दुनिया में बहुत ही कम लोग होते हैं जो एक साथ कई गुणों की सम्पूर्णता लिए हुए होते हैं। उनमें से एक   क्रान्तियोगी,  कर्मयोगी, साम्यवादी तथा मानवतावादी नेता कॉमरेड भोगेन्द्र झा हैं- जो एक नाम नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण संस्था थे। ऑनलाइन पेज पर मिथिला-मैथिली के विकास एवं प्रतिष्ठा के लिए निरंतर प्रयासरत इस विभूति के बारे में जानकारी कुछ कम है- इसी कमी को दूर करने की अल्प कोशिश के तहत प्रस्तुत है उनके जीवन तथा व्यक्तित्व के कुछ अंश
संछिप्त जीवनवृत-
जन्म- 9 अगस्त 1922  जन्म स्थान- बरहा, जिला- दरभंगा (वर्तमान में मधुबनी),
पिताजी का नाम- पंडित वंशमणि झा 
माताजी का नाम - 
शिक्षा- नन ग्रेजुएट 
पत्नी का नाम- डा० चन्द्रकला देवी 
इनके कुल संतान- ०3 पुत्र 
देहावसान- 22.01.2009


प्रमुख पदभार विवरण  -
1.  1938-41, 41-48, 1954-57 सचिव ए.आई.एस.एफ. दरभंगा जिला 
2.  1940- में सी पी आई. सदस्यता 
3.  1963-73 तक सचिव जिला कमिटी सी पी आई., दरभंगा 
4.  1964 से अंत तक -सदस्य, सचिवालय, स्टेट कौंसिल ऑफ़ सी पी आई.
5.  1963-73 - सचिव, जिला कमिटी  
6.  1967- सदस्य, सी पी आई. नेशनल कौंसिल
7.  1971, 1972-78 -सदस्य, कमिटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंगस 
8.  1980- केन्द्रीय एग्जीक्यूटिव सदस्य, सी पी आई.
9.  1190- सदस्य, कमिटी ऑफ़ प्रिवीलेजेज 
10.1990- सदस्य, कमिटी ऑन ऑफिसियल लैंग्वेजेज 
11.1991- सदस्य, कंसल्टेटिव कमिटी, मिनिस्ट्री ऑफ़ एक्स्टेर्नल अफेयर्स
(साभार : 10वीं लोकसभा मेम्बेर्स बायोग्राफी)
रचित कुछ प्रमुख पुस्तकें -
भारत का स्वतंत्रता संग्राम (हिंदी)
ऋण मुक्ति अभियान (हिंदी)
मल्टी पर्पस हाई डैम्स (अंग्रेज़ी, हिंदी, मैथिली)
रीवर मैनेजमेंट (अंग्रेज़ी)
राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ आइडियोलॉजी एक्स-रे (अंग्रेज़ी)
एनिसिएन्ट इंडियन ट्रेडिशन एंड कम्युनिज्म (अंग्रेज़ी एवं मैथिली)
भारतीय दर्शन क ख ग़ घ (मैथिली)
क्रन्तियोग














भोगेंद्र​ झा को अधिकतर लोग एक कम्युनिस्ट नेता के रुप में जानते हैं तो कुछ लोग उन्हें विद्वान के रुप में जानते हैं। एक अच्छे वक्ता, एक ईमानदार सांसद, एक राष्ट्रीय स्तर के नेता, एक जमीनी कार्यकर्ता, हिन्दी, मैथिली, इतिहास, दर्शन शास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीति शास्त्र, संस्कृत के साथ-साथ विज्ञान का गहन जानकार थे। एक साथ कई भाषा के गूढ़ विद्वान। भोगेन्द्र झा अच्छे लेखक, कवि, गीतकार, नाटककार के साथ-साथ अच्छे निर्देशक, अभिनेता भी थे। वेद, रामायण, महाभारत, गीता के साथ-साथ कुरान व बाईबिल के भी जानकार.... न जाने क्या नहीं थे भोगेन्द्र झा ? भोगेन्द्र झा को अपने पार्टी के लोगों के साथ ही दूसरे पार्टी के लोग एवं नेता भी समान मान देते थे। तभी तो लोग उन्हें एक नेता के रुप में नहीं, अपने अभिभावक के रुप में समझते व मान देते थे। भोगेन्द्र झा को बहुत से लोग उनके जीवनकाल में ही ’भोगी भगवान’ कहने लगे।

