मिथिला विशेष : सौराठ सभा गजगज करै छल। चारू भर पागे-पाग। लाल पाग। कोकटी पाग। उजरा पाग। वरक माथपर लाल, अधवयसूक कोकटी आ बूढ़क माथपर उजरा पाग। छत्ते-छत्ता। शिव मन्दिरमे दिन भरि बजैत घण्टा। योग्य वर-कन्याक मनोकमना पूर्त्ति लेल शिवलिंगपर चढ़ैत जनउ केर पथार। चाह-पान-जलपानक सजल दोकान-दौरी। सभा परिसरमे दरी, सतरञ्जी आ कि चद्दरि ओछा बैसल वरागत। हुनकासँ गप्प करैत कन्यागत। पिठारक उजरा चाननपर सिन्दूरक ठोप, लाल धोती आ लाले पाग पहिरने, आँखिमे काजर केने बैसल वरसँ हुनक योग्यता आदिक जानकारी लऽ सन्तुष्ट होइत लोक। वरपक्ष आ कन्यापक्षक बीच सामञ्जस्य बनबैत आ एक-दोसरा लेल योग्य सम्बन्ध देखबैत घटकराज। मिथिलाक्षरमे लिखल पञ्जीक पोथासँ अधिकार देखैत आ 

उतेढ़ पढ़ैत पञ्जीकार। प्रतिदिन उपस्थित हजारोक संख्या टपि कऽ होइत लाख-सवा लाख होइत। एते लोकक परस्पर वार्त्तालापक स्वर दूर-दूर धरि पसरैत। सभा आयल सर-सम्बन्धी लेल लगपासक गाममे घरे-घर तरुआ-तीमन छनाइत, पकमान बनैत। कुल मिला चारू भरक समग्र वातावरण उत्सवी रंगमे रङल।

उपर्युक्त पाँती पढ़ि कोनो मिथिलावासीक मन गदगद भऽ उठत। लागत

जे मिथिलावासी अपन एहि समृद्ध परम्पराकेँ कते सहेजि कऽ रखने छथि, मुदा ई ‘फ्लैश बैक’ अछि। आइसँ लगभग पाँच दशक पूर्व धरिक ई स्थिति अछि। वर्त्तमान सर्वथा भिन्न अछि। अपनाकेँ हीन आ दोसराकेँ श्रेष्ठ मानबाक मानसिकता मिथिलाक एहि गौरवशाली परम्पराकेँ गीड़ि रहल अछि। आइ पाग नजरि अबैत अछि, मुदा आङुरपर गनबो जोगर नञि। जाहि सभामे दर्जनो पञ्जीकार बैसै छला ताहि ठाम मात्र चारि गोटे भेटै छथि। घटकराज एको गोटे नञि। वर सभ साल अबै छथि, मुदा एक-दू गोटे मात्र। तनिको तते उल्लू-दुत्थू होइ छनि जे एबापर पछताइत रहै छथि आ संग आयल लोक कान ऐँठै छथि जे आगाँ किनको नञि लऽ कऽ आयब।  जाहि वैवाहिक सभाकेँ मिथिला नरेश महाराज हरिसिंह देव आइसँ लगभग 700 बरख पहिने 1326 इ. केर लगपासमे शुरू केने छला ताहिसँ हमरा लोकनिकेँ तेहन अरुचि भेल, एकर ततेक खिधांस कयल, अपन परम्पराकेँ लतिया आधुनिकताक बिहाड़िमे तेना ने उधिआय लगलहुँ जे ई ठोहि पाड़ि कनबा लेल विवश अछि। ई अपन अन्तिम साँस गनि रहल अछि। तहिया जहिया यातायात आ सञ्चार केर कोनो सुविधा नञि छल तहिया मिथिलाक धमनीमे एक रंग सांस्कृतिक चिन्तनक रक्त प्रवाहित छल। आ आइ जखन सभ तरहेँ हमरा लोकनि सम्पन्न छी आ सञ्चार आ यातायातक आधुनिक सुविधा उपलब्ध अछि तँ हमरा लोकनि अपन गौरवाशाली सांस्कृतिक परम्पराक जड़ि काटि रहल छी। हमर जे परम्परा विश्वकेँ आकर्षित केलक, कऽ रहल अछि आ एकर अनुकरणमे नव ढंगेँ सामूहिक विवाह आदि भऽ रहल अछि तकरा हमरा लोकनि त्यागि चुकल छी।

