे देखैत छला एकरंगी अमंगलकारी बाल विधवाक मारकिन बला रंगहीन नुआ नहि।

भोगेन्द्र जी मिथिलाक नदीक संतुलन कए बाढि रोकबा लेल अपसियाँत रहैत छला। हुनकर इच्छा छलनि, जे पूर्ण रूप सँ वैज्ञानिक छलनि, जे कोशी-कमला-बागमती-भुतही-बलानक बाढिक प्रकोप सँ बचेबा लेल नेपाल मे डैम बना बृहत् स्तर पर पनबिजलीक उत्पादन कएल जाय। एहि सँ बाढिक समस्याक स्फूर्त निदान संभव अछि आ पर्याप्त बिजलीक आपूर्ति भेला सँ नव-नव उद्योगक स्थापना शुरू हैतेई, लोक उद्योग लगेता, रोजगारक अवसर भेटतै, लोकक जत्था-क-जत्था मे जे पलायन भ’ रहल अछि ताहि पर तुरत अंकुश लागि जेतैक; क्षेत्रक दरिद्रताक निवारण शुरू हेतैक, मिथिला सब तरहें सम्पन्न हैत। जे पानि आई विनाशक कारण छैक से एहि सँ विकासक यंत्र बनत। एहि विषय पर भोगेन्द्र जी अनेक भाषण देला, लेख तैयार केलनि आ किछु पोथी सेहो लिखला। प्रमुख पोथी (अथवा बुकलेट) मे निम्नलिखितक नाम लेल जा सकैत अछि:

1. मल्टीपरपस हाई डैम्स (मैथिली, हिंदी आ अंग्रेजी)
2. रीवर मैनेजमेंट (अंग्रेजी)
3. अन्सिएंट इंडियन ट्रेडिशन एंड कम्युनिज्म (मैथिली आ अंग्रेजी)
4. भारतीय दर्शन क ख ग घ (मैथिली)
5. क्रन्तियोग (मैथिली)

मुदा पोथी सँ हजारो गुणा अधिक बात आ तथ्य हुनक बजबा मे छलनि। ओ वाचन परंपराक मनीषी छला – नित्य स्तुत्य आ प्रणम्य, गुण-ग्राहक, सर्वजन समाजक उद्घोषक।

भोगेन्द्र जीक एहि योजना केँ राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय स्तरक पानि विशेषज्ञ, इंजिनियर सब कियोक पसीन केलक। भारतक तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी एक बेर नेपाल आ भारतक संयुक्त योजनाक लेल एक विशिष्ट मण्डलक गठन केलनि जकर भोगेन्द्र जी सदस्य छला। ओ नेपाल सेहो गेला। एहि परियोजना मे बहुत पैघ राशिक आवश्यकता रहैक मुदा राज्य सरकार आ केन्द्र सरकारक सतत उदासीनताक कारणॆ ई परियोजना फ़ाइल् मे धूल-गर्दा फकैत रहलै। नेपालक आर्थिक स्थिति एहेन नहि छैक जे ओ एहि खर्चक वहन क’ सकय। मिथिला बाढिक प्रकोप सँ त्राहिमाम करैत रहैत अछि। अहि सालक भीषण बाढि सँ कतेक जान-मालक क्षति भेल अछि ताहि सँ हमरालोकनि नीक जकाँ अवगत छी। मिथिलाक आन्दोलनी, युवक, छात्र नेता, प्लानर, सोशल एनिमेटर सबकेँ एहि दिश सोच’ क जरूरत छनि। राज्य सरकार आ केन्द्र सरकार पर दबाबक राजनीति बनबक जरूरत छैक, तखने एकर निदान संभव अछि। आ एकर निदान मात्र आ मात्र भोगेन्द्र जीक सोच सँ संभव अछि।