भोगेन्द्र झा को अपने मातृभाषा और संस्कृति पर बड़ा ही गुमान था। वे अपनी तथा पार्टी से उपर मिथिला-मैथिली को समझते थे। जिसका ही परिणाम है कि भारत के संसदीय इतिहास में संसदीय नियमों को तोड़ा गया जो कि एक मिसाल है।
1989 के संसदीय चुनाव में भोगेन्द्र झा चुनाव जीत कर जाते हैं और संसद में शपथ ग्रहण के दिन शपथ नहीं लेते हैं। फिर लोग उन्हें खोजते हैं तो पता चलता है कि भोगेन्द्र झा तो हैं पर वो संसद में शपथ अपनी मातृ भाषा मैथिली में लेना चाहते हैं। अब समस्या उठ गई कि जो भाषा अष्ट्म अनुसूची में शामिल नहीं है उस भाषा में संसद में शपथ कैसे दिलाया जायेगा। चूँकि मैथिली अष्ट्म सूची में शामिल नहीं थी, लेकिन भोगेन्द्र झा अपने निश्चय से अवगत करा दिए। उस समय वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री हुऐ। उन्होंने ही इसका निदान निकाला कि भोगेन्द्र झा खुद संविधान के जानकार हैं वो जैसा चाहते हैं करने दिया जाय। फिर भोगेन्द्र झा ने स्वयं ही शपथ ग्रहण का प्रारुप मैथिली में अपने हाथ से लिख कर पढ़ते हुए शपथ लिये। यह मिथिला और मैथिली के लिए ऐतिहासिक गौरव का क्षण था।
भोगेन्द्र झा के बारे में ये सभी बातें तो कमोवेश लोग जानते ही हैं लेकिन कई पहलू उनके व्यक्तिगत जीवन और दिनचर्या के हैं जिन्हें जाने और समझे वगैर इन्हें को समझा ही नहीं जा सकता है।

भोगेन्द्र झा एक राजनेता होते हुए भी नेता नहीं एक योगी (जोगी) महर्षि थे। जीवन पर्यन्त वो झूठ से दूर रहे। नशापान न तो अपने पास फटकने दिए, बल्कि नशापान के खिलाफ काफी सख्त भी रहे। द्वेष-विद्वेष, ईष्या, घमंड का नामोनिशान भी उनके व्यक्तिगत चरित्र में नहीं था। लोग उन्हें लाख बुरा-भला कहे वे शान्तचित से सभी बातों को सुनते थे। फिर उसे संतुष्ट कर विदा करते थे। जीवन पर्यन्त कभी कोई गार्ड या बाॅडीगार्ड अपने लिए नहीं रखे। पर्यावरण की रक्षा के खातिर हमेशा सचेष्ट रहे। चाहे पानी का बर्बादी रोकना हो या पेड़-पौधों को बचाना या लगाना हो, उनके दैनिक जीवन का दिनचर्या था। पानी फेंकने या बर्वाद करने से लोगों को भी रोकते थे और खुद पानी का कम खर्च करते थे। उसी तरह पेड़-पौधों को काटने से मना ही नहीं करते थे बल्कि उसे सींचने का कार्य समय मिलते करते थे। प्रकृति के प्रति असीम लगाव था। खान-पान, कपड़ा-पहनावा एकदम सामान्य से सामान्य। आम लोग जो खाना नहीं खा सकता वो खाना नियमित खाते थे। कभी-कभी तो ओल या करेला को उबालकर ही खा लेते थे। वैसे चुड़ा-दही सामान्य सा खाना ही खाते थे, परन्तु अन्न के बर्वादी के खिलाफ थे। दुनिया में ये लड़ाई- झगड़ा, रिश्ते-नाते सभी कुछ अन्न के लिए ही है, इसे बर्बाद करना, फेंकना मतलब कुछ लोगों का भुख से मारना। अन्न के प्रति ये सोच उनके अपने जीवन में भी है।उनको कुछ पार्टी के कार्यकर्त्ता जो काफी गरीब, बुजुर्ग, महिलाऐं ‘मरुआ रोटी’ अपने हाथों से बनाकर अपने साथ लाती थी और उन्हें देती थी, वे प्रेम से उसे बेहिचक लेते और खाते थे। उसमें अगर कुछ बच गया तो लपेटकर रख लेते और अगले दिन उसके अगले दिन खा लेते थे। हर बातों के प्रति उनका नजरिया सकारात्मक ही होता था। विपरीत परिस्थिति में भी वो कभी नहीं विचलित होते थे। 