मन पड़ैत अछि एकगोट सूनल कथा। कहाँ दन एकगोट भारतीय नेता विदेश गेला। ओहि ठाम ‘नैकेट क्लब’सँ हुनका आमंत्रण भेटलनि। ओकर सदस्य क्लबमे नङटे रहै छला। से ओकरा सभसँ आमंत्रण पाबि नेताजी क्लब लेल बिदा भेला। बाटमे सोचलनि जे किए ने ओकरे सभ जकाँ उपस्थित होइ। ओकरा सभकेँ लगतै जे आधुनिक हेबामे भारत ओकरा सभसँ कनेको कम नञि अछि। बस फेर की छल, नेताजीक कार क्लब लग रूकल तँ ओ अपन सभटा वस्त्र फोलि नङटे बहरेला, मुदा ओहि ठाम स्थिति एकदम विपरीत छल। क्लबक सदस्य सभ विचारने छला जे भारत कते विकसित देश अछि जे ओहि ठाम तेहन वस्त्र पहिरल जाइत अछि जे ओकरा ‘नैकेट क्लब’ केर प्रयोजने नञि छै। हमरा लोकनि ने भरि दिन नीचासँ ऊपर टाइट वस्त्र पहिरै छी जे थोड़े काल वस्त्र विहीन रहब स्वास्थ्यकर होइत अछि। किए ने भारतीय नेताक स्वागत भारतीय परिधानमे करी। से नेताजी जखन कारसँ बहरेला तँ हुनका स्वागतमे विदेशी सभ धोती-कुर्त्ता पहिरने चारू कात ठाढ़ छला आ नेताजी बीचमे नाङट। ठीक एहने स्थिति हमरा सभक भऽ गेल अछि। जाहि वैवाहिक सभाकेँ लऽ मिथिलावासी समग्र संसारमे विशिष्ट मानल जाइत रहला अछि, आइयो मानल जाइ छथि, तकर हमरा लोकनि गर्दनि रेति रहल छी। एखनो सभावास सभ साल होइत अछि। मधुबनी जिलाक सौराठमे सभा लगैत अछि, मुदा उसरल-उसरल सन। जाहि सभाक प्रसंग कहल जाइ छल जे सवा लाख लोक जुटबापर ओहि ठामक पीपड़क गाछक सभ पात मौला जाइ छल, पात मौलाइते लोक बूझि जाइ छल जे सभामे एक लाखसँ बेसी लोक जुटि गेला, से सभा आइ स्वयं मौला रहल अछि।

देश-विदेशसँ होइ छल जुटान

पहिने सौराठ सभामे मिथिलाक सभ जिला पूर्णिञा, खगड़िया, बेगूसराय, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, देवघर, भागलपुर, मुंगेर, कटिहार, मधुबनी, दरभंगाक संग नेपालक मिथिला क्षेत्रसँ तँ लोक जुटिते छला, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, महाराष्टÑ आदि राज्यक भोपाल, रायपुर, जयपुर, मालदह, वाराणसी आदिसँ सेहो मैथिल अबै छला। ई कही जे देश भरिसँ जुटै छला। देशे की विदेशोसँ अबै छला आ सभामे अपन कन्या, बहिन, भतीजी आदि लेल योग्य वर चुनै छला। कन्या पक्षकेँ योग्य वर आ वर पक्षकेँ अपना योग्य कन्या भेटि जाइ छलनि।

कतेको ठाम लगै छल सभा

पहिने मिथिलामे सौराठक अतिरिक्त सीतामढ़ीक ससौला, झञ्झारपुरक समीप परतापुर, दरभंगाक सझुआर, सहरसाक महिषी आ पूर्णिञाक सिंहासनमे   सेहो ई सभा लगै छल। जेना-जेना मैथिल आधुनिक होइत गेला सभा सभ उसरैत गेल। बाँचि गेल मात्र सौराठ सभा। ईहो उसरि रहल अछि। कतेको गोटे कहै छथि जे एहूसँ बेसी ठाम सभा होइ छल आ विभिन्न जातिक लेल होइ छल जे समटा कऽ मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ मात्र लेल रहि गेल।

अपवादे होइ छल घर कथा

पहिने अपवादे स्वरूप वर्त्तमान जकाँ घर-कथा होइ छल। सभटा कथा सभेसँ होइ छल। एकर बहुत रास लाभ छल। सभसँ पैघ आर्थिक लाभ छल। आइ जते कथा होइत अछि ताहिमे वर तकबापर जते खर्च भऽ जाइ छल ततेमे कतेको गोटेक बेटीक विवाह भऽ सकैछ। एकरा संग समय केर बचत सेहो छल। एहि लेल गामे-गामे बौआय नञि पड़ै छल। ई तय छल जे सभामे बालक भेटिए जेता। एके ठाम सभ तरहक बालक। एहिमे जे पसिन्न भऽ जाय। एक बरख नञि भेल तँ अगिला बरख सही। एहन नञि होइ छल जे सभा गेनिहारकेँ बौआय पड़ै छलनि। वरो पक्षक लेल ई सुअवसर छल जाहिसँ आइ हमरा लोकनि पूर्णत: वञ्चित भऽ रहल छी।