मिथिलाक सीता पर आई हमर सोच, हमर लेख आदिक लोक आ विद्वान सब बहुत प्रशंसा करैत छथि। होइत अछि भोगेन्द्र जी रहितथि त’ कतेक भाव विभोर होइतथि? कारण ई जे मिथिलाक धिया सियाक अवधारणा हम भोगेन्द्र जी सँ हुनकर संसर्ग मे हुनके सँ सिखने छी। हमर पीएचडीक शोध विषय छल “स्ट्रक्चर एंड कॉग्निशन ऑफ़ मैथिली फोक सोंग्स: एन एनालिटिकल स्टडी ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजी ऑफ़ म्यूजिक” एहि पर हमर काज मुलतः चारि लोकक विचार सँ प्रेरित अछि – भोगेन्द्र झा, प्रोफेसर बैद्यनाथ सरस्वती, प्रोफेसर हेतुकर झा, आ प्रोफेसर डी. के. भट्टाचार्य। आश्चर्य तखन लगैत छल जखन भोगेन्द्र जी स्त्रीगन सबहक मैथिली गीतक बात करथि। कतेक गीत हुनका कंठाग्र रहनि तकर अंत नहि। सीताक जखन बात होनि त’ बाजथि: “राम बियाहने कोन फल भेल/ सीता जन्म कनिते गेल!” से जखन कहथि त’ हुनकर पुरुख हृदय मे जेना स्त्रीगणक आत्मा घुईस जानि – हे भगवान! कोन कसूर बिधना भेल बाम/ कहब दुःख ककरा?

भोगेन्द्र जी कहथि: “जनैत छी के. के. एखनो मिथिलाक स्त्रीगन कहाँ स्वतंत्र छथि? वेदना मे बहिते रहैत छथि। एखनो जखन मैथिलानी सब कष्ट मे रहैत छथि त’ दोदिल होइत बाजि उठैत छथि: ‘फाटू हे धरती?’ उफ़, जेना सब मे सीता बैसिल होथि! जेना धरती सब किछु सहि लेती मुदा अपन धियाक अपमान नहि! जेना मैथिलानीकेँ जनमिते कान मे कहि देल जाई छनि जे जखन सबतरि सँ थाकि जैब त’ धरतीक शरण माँगि लेब!” ई बात कहैत भोगेन्द्र जीक आंखि नोर सँ भरि जानि। मुदा ओहि नोरक ठोप देखबा लेल कियोक कहाँ भेल तैयार?

बात आगा बढ़बैत छी। भोगेन्द्र जी जनक, याज्ञवल्क्य, विद्यापति, पक्षधर, वाचस्पति, मंडन, अयाची, शंकरक बात करैत छला। ओ लखिमा आ विश्वासदेवीक गुणक ग्राहक छला। गार्गीकेँ आगा अनैत मैथिलानीकेँ सब क्षेत्र मे आगा आनय केर समर्थक छला। वैदिक संस्कृतिक पक्षधर छला जे कर्म आधारित साम्यवादक समाजक बात करैत अछि। हुनका पंजी व्यवस्था, मूल, मूलग्राम, बीजपुरुष सब चीज़क ज्ञान छलनि। भोगेन्द्र जी कहियो कोनो मंदिर अथवा पूजा स्थली मे जूता चप्पल पहिरने नहि प्रवेश केलनि। ओ पूजा भले मंदिर मे नहि करैत छला मुदा हृदयक कण-कण मे हुनका भैरवि आ भगवान बसैत छलथिन। ओ निक परंपराक भंजक नहि संरक्षक छला। विद्यापतिक बाद मैथिली भाषा लेल हुनका सँ साकांक्ष कियोक नहि भेल। ओ देसिल बयनाक कर्णधार छला। आई मैथिलीक अष्टम अनुसूची लेल सब कियोक बड़का-बड़का तीर मारैत छथि मुदा एहि स्थान पर मैथिली केँ आनय बला मात्र भोगेन्द्र जी छला। हुनकर व्यक्तिगत जीवन मे भारतीय संस्कृति, वेद, धर्मशास्त्र, रामायण, महाभारत, गीता, मनुस्मृतिक छाप छलनि। ओ क़ुरान आ बाइबिल सेहो पढने छला। सहज मुद्रा मे सिद्ध ऋषि जकाँ लोककेँ कहैत छलथिन “हम भारतीय दर्शन, धर्मशास्त्र पढि क’ कम्युनिस्ट भेल छी। मार्क्स सँ अधिक कम्युनिस्ट बनेबा मे हमरा लेल भारतीय दर्शन प्रभावकारी अछि”। एहि बातकेँ ओ सब लोक स्वीकार करता जे हुनका मैथिली लेल दौड़ैत, लड़ैत, संघर्ष करैत देखने छथि। हुनका लेल जनकल्याण परिवार सँ पैघ छलनि। कहियो अपन परिवार दिस ध्यान नहि देलनि।
बातक क्रम मे भोगेन्द्र जी एक दिन कहलनि: “जनैत छी के. के.? हमर नेतागिरीक कोनो फायदा त’ हमर पुत्र सबकेँ नहि भेलनि, ओकर हानि जरुर भ’ गेलनि। कहियो कोनो गुप्त आ महत्वपूर्ण विभाग हमरा द्वारे हमरा बेटा केँ नहि भेटैत छनि।” उचितो छलनि कहब। आखिर एक पिता अपन बात ककरो लग त’ बाजत ने?