भोगेन्द्र झा के व्यक्तिगत जीवन और चरित्र पर भारतीय संस्कृति, वेद, रामायण, गीता, महाभारत का बहुत प्रभाव था। वो मंच से भी कहा करते थे कि मैं वेद, रामायण, महाभारत, गीता को पढ़कर कम्युनिस्ट बना हूँ न कि मार्क्स को पढ़कर। मैंने मार्क्स को भी पढ़ा है। परन्तु भारतीय दर्शन, संस्कृति, वेद, रामायण, गीता, महाभारत ने मुझे प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट बनाया है। उनका कहना था- जैसे विज्ञान में थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों के बगैर प्रतिफल नहीं मिलता उसी तरह लोगों को कथनी के हिसाब से करनी के बगैर प्रतिफल नहीं होगा। वो समझाते थे कि H2O (जल) हाईड्रोजन का दो भाग और आॅक्सीजन का एक भाग से जल बनता है, उसी तरह एक नेता या नायक तब ही समाज, देश को गति दे सकता है जबतक वो जो कहे वही खुद करे। परन्तु आज राजनीति या अन्य क्षेत्रों में ऐसा नहीं हो रहा है। लोग सिर्फ उपदेश देते हैं किये काम बुरा है ये काम अच्छा है। तुम्हें करना है, तुम्हें करना चाहिए। परन्तु कहने वाले खुद का चरित्र तथा कार्यशैली उसी उपदेश के विपरीत होता हैै। संभवतः भोगेन्द्र झा अकेला राजनेता थे जो किसी भी आमसभा-सभा चाहे पार्टी का हो या चुनावी, मंच से जनता से प्रश्न आमंत्रित करते थे और उसका जवाब अपने भाषण में देते थे, चाहे वह प्रश्न बौद्धिक स्तर का हो या राजनैतिक, सामाजिक या व्यवहारिक ही क्यों न हो, जिस कारण लोगों से इनका सीधा सम्पर्क होता था। भोेगेन्द्र झा लोगों को नौकरी के बदले स्वरोजगार करने हेतु प्रोत्साहित करते थे। वे लघु उद्योग लगवाने हेतु लोगों को सहयोग करते थे। 
भोगेन्द्र झा एक सच्चे कम्युनिस्ट, कर्म से असली कम्युनिस्ट या कहें सम्पूर्ण रुप से कम्युनिस्ट थे। उनके राजनीतिक जीवन पर महात्मा गाँधी का अधिक प्रभाव था। वे गाँधी के सत्य, अहिंसा के पथ पर जीवन पर्यन्त चले। वे खादी का धोती-कुरता, गमछा, लुंगी, बन्डी के अलावे अन्य कोई कपड़े का उपयोग जीवन भर नहीं किये। 

इस महान विभूति के बारे में यह संक्षिप्त आलेख उनके व्यक्तित्व के सागर में एक बुंद के समान है। उनके काफी अनछूए पहलूओं को आगे भी हम प्रस्तुत करते रहेंगे। इनसे संबंधित आपके पास अगर कोई अप्रकाशित मौलिक जानकारी हो तो हमें उपलब्ध करावे, ताकि इनके जीवन एवं व्यक्तित्व से हमें सीख मिल सके।

देहावसान
सीपीआई नेता और स्वतंत्रता सेनानी भोगेन्द्र झा 22.01.2009 को एम्स दिल्ली अंतिम साँस लिए। उनके अंतिम दर्शन हेतु उनका पार्थिव शरीर दिल्ली के सीपीआई हेडक्वाटर में रखा गया. अंतिम संस्कार इनके पैतृक गाँव बरहा में सम्पन हुआ।

आलेख साभार : इंद्रभूषण रमण बमबम 


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