अद्वितीय वैज्ञानिक अवधारणा पञ्जी

सौराठ सभा पञ्जी केर वैज्ञानिक अवधारणापर केन्द्रित रहल अछि। जे तथ्य आधुनिक विज्ञान आइ बूझि रहल अछि तकरा मिथिला आइसँ 700 साल पहिने ने मात्र बूझि गेल छल अपितु एकरा जाँचि-परखि लागू सेहो केलक। आधुनिक विज्ञान मानैत अछि जे निकट रक्त-सम्बन्धीक बीच वैवाहिक सम्बन्धसँ बहुत रास विकार अबैत अछि। ओतहि एकरा बारि देबापर होबऽ वला सन्तान तीक्ष्ण बुद्धिक तँ होइते अछि ओकरामे अपन माता-पिताक गुण पक्ष बेसी अबैत अछि। कतेको अनुसन्धान एहि चिन्तनपर मोहर लगेलक अछि। एही तथ्यकेँ ध्यानमे राखि पञ्जीकार माता आ पिता पक्ष दिससँ ई देखि विवाहक स्वीकृति दै छथि जे कतहु कोनो पीढ़ीमे रक्त सम्बन्धक निकटता तँ ने अछि। पञ्जीकार विश्वमोहन मिश्र कहै छथि जे ओना तँ मातृ आ पितृ पक्ष दुनू दिससँ 32-32 पीढ़ीक उतेढ़ पढ़ल जाइत अछि जे एहिमे रक्तक निकटता तँ ने अछि, मुदा पितृ पक्षसँ सात आ मातृ पक्षसँ पाँच पीढ़ीमे कतहु एके कुल-मूल केर नञि होयब अनिवार्य अछि। ई काज कहियो जरैल, पिलखवाड़, ननौर, कछुआ चकौती, कोइलख आदिक पञ्जीकार एहि ठाम करै छला। आइ मात्र चारि गोटे भेटै छथि।

सामाजिक सरोकारकेँ भेटै छल मजगूती

सौराठ सभा समग्र मिथिलाकेँ समवेत हेबाक अवसर दै छल। मिथिलाक विभिन्न जिलाक लोक एकठाम जुटै छला जाहि अवसरसँ हमरा लोकनि चूकि रहल छी। सभाक यैह गुण ओहू मिथिलावासीकेँ आकर्षित करै छल जिनका कोनो कथा करबाक नञि रहै छलनि, मुदा ओ एहिमे जुटै छला। कनेको सजग मैथिल एहिमे अवश्य पहुँचथि आ जाबत सभा समाप्त नञि होइ छल ताबत की तँ अबै-जाइ छला अथवा लगपासक अपन सर-सम्बन्धी ओतऽ टिकै छला जे सामाजिक सरोकारकेँ आरो मजगूत करै छल। ककरो कन्या किंवा वरक कथा तय करेबामे भूमिका निमाहबासँ सेहो सामाजिक सरोकार अपन मूल अर्थमे बनल रहै छल। आइ हमरा लोकनि एहिसँ पूरापूरी वञ्चित भऽ रहल छी।

सभा उसरबाक मूल कारण काटर प्रथा आ मीडिया

एतेक समृद्ध परम्पराक धारा सुखा जेबाक मूलमे मिथिलावासीक परम्राक मोह छोड़ि देब तँ कारण रहबे कयल, संगहि काटर प्रथा (दहेज प्रथा) सेहो एकरा समाप्त करबामे अपन भूमिका निमाहलक। विद्याक बलपर समग्र विश्वमे अपन कीर्त्ति-पताका फरेनिहार मिथिला कहिया अर्थक पाछाँ नञि बौआयल। सभ दिन टाका-पाइसँ बेसी महत्व विद्या आ अपन संस्कृतिकेँ देलक। जेना-जेना हमरा लोकनिकेँ आधुनिकताक बसात लागल तेना-तेना हमरा लोकनि धनकेँ महत्व दैत गेलहुँ आ यैह परिवर्त्तित मानसिकता काटर प्रथाकेँ सभोमे सन्हिएलक। पुरान लोकक अनुसार वर पक्ष जुटै तँ छला, मुदा कुल-मूलसँ बेसी हुनक ध्यान कन्यागत लोकनिक बगुलीपर रहै छलनि। जखन एकर जानकारी सार्वजनिक भेल तँ विरोध आरम्भ भेल, से तेना जे लोक आयब कम कऽ देलनि आ धीरे-धीरे छोड़ि देलनि। दोसर एहि ठाम जुटऽ वला भीड़क अपन राजनीतिक उपयोग करबाक चलनसारि सेहो आघात पहुँचेलक। सभाकेँ रसातलमे पहँुचेबामे मीडियाक भूमिकाकेँ सेहो नकारल नञि जा सकैत अछि। एकरा ‘वरक बजार’ आ ने जानि की-की कहि चौल करऽ वला रिपोर्ट सभामे एनिहारकेँ रोकलक।