अतेक कहीं सिम्लिसिटी भेलैक अछि? एक कम्युनिस्ट जीवन भरि गाँधीवादी विचारधाराक पोषक बनल रहल। सत्य आ अहिंसाक गुणगान करैत रहल। मोटका खादी धोती, दुसुत्ती खादीक कुर्ता, गोल गला गंजी, बंडी आ उपर सँ खादीक गमछा। यएह छलनि भोगेन्द्र जीक जीवन भरिक ड्रेस कोड अथवा वस्त्र विन्यास। स्मरण नहि आबि रहल अछि जे एकर अतिरिक्त हुनका कहियो कोनो आन वस्त्र अथवा अही वस्त्र मे कनि ताम-झाम संग कतौ देखने होई!
















राजनीतिक अलग चक्र चलैत छैक। लोक ओहि चक्र मे फसैत अछि। उबरैत अछि। नव समीकरण कखनो-कखनो सब किछुकेँ समाप्त क’ दैत छैक। एहने सन समयक फेर मे भोगेन्द्र जी सेहो फसला। उचिते फसला। सब दिन सीताक चर्च करब त’ सीताक दुखो ने झेलब! चलू इतिहास मे चलैत छी संगे-संगे। 1976 मे मधुबनी लोकसभा मे नब परसीमन लागू भेलै। 1976 मे एक बात आरो भेलैक – पूर्वी लोकसभाक झंझारपुर नाम देल गेलैक, जकरा जयनगर लोकसभा कहल जैत छलैक आब ओ मधुबनी लोकसभा क्षेत्र भ’ गेलैक। अहि परसीमन सँ झंझारपुर मे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) कमजोर भ’ गेलैक। जेना सब समीकरण ढनमना गेल हो! आब देखू की होइत छैक एकर परिणाम?

इमरजेंसीक बाद जनतादलक लहरि भेलैक, जाहि मे हुकुमदेव नारायण यादव चुनाव मे विजयी भेला। भोगेन्द्र जी चुनाव हारि गेला। आपसी कलहक कारण जनता दल मे टूट भेलैक आ 1980 ईस्वी मे मध्यावधि चुनावक घोषणा भेलैक। जनमानस मे एक बेर फेरो इंदिरा गाँधी लेल करुणा जागि गेलैक। परिणाम ई भेलैक जे कांग्रेसक उम्मीदवार सफिकुल्लाह अंसारी मधुबनी लोकसभा सँ चुनाव जितलाह। अहि तरहेँ एक बेर जनतादलक लहरि मे भोगेन्द्र जी, हुकुमदेव नारायण यादव सँ चुनाव हारला आ मध्यावधि चुनाव मे 1980 मे इंदिरा लहरि मे कांग्रेसक उम्मीदवार सफिकुल्लाह अंसारी सँ। ताहि सँ की! ओ त’ निरंकार ऋषि छला। निष्काम भाव सँ अपन काज मे लागल रहला – ने जीतक दम्भ होनि हुनका ने हारक अपमान। सब दिन एक समान। ई कहब सहज छैक मुदा एकरा जीवन मे आनब दुष्कर। भोगेन्द्र जी अतबे सहजता सँ एकरा जीवन मे अनलथि। मानि लेलनि जे पांच वर्ष धरि जनजागरण अभियान, अध्ययन, मैथिली संस्कृतिक संरक्षण, गरीबक उत्थान हेतु काज आ पार्टी आ कैडरक निर्देशक पालन करैत रहता।

भोगेन्द्र जी लेल विधना किछु अलगे विधान लिखने छलथिन। चारिए मास मे तत्कालीन सांसद सफिकुल्लाह अंसारीक एकाएक निधन भ’ गेलनि। फेर चुनाव भेलैक आ भोगेन्द्र जी एहि बेर ठोसगर मार्जिन सँ चुनाव जीतला आ अपन धोती, गमछा, कुरता आ बंडी संगे दिल्ली लेल बिदा भेला। मैथिली भाषाक भूत एखनो सवारे छलनि।

आब छल हुनकर लगातार विजय होबाक समय। 1980 सँ 1996 धरि मधुबनी लोकसभा मे सबतरि ओ विद्यमान रहला। चुनाव लडैत रहला आ जीतैत रहला। मात्र 1984 मे इंदिरा गाँधीक नृशंस हत्याक कारण जनता मे कांग्रेसक प्रति जे भावनात्मक संवेदनाक लहरि उठलै ताहि लहरि मे भोगेन्द्र जी सेहो उधिया गेला आ 1984 के बाद बला चुनाव हारि गेला। एकबेर फेरो बिना जीत हारक चिंता केने भोगेन्द्र जी जनसरोकार अभियान मे लागि गेला। मूल मन्त्र एखनो एकै टा –

किये मस्तक को ऊँचा रहे पराजय जय में एक सामान ।छीनते नही यहाँ के लोग कभी उस बैरी का अभिमान ।।

भोगेन्द्र जी लोक सँ तारतम्य बैसबैत रहला। लोकक बात सुनैत रहला। लोकक दुःख आ सुखक बुझैत रहला। पते नहि चललनि जे 5 बर्ष कोना बीत गेलैक। फेर 1989 मे चुनावक डंका बजलैक –

“सिंहासन खाली करो की जनता आती है।”

भोगेन्द्र जी चुनावक तैय्यारी मे जुटि गेला। अपन भाषण कहियो मैथिली छोडि आन भाषा मे नहि देलनि। लोक सबके नारा सेहो मैथिली मे बनब’ आ बाजय के निवेदन करथि, निर्देश करथि। एक नारा जे एखनो स्मरण आबि रहल अछि ओ ई छलैक:

“उपजल गहुमक सीस मनोहर ताहि पर हंसुआक धार।जय कहू अन्नदाता के जय किसान बोनिहार”।।

हुनकर किसान, मजदूर, बोनिहार, अन्नदाता सब अपन प्रिय, निष्ठावान, इमानदार नेताक चुनाव मे मोहर लगा विजयी बनौलक। 1989क चुनाव नीक जकाँ जीत गेला। दिल्ली आबि गेला। दिल्ली मे पानि लेल, नदी लेल, नहरि लेल, बांध लेल, भारत आ नेपालक सहमति सँ मिथिलाक कल्याण लेल आ मैथिली भाषाक अष्टम अनुसूची मे स्थान दिएबाक लेल काज करैत रहला। गाड़ी-घोड़ा त’ छलनि नहि, ताहि पैरे-पैरे चलैत रहला । मिथिलाक अलख जगबैत रहला। ओहि पैरे बटोहीक तुलना कुनो महग कार मे बैसल लोक किन्नहु नहि क’ सकैत छल! ओहि पैर मे मैथिली माय केर अदृश्य घुघरू बान्हल रहैक आ कान मे विद्यापतिक माधबके बाँसुरीक टेर – घुघरूक झनकार आ माधबक बाँसुरीक टेर मे मस्त भेल मिथिला पुत्र भोगेन्द्र जी चलैत रहैत छला।

1991 मे मध्यावधि चुनाव भेलैक। भोगेन्द्र जी समरभूमि मे कूदि पड़ला। हुनकर USP छलनि ईमानदारी, मैथिली भाषा आ नदीक जुड़ावक काज। जनता कखनो हुनका पर तामस करनि, कखनो हुनकर शिकायत करनि, कखनो हुनका नाम पर खौंझे अपन माथा कपार फोड़ै मुदा जखन वोटक बात भेलैक त’ सब पार्टीक समीकरण तोडैत भोगेन्द्र जी केँ वोट देलकनि। परिणाम ई भेल जे भोगेन्द्र जी 1991क लोकसभा चुनाव फेरो जीत गेला। दिल्लीक 34 गुरुद्वारा रकाबगंजक बंगला एहि मैथिल पुत्रक अभिवादन लेल ठाढ़ छल। भोगेन्द्र जी सांसद बनि दिल्ली आबि गेला।