समाप्त नञि भेल अछि आशाक किरण

वैवाहिक सभा आ पञ्जी प्रथाक जीवनकेँ लऽ जतऽ निराशाक स्थिति अछि ओतहि आशाक किरण पूरा-पूरी समाप्तो नञि भेल अछि। जतऽ पञ्जीकार लोकनिमेसँ अधिकांश सभा आयब छोड़ि देलनि अछि ओतहि हरेकृष्ण झा नूनू बाबू, विश्वमोहन मिश्र, मङनू मिश्र आ प्रमोद मिश्र एहि परम्पराकेँ जिएने रखबा लेल भरि सभा डटल रहै छथि आ सिद्धान्त लिखैत रहै छथि। उल्लेखनीय अछि जे बहुत रास पञ्जीकार परिवारक नव पीढ़ीक लोक एहिसँ विरत भऽ गेला अछि। सरकारी सेवा आ आन-आन व्यवसायमे लागि गेला अछि। पञ्जीकारक रूपमे भेटऽ वला सम्मानमे आबि रहल कमी हुनका सभकेँ एहिसँ फराक केलकनि। पहिने गामे-गामे पञ्जीकार जाथि तँ हुनक स्वागत होइ छल। आइ एहिमे स्खलन आयल अछि। समाज पहिने जकाँ स्वागत तँ नहिञे करैत अछि, पञ्जीकारकेँ देखि सय मोन पानि पड़ि जाइ छनि। एहन विपरीत परिस्थितियोमे पञ्जीकार विश्वमोहन मिश्र अपन पुत्र विमलेन्दु शेखर मिश्र आ आलोकचन्द्र मिश्रकेँ एहि विद्यासँ जोड़ि कऽ रखने छथि आ एहिमे निपुण केने छथि। एही तरहेँ उत्तर प्रदेशक मथुरा केर मक्खन मिश्र सन लोक सेहो छथि। हुनक पूर्वज कतेको सय साल पहिने मिथिलासँ चलि गेला आ ओतहि बसि   गेला। मक्खन मिश्र सभ बरख सभाक समयमे आबि मिथिला भ्रमण करैत रहला अछि। एतबे नञि अपन भातिज भूपेन्द्र कुमार मिश्रकेँ सेहो एहि ठाम अनलनि जे ई परम्परा चलैत रहय।

संकल्प लऽ योजनाबद्ध प्रयासक जरूरति

सौराठ सभाकेँ नव जीवन देबा लेल, नव उत्साह आ ऊर्जासँ भरबा लेल आवश्यकता अछि जे एक-एक मिथिलावासी संकल्प लेथि आ तय करथि जे पहिने जकाँ बेटा-बेटीक विवाह सभेसँ करब। एहिमे युवा-शक्तिक समवेत होयब सभसँ बेसी जरूरी अछि। युवा जँ चाहथि तँ कोनो धाराकेँ अपना बलपर मोड़ि सकै छथि। आइ तँ ई सभा आर बेसी उपयोगी भऽ सकैत अछि जखन लोक लग समयक घोर अभाव भेल जा रहल अछि। फेरसँ पुरान स्थिति पलटाबऽ लेल योजनाबद्ध ढंगसँ प्रयासक जरूरति अछि। एहि दिस गोट-पगरा डेगो बढ़ल अछि। पछिले साल घर कथाक बाद मिहिर कुमार झा महादेव आ चन्दन कुमार झा केर बरियाती सौराठ सभासँ बिदा भेल छलनि। शेखरचन्द्र मिश्र आदि सभाकेँ फेरसँ प्रतिष्ठित करबाक प्रयास पछिला कतेको बरखसँ कऽ रहला अछि। हिनके सभ जकाँ समग्र मिथिलासँ समवेत प्रयास हो तँ सौराठ सभा अपन अतीतकेँ दोहरा सकैत अछि। एक बेर दरभंगामे आ सीतामढ़ीमे फेरसँ सभा आरम्भ करबाक बात चलल छल, मुदा कोनो ठोस परिणाम सोझाँ नञि आयल। आउ 10 जुलाइ 2013 सँ शुरू भऽ रहल सभाक अवसरपर संकल्प ली जे अपन गौरवशाली अतीतकेँ पुन: प्रतिष्ठित करब। जते गोटे सभा उसरबासँ दुखी छथि ततबे गोटे जँ एहि दिशामे सजग भऽ सक्रिय होथि तँ सौराठ सभाक दिन घूरब कोनो असम्भव नञि।

साभार : मिथिला मिरर 


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