भोगेन्द्र जीक कथाक आदि अंत बुझब बड़ असंभव! नव बात कहि लेब त’ पुरान प्रसंग आगा मे ठाढ़ भ’ जायत। 1989क चुनाव जीतला बाद भोगेन्द्र जी निर्णय लेलनि जे ओ लोकसभाक सांसदक शपथ मैथिली मे लेता। मैथिली त’ अष्टम अनुसूचीक भाषा नहि छल फेर भोगेन्द्र जी एहि भाषा मे कोना शपथ लितथि? भोगेन्द्र जीक तर्क छलनि; “भले मैथिली राजनीतिक कारणे अष्टम अनुसूचीक भाषा नहि अछि, अछि त’ ई भारतक प्राचीनतम भाषा ताईं हम अपन मातृभाषा मे शपथ लेब”। ओहि समय विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतक प्रधानमंत्री छला। ओ भोगेन्द्र जीक बहुत सम्मान करैत छलथिन। विश्वनाथ प्रताप सिंह तुरत लोकसभाक मातहत अधिकारी सँ बात केलनि। हिनकर मातृभाषा मैथिलीक प्रति समर्पण देखि मातहत अधिकारी एहि बात लेल सहमति द’ देलथिन जे ओ मैथिली मे शपथ ल’ सकैत छथि। आब एक समस्या आबि गेलनि। समय कम छलनि। राति भरि जगैत रहला आ सपथ पत्रक अनुवाद करैत रहला। जखन अनुवाद भ’ गेलनि त’ अतेक आनन्दित भेला जेना जीवनक सर्वस्व भेट गेल होनि! एहि तरहे मैथिल पुत्र भोगेन्द्र झा अपन लोकसभा सदस्य के पद आ गोपनीयता के शपथ भारतीय इतिहास मे प्रथम बेर अपन देसिल बयना मैथिली मे पढि एक इतिहास बनौलनि। 1991क चुनाव जीतला बाद सेहो भोगेन्द्र जी शपथ मैथिली मे लेलनि।

भोगेन्द्र जी ओना त’ अपन पार्टीक अनुशासित सिपाही छला मुदा किछु विशेष क्षण मे जखन लगलनि जे वोटक राजनीतिक कुचक्र मे फँसि पार्टी गलत दिशा दिस जा रहल अछि जे अनैतिक आ मर्यादाक बिपरीत छैक त’ अपन आत्माक अवाज़ सँ काज लेलनि। हार-जीतक भाव सँ उपर उठि गेला। एकर दुष्परिणाम भोगय पड़लनि। उदाहरण बहुत अछि मुदा एक उदाहरण जे हुनकर लोकसभा मे घुसबाक बाट सदाक लेल बंद क’ देलकनि तकर जिक्र करब अनिवार्य। अगर एहि बातक चर्च नहि भेल त’ भोगेन्द्र जीक व्यक्तित्व बुझब आ हुनका पर चर्च करब व्यर्थ। 1996 ईस्वी मे चारा घोटालाक चर्च चहुँदिस रहैक। भोगेन्द्र जीक इमानदार हृदय जेना झकझोरि देलकनि। फेर की, ने आव देखला ने ताव आन ठाम के की बात झट दनि सोझे संसद परिसर मे लालू प्रसाद यादवक चारा घोटाला कांडक विरोध मे अनसन पर बैस गेला। ई डेग भोगेन्द्र जीक राजनीतिक यात्रा आ संसद भवन मे हुनकर प्रवेश लेल पटाक्षेप क’ देलकनि। ईमानदारी सँ लेल गेल डेगक अतेक पैघ सजा अपना आपकेँ जातिहीन, धर्महीन, वर्गहीन पार्टी कहय बला दल द’ सकैत अछि तकर कल्पनो नहि कैल जा सकैत छल! मुदा सत्य त’ सएह छल। बिहार मे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) आ सीपीआई के बीच चुनावी गठबन्धन भेलैक। तामसे आमिल भेल लालू प्रसाद यादव अपन आ पार्टीक प्रभुत्व देखबैत टिकट बट्बारा मे भोगेन्द्र जीक नाम काटि देलथिन। मधुबनी लोकसभा सँ भोगेन्द्र जीक राजनीतिक शिष्य कॉमरेड चतुरानन मिश्र केँ सीपीआई दिस सँ टिकट भेटलनि। चतुरानन जी जनताक वोट सँ कम आ गठबन्धनक वोटक अधिक प्रभाव सँ जीत गेला। लालू प्रसादक छत्रछाया बनल रहलै। लोकके भोगेन्द्र जीक कमी खटकैत रहलै। मजदूर, किसान, जनता सब नहु-नहु सीपीआई सँ विमुख होबय लागल। भोगेन्द्र जी सिद्ध ऋषि छला। चुप रहलनि। 1996क बाद कहियो सीपीआई मधुबनी सँ चुनाव नहि जीत सकल। अपन कैल गेल पाप केँ पार्टी भोगैत रहल जेना भोगेन्द्र जीक श्राप लागि गेल हो?

भोगेन्द्र जी पार्टीक नीति, सत्ताक प्रति एकाएक उमरल लोभ आदि सँ दुखी रहैत छला। आजुक आयाराम गयाराम नेता जकाँ नहि छला; ताहि अतेक भेलाक बादो पार्टी संगे अपन संबंध नहि विच्छेद केलनि। पार्टीक समर्पित सिपाही बनल रहला। जीवनक अन्तिम साँस धरि।

भोगेन्द्र जी स्कूल मे पढैत छला ताहि समय धकजरी मे एक जमींदार ओतय एक गरीब मजदुर के शोषण अपना आंखि सँ देखला। व्यवस्थाक प्रति ह्रदय चिचिया-चिचिया क’ विरोध करय लगलनि। आ ओही दिन सँ भोगेन्द्र झा सँ कॉमरेड भोगेन्द्र झा भ’ गेला। स्वतंत्रता सेनानी त’ छलाहे।

दोसर प्रसंग फेरो हुनकर मैथिली भाषा में भाषण आ मैथिली भाषा सँ अगाध प्रेम सँ सम्बंधित अछि। एकर वर्णन ऐतिहासिक रुपेँ महत्वपूर्ण अछि। एक बेर भोगेन्द्र जी मधुबनीक मुसलमान बहुल क्षेत्र भौआरा मे भाषण दैत छला। भोगेन्द्र जी केर भाषण त’ मैथिली मे छल हएत। एकाएक भीड़ मे सँ किछु युवक भाषणक बीच में बाजि उठल: “भोगेन्द्र बाबू, मैथिली ना चलत। हिन्दी मे बोलू!”
भोगेन्द्र जी पूर्ण निरगुनक लोक रहथि। हँसैत बजला: “बाह! अहाँ अपने मैथिली मे बाजू आ हमरा कहैत छी हिन्दी मे बोलू? से कोना हैत? हम अहाँक भाषा मे बोलब।”
युवक सब सेहो जेना अडि गेल। आब हिंदी मे बाजल: “हिंदी में भाषण दीजिये, हिंदी मे।” 
मुदा भोगेन्द्र जी मैथिली में बजैत रहला। अंत मे तामसे घोर होइत युवक सब भोगेन्द्र जीक डर देखबैत बजलनि: “अगर हिंदी मे नही भाषण दीजियेगा तो एक भी मुसलमान का वोट नही मिलेगा। सोच लीजिये भोगेन्द्र बाबू क्या करना है?”
भोगेन्द्र जी बिना कुनो राग द्वेष के बजला: “हम त मैथिली छोडि आन भाषा मे अपन भाषण नहि देब। अगर अहाँ सब नहि वोट देमय चाहैत छी त’ नहि देब मुदा हमर भाव अटल अछि”। दुर्भाग्य सँ भोगेन्द्र जी ओ चुनाव हारि गेला। मुदा एहि सँ भोगेन्द्र जी सन सधल सिद्धांतवादीक कुन फ़र्क पड़ैत छैक? भाषाक नाम पर एम जी रामचन्द्रन, करूणानिधि, जयललिता, ठाकरे परिवारक लोक कत’ सं कत’ चलि गेल मुदा हमरालोकनि अपन विवेक भोगेन्द्र जी लेल कत’ छोडि अयलहुँ???

नश्वर शरीर के त्याग: ई वसुधा ककरो कहाँ बनेलक अछि अमृतपुत्र? 
भोगेन्द्र जी आत्मबल सँ जीबैत छला, दैहिक बले नहि। 87 वरखक अवस्था मे जीर्ण काया सँ निधोख भेल दरभंगा, मधुबनी, पटना, दिल्लीक यात्रा करैत रहला। मधुमेह के कहैत रहलथिन : “जतेक उत्पात मचेबाक छौ मचा ले। हमर यात्रा जीवनक अन्तिम साँस धरि चलैत रहतौ। जिद्दी तोरा सँ रे मधुमेह हम अधिक छी। तों की सकबैं हमरा सं?” आ, दैवक चमत्कार देखू, सैह भेलनि। 11 जनवरी 2009क दिन विजय चन्द्र झाक जेठ पुत्र संजीव झा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अपन पत्नी संग कतौ यात्राक उद्देश्य सँ ठाढ़ छला। हुनकर दृष्टि एक असहाय बूढ़ पर गेलनि जे कदाचित सीढी चढ़बा मे असमर्थ बुझेलनि। ओ झट दनि ओहि बुजुर्ग लग मदति करबाक भावना सँ पहुँच गेला।

संजीव पुछलथिन: “बाबा! हम मदति क’ दैत छी?”

बुढा: “हौ बौआ, पानि पियाबह? बड़ जोर पियास लागल अछि।”

संजीव तुरत एक बोतल पानि आनि देलथिन। कृशकाय शरीरधारीक बोल एकाएक संजीव पहिचानि गेला। “हे भगवान! ई त’ भोगेन्द्र झा छथि!” संजीव सोचलनि। तुरत चरण स्पर्श केलथिन आ अपन परिचय दैत कहलथिन: “बाबा, हम विजय चन्द्र झाक जेठ बालक संजीव छी। चलू हमर डेरा पर। हम फोन सँ बाबूजी केँ बजा दैत छी?”

भोगेन्द्र जी: “नहि हमरा मधुबनी एक केसक मादे जएबाक अछि। हम चलि जाएब। हमर आरक्षण भेल अछि। हमरा भूख लागल अछि। किछु खेबाक इच्छा भ’ रहल अछि।”

संजीव: “ठीक छै बाबा। की खैब?”

भोगेन्द्र जी: “दालि भात तरकारी खेबाक इच्छा अछि। आनि सकैत छह?’

“हाँ बाबा देखैत छी।” से कहैत संजीव अपन पत्नी केँ हाँक देलनि। कहलथिन “की बटखर्चा अछि?” संजीवक पत्नी कहलथिन, “पूरी तरकारी”। आब संजीव तमसा गेला। “ई की आनि लेलौ?” बाबाक त’ भातक इच्छा छनि!”

भोगेन्द्र जी बीचहि मे बाजि उठला: “कोनो बात नहि। तोहर घर मे लक्ष्मीक वास छह। हिनकर हाथक चीज़ अपूर्व हेतैक। लाबह पूरी तरकारी।”

संजीव पूरी तरकारी देमय लगलथिन। भोगेन्द्र जी 6 पूरी आ तरकारी अपने हाथे ल’ लेलथिन। 4 टा अपने लेला आ 2 टा पूरी आ तरकारी अपना संगक व्यक्ति के देलथिन। खूब हृदय सँ संजीव आ हुनक पत्नी केँ आशीर्वाद देलथिन। फोन सँ संजीवक माए कृष्णा झा सँ सेहो गप्प केला। कहलथिन: “अहाँ बड़ भाग्यशाली छी जे एहेन बेटा पुतोहू भेटल अछि जे राति दिन अहाँक सेवा करैत अछि।” अपन जीवन मृत्यु सँ संघर्ष करैत डैलेसिस पर जीबैत कृष्णा जीक जीवन किछु दिन आरो जीबक जेना भोगेन्द्र जीक बात सुनि वरदान भेट गेलनि! विजय चन्द्र झा सँ सेहो गप्प केलथिन। सब कियोक हुनका निवेदन केलथिन जे दरभंगा नहि जा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली मे भर्ती भ’ जाथि। भोगेन्द्र जी ककरो सुनयनबला थोड़े ने छला? चलि देला त’ चलि देला – ‘मै तो रमता जोगी राम’। विजय चन्द्र झाक आत्मा जेना कानि उठलनि। तमसाइत बाजि उठला: “जाऊ, अपटी खेत मे प्राण खतम करू। ई अहाँ आ हमरा सबहक बीच कहीं अन्तिम वार्ता ने भ’ जाय!” ताहि सँ की? भोगेन्द्र जी बिदा भ’ गेला दरभंगा। संजीव हुनकर घाव सँ बहैत शोनित पोछि देलथिन। मुह पानि सँ धो देलथिन।

ट्रैन जखन उत्तर प्रदेशक बलिया स्टेशन गेलैक त’ हिनकर स्थिति बहुत खराप भ’ गेलनि। हुनका साँस लेबा मे दिक्कत होनि आ देहक दहिना भाग मे लकवा सेहो मारि देलकनि। संयोग सँ ओही ट्रेन सँ जनेश्वर मिश्र यात्रा करैत छला। हिनका तुरत प्राथमिक उपचार कराओल गेल। मधुबनीक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेटक फोन कएल गेलैक। पार्टी ऑफिस मे सूचना गेलैक। हिनका दोसर ट्रेन सँ उतारि बलियाक स्थानीय अस्पताल मे भर्ती कराएल गेलनि। 13 जनवरी क’ दरभंगा मेडिकल कॉलेज मे स्थानांतरित कएल गेलनि। तावेत धरि बेहोश भ’ गेल रहथि। दरभंगा मे हालत मे कोनो सुधार नहि भेलनि। अंत मे दिल्ली अनबाक निर्णय भेलैक। बिहार भवन स गाड़ी रेलवे स्टेशन पर ठाढ़ रहैक। तुरत भोगेन्द्र जीकेँ दिल्लीक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान मे आनि भरती कएल गेल। इलाज चालू भेलैक। एक त’ अधिक उम्र, दोसर अतेक रुग्णता। फेरो आंखि नहि ताकि सकला। अंततः 21 जनवरी 2009 ई. क’ 87 वर्षक दीर्घ अवस्था मे मैथिल पुत्र अहि धरा केँ छोड़ि ओहि लोकक यात्रा मे चलि गेला। हुनक मृत शरीरकेँ मधुबनी ल’ गेलनि लोक। समस्त इलाका मे गाड़ी घुमल। जनताक नेता केँ जनता कनैत गर्म गर्म नोर सँ निहारैत रहल। हिनक पैतृक गाम बरहा मे अन्तिम संस्कार भेलनि। बरहा गामक माटि मे 9 अगस्त 1922 ईस्वी क’ जन्मल बच्चा भोगेन्द्र आब महान भोगेन्द्र, मिथिला मैथिलीक शान कॉमरेड भोगेन्द्रक नाम सँ बिख्यात भेलाक बाद पुनः अही गामक माटि मे अग्नि मे विलीन होबाक हेतु पार्थिव शरीर संग उपस्थित छला। शांत भेल – बिना कोनो उचा-बच के! नश्वर शरीर अग्नि मे विलीन भ’ गेलनि। एक युगक अंत भ’ गेल। जनता केँ बुझल रहैक ‘लोक त’ धरती पर अबैत अछि, जैत अछि मुदा एहेन लोक कहाँ अबैत छैक?’ ओ जीवित मानव धरोहर छला। ओ हम्मर, हिनकर, अहाँक, हुनकर, सबहक छला। भोगेन्द्र जीक ईमानदारी, मैथिलीक प्रति सिनेह, पानिक समस्याक चिंता किछु एहेन तथ्य अछि जकरा सब कियोक, सब पार्टी, सब विचारधाराक लोक पसिन करैत छल। आइओ हुनकर नाम लैत एक सहज, इमानदार, कर्मठ आ निष्काम सेवकक छवि मोटका खद्दरक धोती, कुर्ता, गमछा, बंडी धारण केने उभरैत अछि। हमरा त लगैत अछि जे जनक एहने छल हेता ताईं ने विदेह भ’ गेला!

भोगेन्द्र जीक मिथिला सँ आ एतएक संस्कृति सँ कतेक प्रेम छलनि तकर एक बानगी हमरा स्वर्गीय प्रोफेसर हेतुकर झा सुनेलनि। जखन पहिल चुनाव भोगेन्द्र बाबू कांग्रेस सँ जीत गेलाह त' सोझे दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह लग गेला आ कहलथिन्ह: "सरकार, आई हम काँग्रेस सँ अहाँक अपमानक बदला चुका लेलहुँ।" ई सुनैत महाराज भाव विह्ववल होइत भोगेन्द्र जीकेँ हृदयसँ सटा लेलथिन। ई छला भोगेन्द्र जी आ हुनकर मैथिली संस्कृति सँ सिनेह।

पितृव्य भोगेन्द्र जी के हमर विनम्र नमन....

लेख साभार : डॉ. कैलाश कुमार मिश्र


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